यूपी में हार बता रही पब्लिक की नाराजगी, हिन्दुत्व की प्रयोगशाला में अयोध्या सरीखे इलाकों में भाजपा को नकार दिया जाना बता रहा है कि अब काम मंदिर, मंगल सूत्र से नहीं बल्कि काम करने से चलेगा. यह धारणा कि मोदी-योगी फैक्टर उन्हें आगे ले जाएगा, गलत साबित हुआ. साथ ही यह भी कि नतीजे बता रहे हैं पब्लिक नाराज है कुछ भी ठीक नहीं है. नतीजों से भी भी साबित हो गया है कि यूपी में भाजपा विराेधी लहर चल रही है यदि सपा व कांग्रेस को बसपा का साथ मिल गया होता तो हालत ज्यादा खराब हो जाती. मसलन मेरठ हापुड लोकसभा सीट जहां पर रील के राम यानि अरुण गोविल जीते हैं वहां भी हार का हार गले में पड़ जाता। उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनाव रिपीट किए गए 49 मौजूदा सांसद थे, जिनमें से 27 की हार हुई है. इनमें से कई ऐसे भी थे जो तीसरी या उससे ज्यादा बार मैदान में उतर चुके हैं लेकिन इस बार इंडिया गठबंधन में पटनी दे दी. जिनकी हार हुई है उनमें बड़ा नाम अमेठी से स्मृति इरानी का भी है. स्मृति की हार भूलना भाजपा के लिए मुश्किल होगा. साथ ही अमेठी से राहुल का शानदार प्रदर्शन भी सालता रहेगा. बनारस से जहां तक पीएम मोदी की जीत का सवाल है तो वहां जिस प्रकार से कांग्रेस के अजय राय लड़े हैं वो भी बता रहा है कि सब कुछ ठीक नहीं है यूपी में. भाजपा ने 2019 में चुनाव लड़ने वाले 54 उम्मीदवारों को इस बार फिर से टिकट दिया था, जिसमें 31 प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा है. पार्टी द्वारा फिर से मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों में अंबेडकरनगर के उम्मीदवार रितेश पांडे भी शामिल थे, जो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से भाजपा में आए थे. भाजपा के वर्तमान सांसदों में से 33 सांसद तीसरी बार या उससे अधिक बार चुनाव लड़ रहे थे, इनमें से 20 इस बार अपनी सीट नहीं बचा सके. इन नेताओं में स्मृति ईरानी (अमेठी), अजय मिश्रा ‘टेनी’ (खीरी), कौशल किशोर (मोहनलालगंज), महेंद्र नाथ पांडे (चंदौली), साध्वी निरंजन ज्योति (फतेहपुर), भानु प्रताप सिंह वर्मा (जालौन) और संंजीव बालियान (मुजफ्फरनगर) जैसे दिग्गज सांसद और केंद्रीय मंत्रियों के नाम शामिल हैं. आठ बार की सांसद मेनका गांधी (सुल्तानपुर) और पूर्व सीएम कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह (एटा) जैसे हाई-प्रोफाइल सांसदों को भी हार का सामना करना पड़ा. भगवा पार्टी को गहरे जख्म श्रीराम की अध्योध्या वासियों ने दिए हैं जहां लल्लू सिंह भाजपा के प्रत्याशी थे. कन्नौज में सुब्रत पाठक भी अपनी सीट नहीं बचा सके और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथों हार गए. ‘ इस हार से साफ पता चलता है कि लोग उनके (मौजूदा सांसदों) काम से नाखुश थे.