बर्बादी का किसे ठहराएं कसूरवार, इंफाल में जमा हुए मानवाधिकारवादी अनेक संगठनों ने देश के लोगों से पूछा है कि मणिपुर में जो हिंसा का नंगा नाच हुआ है उसका कसूरवार किसे ठहराया जाना चाहिए या फिर चुप्पी साध लेनी चाहिए या खुद को जिंदा साबित करने के लिए सिस्टम चलाने वालों से सवाल करना चाहिए. उनसे पूछा जाना चाहिए कि उनका क्या कसूर था जिन्हें सरे बाजार नंगा घूमाया गया. उनका क्या कसूर था जिन्हें हिंसा की भेंट चढ़ दिया गया. कारगिल की जंग में पाकिस्तानी दुश्मनों को खदेड़ने वाले की पत्नी का क्या कसूर था जो सत्ता समर्थकों ने उसको नंगा कर सड़क पर घुमाया. एक अंग्रेजी दैनिक की रिपोर्ट ने विस्तार से इसको लेकर खबर प्रकाशित की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली मेईतेई समन्वय समिति (डीएमसीसी) ने – मणिपुर की राजधानी इंफाल से संबद्ध नागरिक समाज संगठनों के साथ, जिनमें मीरा पैबिस (महिला कार्यकर्ताओं का संगठन) भी शामिल हैं – नई दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. संगठनों ने पिछले साल 28 मई को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के राज्य के दौरे से कुछ घंटे पहले 13 मेईतेई गांवों पर हुए हमलों को याद किया. जातीय संघर्ष पिछले साल 3 मई को शुरू हुआ था. संघर्ष में अब तक 220 से अधिक लोग मारे गए हैं, हजारों घायल हुए हैं और कम से कम 50,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं. डीएमसीसी ने एक बयान में कहा कि इंफाल पूर्व और बिष्णुपुर जिलों के गांवों पर हमले 28 मई की सुबह शुरू हुए. इसमें कहा गया कि हमलों में 12 मेईतेई लोग, दो कुकी-जो लोग और दो राज्य सुरक्षा बलों के जवान मारे गए. डीएमसीसी के संयोजक सेराम रोजेश ने कहा कि हमले तब किए गए जब सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे और तत्कालीन पूर्वी कमान प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलीता उस समय शाह के राज्य दौरे से ठीक पहले इंफाल में थे. उन्होंने कहा कि असम राइफल्स के शीर्ष अधिकारियों द्वारा कार्रवाई का वादा किए जाने के बावजूद मेईतेई गांवों और मणिपुर पुलिसकर्मियों और राज्य सुरक्षा बलों की चौकियों पर कई ऐसे हमले हुए हैं. संयुक्त बयान में संगठनों ने कहा, ‘अब मेईतेई समुदाय पूछ रहे हैं कि अगर यह कुकी उग्रवादियों का साथ देने का संकेत नहीं है, तो और क्या है?’ संघर्ष के दौरान युद्धरत समुदायों द्वारा इस तरह के आरोप लगातार लगाए जाते रहे हैं. जहां कुकी-ज़ो लोगों ने आरोप लगाया है कि मणिपुर पुलिस के जवान और राज्य बल उनके खिलाफ़ हमलों में शामिल थे, वहीं मेईतेई समुदाय ने असम राइफ़ल्स जैसे केंद्रीय बलों पर संघर्ष में एक पक्ष के साथ खड़े होने का बार-बार आरोप लगाया है. तमाम ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां कुकी-जो नागरिक मणिपुर पुलिस के जवानों को अपनी तैनाती लेने से रोक रहे हैं और मीरा पेबिस जैसे मेईतेई नागरिक असम राइफल्स की इकाइयों को कुछ मौकों पर कार्रवाई करने से रोक रहे हैं. पिछले साल एक समय पर केंद्रीय बलों और राज्य बलों के कर्मियों के बीच टकराव को दिखाने वाला भी एक वीडियो सामने आया था. देश की राजधानी दिल्ली में नागरिक समाज संगठनों ने सवाल उठाया कि राज्य में हिंसा को इतने लंबे समय तक जारी रहने की अनुमति क्यों दी गई, राज्य में ‘गृहयुद्ध’ जैसी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए किसे ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और क्यों मेईतेई लोगों को राज्य और केंद्र दोनों सरकारों द्वारा चुनिंदा रूप से निशाना बनाया गया, उन पर हमला किया गया और उन्हें अलग-थलग कर दिया गया. मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.