कभी था रूपला पर्दा बंसल सिनेमा कर दिया जमीदोज

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कभी था रूपला पर्दा बंसल सिनेमा कर दिया जमीदोज,  मुंबइयां फिल्म नगरी की कई सुपर डुपर फिल्मों का गवाह रहा बंसल सिनेमा आज पूरी तरह से जमीदोंज कर दिया गया। हालांकि इसको तोड़ने का काम तो बीते करीब तीन माह से चल रहा था, लेकिन जमीदोंज कराने वालों ने इसको आज फाइनल टच दे दिया। बंद तो यह करीब डेढ दशक पहले हाे गया था, धीरे-धीरे यह खंडहर में तब्दील होने लगा था। बीते तीन माह से इसको तोड़ने का काम शुरू हुआ और आज उसको पूरी तरह से जमीदोंज कर दिया गया। जिसके रूपले पर्दे पर अनेक मल्टी स्टारर मुंबइया कलाकारों की जुबली व सिल्वर जुबली वो बंसल  सिनेमा आज पूरी तरह से मिटा दिया गया। हालांकि इसको लेकर काफी झगड़ा फसाद हुआ। झगड़े की सूचना पर थाना सदर बाजार से पुलिस भी पहुंच गयी थी। दरअसल बंसल सिनेमा के पीछे थापर नगर गली नंबर सात पड़ती है। इसमें गुरुद्वारा सचखंड़ साहिब है। सुबह करीब 9.15 बजे  जब गुरुद्वारा सच खंड साहिब से संगत  बाहर निकल रही थी, उसी वक्त अचानक बंसल सिनेमा की बिल्डिंग की पीछे वाली दीवार भरभराकर नीचे गुरुद्वारा की साइड पर आ गिरी। इसके गिरते ही धूल का एक गुबार उठा और पूरे इलाके में समा गया। दीवार गिरने की जानकारी पर बड़ी संख्या में सिख समाज के लोग वहां जमा हो गए। जमकर हंगामा हुआ। इस बीच वहां काम कर रही लेबर भाग गयी। हंगामे की सूचना पर थाना सदर बाजार से पुलिस पहुंच गयी। यहां करीब तीन घंटे तक गहमागमी का माहौल बना रहा। इस दौरान लेबर का काम बंद रहा। हालांकि बंसल सिनेमा पूरी तरह से आज जमीदोज हो गया है।

बंसल सिनेमा किसने खरीदा कितने पार्टनर हैं। यहां क्या बनने की तैयारी है। इसकी अधिकृत जानकारी तो नहीं मिल सकी है, लेकिन इतना जरूर पता चला है कि दिल्ली रोड पर एक बड़े टिंबर कारोबारी ने इसका सौदा रांची सालों पहले मेरठ आकर बसे किसी परिवार से किया है। इस टिंबर कारोबारी के साथ इसमें दर्जन भर से ज्यादा पार्टनर हैं तथा लगभग 15 करोड़ में यह संपत्ति बिकी है। यहां मॉल बनाने की तैयारी है। इसका नक्शा पास है या नहीं तोड़ने की अनुमति थी या नहीं, यह जानकारी हंगामे की सूचना पर जब थाना सदर बाजार पुलिस पहुंची तो साथ आए उप निरीक्षक ने ठेकेदार से मांगी। तो ठेकेदार ने भी अनभिज्ञता जाहिर कर दी। ठेकेदार को सदर पुलिस हिदायत दे गयी कि जिन्होंने तोड़ने का ठेका दिया है जब उनमें से कोई आए तो तत्काल थाने पर सूचना दें। अन्यथा कार्रवाई की जाए। इस दौरान वहां काम नहीं रूका अब इस जगह को समतल करने का काम किया जा रहा है। यहां से एक कौने में साइट आफिस भी बना हुआ है। जिसमें कभी कभार इसके पार्टनर आकर बैठते बताए जाते हैं।

सिनेमाघरों का एक अलग ही इतिहास रहा है। लेकिन समय बीतता गया और ये सिनेमाघर खंडहरों में तब्दील हो गए। ऐसे ही सिनेमाघरों में शामिल अप्सरा सिनेमा को सोमवार को तोड़ने की कार्रवाई शुरू कर दी गई। इस सिनेमाघर में अभिनेता पृथ्वीराज कपूर भी थिएटर किया करते थे। आज इसकी जर्जर हो चुकी इमारत को तोड़ा जा रहा है।

