CBM: इस किरकिरी की सुबह नहीं, एक वाे भी दौर था जब मेरठ कैंट बोर्ड की धमक से अवैध निर्माण करने वाले अंडरग्राउंड हो जाते थे। सरकारी जमीन पर कब्जा तो दूर की बात सदर जैसे इलाके में दुकानदार सड़क पर सामान रखने से भी डरते थे। ऐसा क्या हो गया जो कैंट बोर्ड कि किरकिरी की रात खत्म होने का नाम नहीं ले रही। तो मान लिया जाए कि बड़े साहब हालत को संभाल नहीं पा रहे हैं। या फिर पहली बार किसी बड़ी छावनी में पोस्टिंग या कम तर्जुबा वजह है। ये तमाम बातें हो सकती हैं, लेकिन यह भी सच है कि हकीकत से रूबरू होने को मौके पर न जाना, भ्रष्टाचार का निरंकुश हो जाना, विकास में ठहराव, मगर अवैध निर्माणों का जबरदस्त विकास, 22बी सरीखी सील बिल्डिंग को ट्रेड लाइसेंस बाद में फजीहत के बाद उसको कैंसिंल करने जैसी घटना बड़े साहब की काबलियत को लेकर स्टाफ में भी सवाल हैं। अपुष्ट सूत्रों की माने तो धन कुबेर बनने के लिए सब कुछ ताक पर रख दिया गया है। मसलन पैठ की दुकानों के ट्रांसफर में भारी भरकम लेनदेन के आरोप हों या फिर भर्ती के नाम पर गरीबों से साठ-साठ हजार की उगाही। इन सब में 60:40 के अनुपात में बंटवारे की भी चर्चा स्टाफ के ही मुंह से सुनते हैं। ये चर्चाएं यूं ही नहीं है कुछ तो सच्चाई है तभी सीबीआई ने छापा मारा। सुपरवाइजर संजय को जेल भेजा। अपुष्ट सूत्र बताते हैं कि संजय ने सीबीआई अफसरों के सामने जो खुलासे किए हैं वो सभी चौंकाने वाले हैं। कथित भर्ती के नाम पर रिश्वत कांड़ के तमाम किरदारों की गर्दन में फंदा तय माना जा रहा है। यहां तक भी सुनने में आया है कि तह तक जाने के लिए संजय सुपरवाइजर का सीबीआई लाई डिटेक्टर टेस्ट भी करा सकती है। स्टाफ में सबसे ज्यादा सुगबुगाहट तो छह सुपरवाइजरों के प्रमोशन को लेकर है। अपुष्ट सूत्र प्रमोशन के नाम पर 15 लाख के कलेक्शन की बात बता रहे हैं। इसके बंटवारे का अनुपात भी दस लाख : पांच सुनने में आया है। कहा जाने लगा है कि काम कुछ भी हो बस दाम पूरा होना चाहिए। दूसरे पायदान पर यह हो रहा है समझ आता है, लेकिन बोर्ड से जुड़े उच्च पदस्थ फौजी अफसरों की चुप्पी परेशान करने वाली है।