चुनाव से इतना क्यों डरते हो भाई

चुनाव से इतना क्यों डरते हो भाई
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चुनाव से इतना क्यों डरते हो भाई,  मेरठ के सदर दुर्गाबाड़ी स्थित करीब तीन शताब्दी यानि तीन सौ साल पुराने बताए जा रहे प्राचीन श्रीपार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर दुर्गाबाड़ी सदर पर काविज होना तो सब चाहते हैं लेकिन समाज की आम सभा बुलाकर मिटिंग से सभी को परहेज है। इस परहेज की वजह क्या है यह तो जो अब तक मंदिर पर काविज रहे हैं या जो काविज होने के लिए हाथ पांव मार रहे हैं वो ही बता सकते हैं, लेकिन सेवा के नाम पर मेवा की हसरत रखने वालों की हकीकत समाज से छिपी भी नहीं है। वर्ना ऐसी क्या वजह है जो इस तीन सौ साला पुराने मंदिर के विधिवत मसलन डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफिस के कायदे कानूनो के नीचे और प्रशासन की ओर से नियुक्त चुनाव अधिकारी/रिसिवर  की देखरेख में चुनाव नहीं कराए जा रहे हैं। बड़ा सवाल यही है कि चुनाव से इतना डर क्यों। मंदिर की कमेटियों की बात करें तो डिप्टी रजिस्ट्रार कार्यालय में जब फाइलें खंगाली गई तो बताया गया कि 1971 की एक कमेटी का उल्लेख मिला जिसमें शीतल प्रसाद जैन (सारू स्मैलटिंग) आदि के नामों का उल्लेख मिला। इसके बाद कोई पुर्जा डिप्टी रजिस्ट्रार के ऑफिस में नहीं मिला। 1971 के बाद सीधे 2003 में एक रजिस्ट्रेशन मिलता है उसने किसी दिनेश जैन का उल्लेख है। 1971 से 2003 के मध्य क्या किसी को मंदिर के चुनाव कराने की याद नहीं आयी या फिर यह मान लिया जाए कि जो काविज हो गया, उसका सबसे ज्यादा जोर मंदिर की कमेटी के चुनावों से भागने और  खुद को काविज रखने  पर रहा। यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्या वजह से कि 2003 के बाद मंदिर समिति के चुनाव ही नहीं कराए गए।

किस के पंच और चुनावों पर चुप्पी क्यों

सदर में अनंत चौदस के रोज मंदिर श्री से निकाली जाने वाली भव्य शोभायात्रा से एक दिन पहले जो कुछ भी घटनाक्रम हुआ खासतौर वो सब जो समाज के वाट्सअप ग्रुपों पर चला, जिसका यहां उल्लेख करना मुनासिब नही होगा और फिर पंच बना देना। शोभायात्रा भी निकल गयी। पंच भी बन बैठे, लेकिन भाई मंदिर समिति के चुनावों से क्यों भाग रहे हो। मंदिर पर जो भी काविज रहे, उनको लेकर समाज में काफी कुछ जानकारियां मौजूद है। कैसे कुछ लोगों ने मंदिर में आने वाले चढावे से अपने कारोबार तक चमकाने का महापाप तक किया है। उन बातों का जिक्र यहां अभी उचित नहीं, लेकिन यदि चुनाव नहीं कराए जाते तो यह बात भी तय है कि समाज के लोग चुप बैठने वाले नहीं है क्योंकि नाम न छापे जाने की शर्त पर समाज के कई युवाओं ने बताया कि शोभायात्रा से पहले जो कुछ भी घटनाक्रम हुआ खासतौर से वाट्सअप पर एक दूसरे पर हमले के नाम पर जो कीचड़ उछाली गई उसका भी हिसाब उस दिन लिया जाएगा जिस दिन मंदिर से जुड़े समाज की आमसभा बुलायी जाएगी। जिस दिन समाज के करीब हजार लोग जमा होंगे। उस दिन पाई-पाई का हिसाब समाज मांग लेगा। लोगों का यह भी कहना है कि मंदिर का हिसाब तो देना ही होगा, लेकिन समाज का अभी सबसे ज्यादा ध्यान मंदिर के चुनाव कराने पर है। समाज इसके लिए चाहता है कि प्रशासन एक रिसीवर नियुक्त करे। उसके बाद सदस्यता की स्थिति स्पष्ट हो और प्रशासन के रिसीवर पारदर्शी तरीके  से चुनाव कराएं। जो कालतीत हो चुके हैं भले ही कोई भी क्यों ना हो समाज हिसाब सभी से मांगेगा। शोभायात्रा का आयोजन होना था। पंच बना लिए ठीक है हालांकि समाज के हजार पंद्रह सौ लोग जमा होते तब पंचों पर फैसला होता तो ज्यादा बेहतर था। पंच कभी बंद कमरों में नहीं बनते। हर काम का एक तरीका होता है यदि वो अपनाया जाए तो फिर किसी की क्या मजाल जो उंगली उठा दे।

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