महापौर: यूं ही नहीं पंजाबियों की दावेदारी

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महापौर: यूं ही नहीं पंजाबियों की दावेदारी,  उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय के चुनाव इस साल होने हैं। मेरठ की यदि बात की जाए तो आरक्षण क्रम को लेकर चुनाव आयोग की घोषणा का भाजपाई बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। ज्यादातर भाजपाई चाहते हैं कि मेरठ में मेयर की सीट सामान्य कोटे में आ जाए। सामान्य कोटे में भाजपाइयों की लंबी फेरिस्त है, लेकिन यदि जातिय समीकरण की यदि बात की जाए तो पंजाबी प्रबल दावेदार हैं और माना जा रहा है कि पंजाबी पर दांव लगाया जा सकता है। यदि सीट सामान्य कोटे में आती है और भाजपा पंजाबी को लड़ाने का फैसला करती है तो इस कतार में कैंट बोर्ड की निवर्तमान उपाध्यक्ष बीना वाधवा व पूर्व उपाध्यक्ष सुनील वाधवा, निगम के पूर्व मेयर हरिकांत अहलूवालिया, पंकज नारंग, सरीखे नाम है। कुछ लोग पंजाबी संगठन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष रमेश ढिंगरा का नाम भी गाहे बगाहे ले देते हैं, लेकिन पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो रमेश ढिगरा को कंसीडर नही किया जाएगा। भाजपा यहां जातीय समीकरण को लेकर पंजाबी चेहरे को लेकर काम कर रही है। पंजाबी कोटे की दावेदारी की बात के पीछे ठोस तर्क दिया जा रहा है। पंजाबियों की दावेदारी के पीछे कहा जा रहा है कि अन्य बिरादरियों के कोटे में नेतृत्व काफी कुछ दे चुका है। वैश्य कोटे की यदि बात की जाए तो सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, कैंट विधायक अमित अग्रवाल, दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संजीव सिक्का के अलावा संगठन के महानगर अध्यक्ष मुकेश सिंहल, ब्राह्मण कोटे में राज्यसभा सांसद डा. लक्ष्मीकांत वाजपेयी, एमएलसी धर्मेन्द्र भारद्वाज, दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री सुनील भराला व एमएलसी अश्वनी त्यागी का नाम लिया जा रहा है। जो दावेदार अश्वनी त्यागी को ब्राह्मण कोटे में गिन रहे हैं उनका तर्क है कि त्यागी/ब्राह्मण एक ही होते हैं। ओबीसी कोटे में राज्यमंत्री डा. सोमेन्द्र तोमर, एससी कोटे में दूसरी बार भी राज्यमंत्री बनाए गए दिनेश खटीक का  नाम गिनाया जा रहा है। इसके अलावा ओबीसी कोटे से संगठन में भी तमाम लोगों को मौका दिया गय है, इसलिए अब केवल पंजाबी समाज ही ऐसा है जिसको मौका दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले भी पंजाबियों ने मेरठ की सात में एक विधानसभा सीट मांगी थी, लेकिन उनकी एक ना चली। वैसे पसंद शंकर आश्रम की चलेगी।

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