पांच साल से जवाब का है इंतजार..,
मेरठ/नगर निगम के 2215 सफाई कर्मियों के मामले में शासन के आदेश को ताक पर रखकर बरती गई चूक पर पर्दा डालने के लिए निगम अफसर बीते पांच साल से जिलाधिकारी कार्यालय से भेजे जाने पत्रों पर चुप्पी साधे हैं। लेकिन यह मामला अब इतनी आगे तक बढ़ गया है कि निगम अफसरों के लिए इसको ज्यादा दिन तक टालना संभव नहीं लग रहा है। सांसद अरुण गोविल भी इस मामले को लेकर नगरायुक्त को पत्र भेज चुके हैं। निगम के 2215 सफाई कर्मचारियों के भविष्य को लेकर सामाजिक संस्थाओं से जुडेÞ विनेश विद्यार्थी लगातार पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि साल 2015 में शासन का एक आदेश आया था जिसमें कहा गया था कि गलत तरीके से भर्ती हुए कर्मचारियों को बाहर कर दिया जाए। लेकिन इस आदेश में यह स्पष्ट कर दिया गया था कि निगम के 2215 कर्मचारियों को इसमें शामिल ना किया जाए क्योंकि सफाई कार्य नियमित रूप से किया जाने वाला कार्य है, अत: सफाई कर्मचारियों पर यह आदेश ना लागू किया जाए। विनेश का कहना है कि निगम के तत्कालीन अफसरों ने उक्त आदेश की सही से समीक्षा नहीं की और 2215 कर्मचारियों को भी निगम से बाहर कर दिया गया। शहर की सफाई व्यवस्था के नाम पर उन्हें कंपनी के आधीन दर्शा दिया गया। पूर्व के आदेश की स्पष्ट व्याख्या करते हुए शासन से एक और आदेश जारी किया गया, लेकिन जो चूक निगम अफसरों ने कर दी थी उसको मानने को वो तैयार नहीं थे। निगम अफसरों की इस कारगुजारी की शिकायत राष्ट्रÑीय अनुसूचित जाति आयोग भारत सरकार, अनुसूचित जाति के कल्याण संबंधी संसदीय समिति, प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण, सांसद अरुण गोविल को भी पत्र लिखा। विनेश विद्यार्थी के पत्र के सापेक्ष्य राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने साल 2020 में एक पत्र तत्कालीन डीएम मेरठ को भेजकर पूरे मामले पर रिपोर्ट तलब कर ली। उसके बाद भी कई रिमांडर भेजे गए। डीएम कार्यालय ने उक्त आयोग के पत्र के संबंध में निगम प्रशासन को पत्र लिखकर जवाब मांगा, बीते पांच सालों में इसको लेकर अनेक पत्र भेजे जा चुके हैं, लेकिन विनेश विद्यार्थी का आरोप है कि निगम अफसर अपनी चूक पर पर्दा डालने के लिए जवाब नहीं दे रहे हैं।