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वक्त के साथ खंडहर होते चले गए मेरठ के सिनेमा हाल

मेरठ। अस्सी के दशक और उसके कुछ बाद तक मेरठ और यहां के फिल्म प्रेमियों का नाम मुंबइयां फिल्मी नगरी में बेहद सम्मान से लिया जाता था। मेरठ के तब के सिनेमाघरों ने कई फिल्मों की जुबली, सिल्वर जुबली और गोल्डन जुबली करायी थीं। इन सिनेमाघरों में मेनका, अप्सरा, निगार और फिल्मिस्तान का नाम शुमार किया जाता था। हालांकि कई सिनेमा हाल इनसे भी काफी पुराने थे। लेकिन वो वक्त के साथ बंद होते चले गए। इसकी वजह  दर्शकों की संख्या में कमी की वजह और विकसित होते मल्टीप्लेक्स के कारण पुराने सिनेमाघर खंडहर बनते चले गए। उनका स्वरूप ही बदल दियाग या। जैसा कि निगार के साथ हुआ और फिर बाद में अप्सरा तो पूरी तरह से कांप्लैक्स बना दिया गया।  दर्शकों की कमी के कारण हीअप्सरा सिनेमा को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया था। बाद में   इसकी बिल्डिंग को तोड़ दी गयी और यहां अब एक कांप्लैक्स है जो कुछ साल पहले ही शुरू हुआ है।  अप्सरा शहर के पुराने सिनेमाहाल में था। अप्सरा नाम से इसकी शुरुआत 1964 में हुई। अप्सरा से पहले इसे नावल्टी, आनंद और रामनिवास हाल के नाम से जाना जाता था।

पृथ्वीराज कपूर एंड टीम का थे फेवरेट
आनंद हाल के नाम से मशहूर रहे अप्सरा सिनेमा में बड़े-बडे़ फिल्म कलाकार थिएटर किया करते थे। एक जमाने में सिने जगत के स्तंभ माने जाने वाले पृथ्वीराज कपूर अपनी टीम के साथ इसी आनंद हाल में थिएटर करने आया करते थे। अप्सरा सिनेमाहाल का इतिहास सौ साल से भी पुराना है।इसकी शुरुआत वर्ष 1898 में रामनिवास हाल के नाम से हुई थी। इसके सुनहरे पन्नों पर न जाने कितने ही बालीवुड कलाकारों के नाम दर्ज हैं। इन कलाकारों ने यहां आकर न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि फिल्में भी देखीं। सुनील दत्त, राजेश खन्ना और चेतन आनंद फिल्म आखिरी खत की रिलीज के समय यहां आए थे।

इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गए कई सिनेमाहाल
मेरठ के सिनेमाहालों का इतिहास सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। एक जमाने में सिंगल स्क्रीन सिनेमाहाल की चकाचौंध ऐसी थी कि वर्तमान के मल्टीप्लेक्स सिनेमा में उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। ये सिनेमाहाल आज भले ही खंडहर या शापिंग कॉम्पलेक्स और बरातघर बन चुके हैं। लेकिन जब भी सिनेमा का इतिहास दोहराया जाएगा। इनका जिक्र जरूर होगा।

कितने साल पहले बंद हुआ कौन सा सिनेमाहाल
रीवोली – 36 साल
ईव्ज- 31 साल
प्लाजा सिनेमा- 26 साल
मधुबन- 16 साल
मेफेयर- 16 साल
पैलेस सिनेमा- 26 साल
नटराज- 11 साल
आम्रपाली- 11 साल
फिल्मिस्तान- 8 साल
मेघदूत- 8 साल
मेनका- 9 साल
रमेश थियेटर- 11 साल

मेरठ राजकपूर की ननिहाल रहा है। उनकी माता रामसरनी मेहरा के परिजन लंबे अरसे तक दाल मंडी में रहे। राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, जितेंद्र समेत अधिकांश सितारे यहां अक्सर आते थे। फिल्म रिलीज के दौरान सिनेमा हॉलों में फिल्म देखते थे।

प्रश्न : बॉलीवुड में मेरठ की क्या पहचान रही?

उत्तर : फिल्म इंडस्ट्री के लोग मेरठ को सिनेप्रेमियों का शहर कहते थे। निगार सिनेमा हॉल के मालिक नादिर अली परिवार के सईद मियां की इन्दिरा फिल्मस और ईव्ज सिनेमा हॉल के मालिक वेदप्रकाश की यूनाइटेड पिक्चर्स कंपनी थी। दोनों दिल्ली और वेस्ट यूपी के वितरक रहे। हर फिल्म सबसे पहले मेरठ में रिलीज होती थी।

प्रश्न : पुराने समय में फिल्मों का प्रचार कैसे होता था?

