अभी तो चुनाव खड़ा करने का संकट, उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान आज गुरूवार 4 अप्रैल को हो रहा है, दूसरे चरण का मतदान जिसमें मेरठ नगर निगम भी शामिल है उसके लिए चुनाव प्रचार 8 मई को थम जाएगा और फिर महासमर का फाइनल राउंड यानि 11 मई को मतदान, लेकिन इससे पहले यदि चुनाव की बात की जाए तो कांग्रेस और बसपा अभी खुद को मुख्य मुकाबले में साबित करना बाकि है, यूं कांग्रेस व बसपा के महापौर प्रत्याशी के समर्थक भले ही कुछ भी दावें करें लेकिन यदि जमीनी सच्चाई की बात की जाए तो कांग्रेस व बसपा इस चुनाव में सपा-रालोद गठबंधन व भाजपा से कोसो दूर हैं। बल्कि यह कहना गैर मुनासिब नहीं होगा कि कांग्रेस व बसपा के नेता तो अभी अपना चुनाव पूरी तरह से खड़ा भी नहीं कर पाए हैं, बसपा की यदि बात की जाए तो जो चुनावी मैनेजमेंट होना चाहिए, वो नजर नहीं आ रहा है। चुनाव कार्यालय पर जो लोग नजर आ रहे हैं, उन्हें देखकर चुनाव का अंदाजा लगाया जाना जल्दबाजी होगी, इनमें से ज्यादातर लोग किसी उम्मीद या सीधे सपाट अल्फाज में कहें तो अपनी जेब का वजन बढ़ाने को जुटते हैं, चुनाव की जमीनी हकीकत से ऐसे लोगों का कोई सरोकार नहीं होता, दावे भले ही प्रत्याशी को खुश करने के लिए कुछ भी किए जाएं? पार्टी द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के बावजूद अभी मुस्लिम मतदाता का जुड़ाव तक नजर नहीं आता। बसपा समर्थक भले ही कुछ भी दावा करें, लेकिन जहां तक मेरठ के मुस्लिम मतदाताओं की बात है ताे अनौचारिक बातचीत या कहें उनकी नव्ज टटोलने का प्रयास पर इस बार चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है। इस बार मुस्लिमों कोशिश वोट की ताकत को किसी भी सूरत में बिखरने न देने की है। इसके पीछे यूपी में विगत दिनों हुए कुछ घटनाक्रमों को माना जा रहा है। इसके अलावा अतीक फैक्टर भी जहन में तारी नजर आता है। जहां तक मुस्लिमों के अलग-अलग फिरकों की बात है तो मुस्लिमों की राजनीति को करीब से जानने वाले मुसलमान नेताओं का कहना है कि फिरकों की लड़ाई या विवाद किसी और चुनाव में निपटा लिया जाएगा, अभी वजूद बचाना जरूरी है। बड़ा सवाल यही कि कौन भाजपा से रोक सकता है या उनके लिए मेरठ का मुसलमान इस बार मुस्लिम मानसिकता से उबर उठकर सिर्फ यह सोच रहा है कि भाजपा को कैसा रोका जाए। इसी सोचा की कीमत चुनाव में बसपा व कांग्रेस को चुकानी पड़ सकती है। जहां तक बसपा प्रत्याशाी समर्थक कुछ दलित नेताओं का अंकगणित है कि हशमत मलिक को गैर कुरैशी जितना भी वोट भी मिलेगा और करीब तीन लाख ओबीसी व अन्य दलित मिलकर हशमत मलिक सीट निकाल लेंगे, हो सकता है कि उनका अंकगणित उनके लिहाज से ठीक हो, लेकिन मेरठ के आम मुसलमान से जो बातचीत की गयी है उसके बाद इस बार मुसलमान कुरैशी या गैर कुरैशी से ऊपर उठकर सिर्फ भाजपा को कौन रोक सकता है, यही सोचकर मतदान करने के संकेत दे रहा है, यदि ऐसा होता है तो फिर ये संकेत कांग्रेस व बसपा के लिए किसी भी सूरत में अच्छे नहीं माने जा सकते। शहर का मुसलमान जो कुछ संकेत दे रहा है उसको देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि बसपा का जो हाथी चुनावी समर की दलदल में फंसा है उसको निकलने के लिए काफी मेहनत करनी होगी कमावेश यही हालत कांग्रेस की है कांग्रेस को और मजबूती से पंजा लड़ाना अभी बाकि है।