यूपी वालों हमसे क्या भूल हुई.., लोकसभा चुनाव में यूपी में समामवादियों की शानदार वापसी और जमीन तलाशने की कोशिशाें की कामयाबी खासतौर से बनारस में अजय राय का शानदार प्रदर्शन यहां केवल बात प्रदर्शन की कर रहे हैं हार जीत की नहीं, साथ ही अमेठी और रायबरेली में भाजपा की बुरी गत साथ ही मेरठ में छोटे पर्दे के राम की मतगणना के दौरान दशा के साथ-साथ वेस्ट यूपी में भाजपा का बड़ा जाटे चेहरा माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री की मुजफ्फरनगर संजीव वालियान की बुरी हार और वहां पर हरेन्द्र मलिक का जाट नेताओं के रूप में तेजी से उदय होना साथ ही इकरा हसन, इमरान मसूद सरीखे तमाम नामों का शानदार जीत दर्ज कराना इन सब के चलते भाजपाइयाें का यह पूछना लाजमी है कि हमसे का भूल हुई जो ये जा हमको मिली..
सबसे ज्यादा निष्ठुर तो अध्योध्यावासी साबित हुए.. उन्होंने तो राम को लाने वालों का दम भरने वालो को दंभ ही निकाल कर रख दिया. अयोध्या के मतदाताओं ने ‘निर्दयता’ से ही काम लिया. साफ कह दिया कि प्रधानमंत्री की पार्टी, और तो और, अपनी ही सरकारों द्वारा ‘भव्य’ और ‘दिव्य’ करार दी गई अयोध्या का प्रतिनिधित्व करने लायक भी नहीं बची है. भाजपा के हिंदुत्ववादी रूपकों की भाषा में कहें तो उन्होंने उसके लल्लू नाम के प्रत्याशी को लल्लू सिद्धकर सपा के ‘अवधेश’ प्रसाद को चुन लिया. वैसे भगवान राम को भी अवधेश कहा जाता है, उनके पिता दशरथ को भी और उसने इस बार सपा के अवधेश प्रसाद को चुन लिया है (जिसके सुप्रीमो अखिलेश यादव के 22 जनवरी के रामलला के बहुप्रचारित प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में न आने को लेकर भाजपा ने उनकी जानें कितनी लानत-मलामत की थी) तो जितने मुंह उतनी बातें हो गई हैं. इंडिया गठबंधन वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि भाजपा की करनी देख भगवान राम भी उसके विरुद्ध हो गए हैं, इसलिए वे उसके काम नहीं आए. पूरे चुनाव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बारम्बार कहते रहे कि यह लड़ाई रामभक्तों व रामद्रोहियों के बीच है और भगवान राम ने उनकी न सिर्फ अयोध्या-फैजाबाद बल्कि उसके आसपास की लोकसभा सीटें भी न बचने देकर सिद्ध कर दिया कि वास्तव में रामद्रोही कौन है.अमेठी के मतदाताओं ने राहुल गांधी के मुकाबले बारम्बार ‘युद्धं देहि’ का नाद कर रही और उनके ‘डरकर मैदान छोड़ जाने’ से खुश केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को भी नहीं बख्शा-कांग्रेस के ऐसे ‘कमजोर’ उम्मीदवार किशोरीलाल शर्मा के हाथों बुरी तरह पराजित करा दिया, जिसे वे कायदे से नेता तक मानने को तैयार नहीं थीं. वैसे कुछ का यह भी कहना है कि करीब दो साल पहले संसद में जब स्मृति इरानी चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी कि सोनिया गांधी माफी मांगो… उसी दिन स्मृति की हार की पटकथा लिखी गयी थी..भाजपा व स्मृति के कुछ सदस्य सदन में कांग्रेस के सांसद अधीर रंजन चौधरी के एक बयान पर जो संभवत उन्होंने हिंदी के अल्प ज्ञान के चलते दिया था पर हंगामा कर रहे थे.. लेकिन अब बड़ प्रश्न यूपी को लेकर पूछा जा रहा है कि यूपी का मूड क्या है क्या यहां एक बार फिर से समाजवादियों की साइकिल हाथ के साथ दौडे़गी..