विश्वनाथ मंदिर व ज्ञानवापी मस्जिद पर घमासान, काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के वजूद को लेकर तमाम इतिहासकारों में भी घमासान मची हुई है। या यूं कहें कि इतिहासकार एक राय नहीं। विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद, दोनों के निर्माण और पुनर्निमाण को लेकर कई तरह की धारणाएँ है। दावों और क़िस्सों की भरमार ज़रूर है. आम मान्यता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगज़ेब ने तुड़वा दिया था और वहां मस्जिद बना दी गई लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को देखने-समझने पर मामला इससे कहीं ज़्यादा जटिल दिखता है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ज्ञानवापी मस्जिद को 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तानों ने बनवाया था और विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाया था. लेकिन इस मान्यता को मानने से कई इतिहासकार इनकार करते हैं। न तो शर्की सुल्तानों की ओर से कराए गए किसी निर्माण के कोई साक्ष्य मिलते हैं, और न ही उनके दौर में मंदिर तोड़े जाने के जहां तक विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का सवाल है तो इसका श्रेय अकबर के नौरत्नों में से एक राजा टोडरमल को दिया जाता है जिन्होंने साल 1585 में अकबर के आदेश पर दक्षिण भारत के विद्वान नारायण भट्ट की मदद से कराया था. वाराणसी स्थित काशी विद्यापीठ में इतिहास विभाग में प्रोफ़ेसर रह चुके डॉक्टर राजीव द्विवेदी कहते हैं, “विश्वनाथ मंदिर का निर्माण राजा टोडरमल ने कराया, इसके ऐतिहासिक प्रमाण हैं और टोडरमल ने इस तरह के कई और निर्माण भी कराए हैं. एक बात और, यह काम उन्होंने अकबर के आदेश से कराया, यह बात भी ऐतिहासिक रूप से पुख्ता नहीं है. राजा टोडरमल की हैसियत अकबर के दरबार में ऐसी थी कि इस काम के लिए उन्हें अकबर के आदेश की ज़रूरत नहीं थी.” प्रोफ़ेसर राजीव द्विवेदी कहते हैं कि विश्वनाथ मंदिर का पौराणिक महत्व तो बहुत पहले से ही रहा है लेकिन बहुत विशाल मंदिर यहां उससे पहले रहा हो यह इतिहास में प्रामाणिक तौर पर कहीं दर्ज नहीं है. यहां तक कि टोडरमल का बनवाया मंदिर भी बहुत विशाल नहीं था. दूसरी ओर, इस बात को ऐतिहासिक तौर पर भी माना जाता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मंदिर टूटने के बाद ही हुआ और मंदिर तोड़ने का आदेश औरंगज़ेब ने ही दिया.