जैन समाज से तो पूछ लिया होता

जैन समाज से तो पूछ लिया होता
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जैन समाज से तो पूछ लिया होता, अनंत चतुर्दशी पर भगवान की शोभयात्रा से एन पहले मेरठ के प्राचीन श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन पंचायती मंदिर दुर्गावाड़ी के खजाने को लेकर जो कुछ हुआ उसमें समाज कहां हैं। विवाद खत्म हो यह हर कोई चाहता है, लेकिन ऐसे खत्म किया जाए ये कम से कम समाज के लोग तो नहीं चाहेंगे। करीब दो सौ साल पुरान है यह मंदिर। जैन समाज के उम्र दराज हो चुके कुछ पुराने लोगों की मानें तो भले ही आज कुछ लोग एक किलो सोना और एक करोड़ की बात कहकर विवाद के निपटारे का दम भर रहे हों, उनका कहना है कि यह मंदिर इतना ज्यादा प्राचीन है कि करीब एक हजार किलो सोना इसके खजाने में होना चाहिए। क्योंकि पहले लोग जैन मंदिरों में सोना दान किया करते थे। सोने के अलावा दूसरा नंबर आता था संपत्तियों को। मसलन किसी ने मंदिर को अपना घर ही दान कर दिया। इस मंदिर की यदि तह तक जाकर जांच करा ली जाए तो चौकाने वाली सच्चाई सामने आएगी। सवाल यह नहीं कि कितने सोने के देने की बात मृदुल जैन ने स्वीकार की है। सवाल तो यह है कि  यह तय कौन करेगा की मंदिर के पास कितना सोना था, कितना कैश था तथा कितनी दूसरी संपत्तियां थीं।

1971 के दस्तावेजों  को कैसे नकार दोगे

इस मंदिर की कमेटी को लेकर यदि सरकारी दस्तावेजों की लिखा पढी की बात करें तो डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफिस में केवल एक फाइल मिलती है जिसमें साल 1971 में इस मंदिर की कमेटी का उल्लेख मिलता है। साल 1971 की जिस कमेटी का उल्लेख मिलता है और उसमें जो नाम मिलते हैं उनमें बतौर अध्यक्ष सेठ शीतल प्रसाद जैन सारू स्मेलिटंग के अलावा जय नारायण जैन, जादो राय जैन, महेन्द्र जैन समेत करीब जैन समाज के इक्कीस लोगों की कमेटी का उल्लेख है। इससे यह  तो साफ हो गया कि यह मंदिर 1971 से भी प्राचीन है। हालांकि जानकारों तो मंदिर की मौजूदगी दो सौ साल पुरानी बताते है। डिप्टी रजिस्ट्रार के ऑफिस में मौजूद दस्तावेज और उसमें दी गई जानकारी से यह भी साफ कि सेठ शीतल प्रसाद जैन वाली कमेटी के बाद कोई दूसरी ऐसी कमेटी नहीं है जिसका उल्लेख सरकारी दस्तावेजों में मिलता हो। जिसका दांव लगा वो मंदिर का कर्ता धर्ता बनता चला गया। सेठ शीतल प्रसाद जैन की कमेटी के बाद यदि कोई दूसरी कमेटी समाज की लोगों की आम सभा कराकर जिसमें सभी 15 सौ सदस्य मौजूद हों उस उस आम सभा के बाद कोई अधिकृत चुनाव कराया गया हो मसलन जिसको डिप्टी रजिस्ट्रार के यहां मान्यता दी गयी हो उसकी जानकारी किसी के पास है तो समाज के सामने लायी जा सकती है। हो यह रहा है कि कमेटी और चुनाव के नाम पर बंदरबांट से ज्यादा कुछ नहीं। अब तक जो भी मंदिर के अध्यक्ष या खजांची बने है वो बताए कि उन्हें समाज के लोगों द्वार कब चुना गया और मंदिर जी की कमेटी बनी। अपने-अपने लोगों को मंदिर में बैठाकर कमेटी बना देना व अघ्यक्ष तथा खजांची का एलान कर देना, उसको समाज की मान्यता मिली है यह नहीं कहा जा सकता। कमेटी तभी मान्य होगाी जब डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफिस के दस्तावेजों में उसका उल्लेख होगा। वर्ना वही होगा जो अब हो रहा है यानि एक पर आरोप लगाकर दूसरे ने छिन लिया। यह कोई नयी बात नहीं है, इस मंदिर को लेकर यही होता आ रहो है। जहां तक मंदिर की कमेटी की बात है तो सैक्शन चार के तहत आदेश कराए जांए और धारा-25-2 के तहत बाकयादा डिप्टी रजिस्ट्रार की मार्फत चुनाव कराए जाएं। वर्ना यही होगा कि एक किलो साेना और एक करोड़ कैश। यह तय कौन करेगा कि कितना सोना था तथा कितना कैश था। सबसे बड़ा सवाल है जिन पर आरोप लगाए गए हैं वो किस आधार पर मंदिर के सर्वेसर्वा थे और जो अब आरोप लगाकर हिसाब मांग रहे हैं उन्हें किसने यह जिम्मेदारी दे दी। मंदिर समाज का है, मंदिर के करीब पंद्रह सौ सदस्य हैं। उनकी आम सभा बुलायी जाती। आम सभा के रजिस्टर पर हजार पांच सौ साइन होते तो बात समझ में भी आती। एक कमरे में जमा हुए आरोप लगाए। आरोपों के चलते फजीहत के डर से कह दिया कि मैं छोड़ रहा हूं तुम संभाल हो, लेकिन जो संभालने की बात कह रहे हैं वो चुनाव के नाम से क्यों कन्नी काट रहे हैं। डिप्टी रजिस्ट्रार की मार्फत चुनाव करा लिए जाएं, जैसा की ऋषभ एकाडेमी के मामले में हुआ उससे दूध का दूध पानी का पानी भी हो जाएगा। समाज के सामने हकीकत भी आ जाएगी। जितनी बाद मंदिर के सोने और कैश की हो रही है उतनी बात डिप्टी रजिस्ट्रार की मार्फत चुनाव की भी होनी चाहिए। इसके लिए बस इतना करना है कि सदस्यों की सूची डिप्टी रजिस्ट्रार ऑफिस को मुहैय्य करा दें। आम सभा बुला लें। उसके बाद जैसा भी प्रशासन मुनासिब समझे करे। लेकिन एक किलो सोना एक करोड़ कैश यह मुनासिब नहीं। समाज की नजरों में यह चोर बाजारी से ज्यादा कुछ नहीं।

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