उत्तर : बस ये समझें कि बिना दूल्हे के बारात निकलती थी। बैंड-बाजों के साथ रेहड़ी, रिक्शे, ठेले व तांगे पर बैनर-पोस्टर लगाकर शहरभर में लाउडस्पीकर से प्रचार होता था। बैंड-बाजे वालों में आपस में प्रतियोगिता होती थी। प्रचार को देखने के लिए सड़कों पर लोग पहले से खड़े रहते थे। तकनीक व संसाधन के विस्तार के बाद बदलाव हुआ।

प्रश्न : पहले कितने शो चला करते थे?

उत्तर : दो शो। फ‌र्स्ट शो शाम 6 से 9 और सेकेंड शो 9 से 12 ही चलते थे। हमारे बड़े भाई केके सेठ उर्फ गांधी ने मैटिनी के नाम से दोपहर 3 से 6 का शो शुरू किया। बाद में नून शो 12 से 3 चालू किया गया। मैटिनी, नून आदि यहीं जन्मे शब्द हैं, जिन्हें बॉलीवुड ने अपनाया।

प्रश्न : सिनेमा बंद होते जा रहे हैं, क्या वजह मानते हैं?

उत्तर : टेक्नोलॉजी ने मनोरंजन को विस्तार दिया लेकिन सिनेमाहॉल की सांसें छीन लीं। पहले फिल्मों का रनिंग टाइम 15-20 सप्ताह होता था मगर अब महज एक सप्ताह। अब कमाई बेहद कम है। यही वजह है कभी मेरठ में 21 सिनेमा होते थे, आज महज आधा दर्जन सिंगल स्क्रीन सिनेमा हैं।

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फिल्म जगत से मेरठ के रिश्तों से जुड़ी रोचक बातें

-फिल्म मधुमति की कुछ शूटिंग नौचंदी स्थित नादिर महल में हुई। इसी महल का नक्शा बना और फिल्म पूरी हुई।

-1970 के दशक में 21 सिनेमाघर थे। इनमें अजंतास (माधुरी), अनुराग, मधुबन, रमेश, प्लाजा (बंसल), निशात, रिवोली, रीगल (फोनिक्स), मैफेयर, नटराज, मेघदूत, नंदन, आम्रपाली, ओडियन, पैलेस, फिल्मिस्तान, निगार (सत्यम), मेहताब, मेनका, अप्सरा (नॉवल्टी) व गुलमर्ग।

-निशात में चलती थीं वी. शांताराम राजकपूर, महबूब, बीआर चोपड़ा, यश चोपड़ा की फिल्में।

-प्रख्यात अभिनेता शेखर, भारत भूषण के साथ ही दारा सिंह, जितेंद्र के करियर को संवारने वाले पं. देवी शर्मा, विशाल भारद्वाज, देवेंद्र शर्मा का नाता मेरठ से ही है।

-निगार में चली मुगले-आजम और मदर इंडिया के लिए एक दिन पहले रात में ही लगती थी दर्शकों की कतार।

-नंदन में ‘हम आपके हैं कौन’ 60 हफ्ते चली, मेनका में लगातार एक साल (52 हफ्ते) ‘शोले’ चली, निशात में 39 हफ्ते तक ‘दिलवाले दुलहनिया ले जाएंगे’ को पसंद किया गया।

-जादूगर पीसी सरकार का 1954-55 में निशात में स्टेज शो सातों दिन हाउस फुल रहा। अप्सरा, जगत में पृथ्वीराज कपूर का ‘पठान’ नाटक खूब चला।

-1940 में जगत में हातिमताई फिल्म लगी। 7 घंटे की फिल्म को देखने के लिए लोग रजाई-गद्दे, कंबल घर से लाते थे।

-फिल्मिस्तान में नौचंदी के दौरान 1964 में ‘जौहर महमूद इन गोवा’ फिल्म के एक सप्ताह तक रोजाना चले आठों शो हाउसफुल रहे। पूरे भारत में पहली बार 8 शो चले थे।

-निशात में बुधवार का मैटिनी शो (दोपहर 3 से 6) केवल महिलाओं के लिए ही होता था। इसकी मुनादी करायी जाती थी।


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