एक दो नहीं दस से ज्यादा सभी अवैध, मेरठ विकास प्राधिकरण के जोन डी-फोर में एक दो नहीं करीब दस से ज्यादा कालोनी काटी जा रही हैं। किसानों से खेत लेकर उन खेतों में ये तमाम कालोनियां काटी जा रही हैं। प्रदेश की योगी सरकार की अवैध कालाेनियों के प्रति तिरक्षी नजर के बाद अब भूमाफियाओं ने डिफेन्सिव होकर काम करना शुरू कर दिया है। साथ ही अब भूमाफियाओं ने काम का ट्रेंड भी बदल दिया है। जानकारों मानें ज्यादातर भूमाफिया बजाए अवैध एक कालोनी अकेले काटने के एक साथ दर्जन भर अवैध प्रोजेक्टों पर काम करते रहे हैं। सूत्रों ने जानकारी दी है कि भूमाफिया ऐसा प्रदेश की योगी सरकार को राजस्व का तगड़ा फटका लगाने और किसी भी संभावित कार्रवाई से खुद को बचाने के लिए सेफ गेम खेल रहे हैं। हो यह रहा है कि एक आठ दस भूमाफिया मिलकर एक साथ दर्जन भर प्रोजेक्ट यानि अवैध कालानियां काट रहे हैं। करीबियों की मानें तो शातिर भूमाफिया एक साथ यानि एक तीन से कई निशाने साधने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन शातिर भूमाफियाओं को लेकर जानकारी छन छन कर मिल रही है यदि वो सही है तो इस नए ट्रेंड को भूमाफियाओं के शैतानी दिमाग की उपज ही कहा जाएगा। गिरोह बनाकर अवैध कालोनी काटने के पीछे शैतानी दिगाम की पहली उपज एमडीए से किसी भी प्रकार के नोटिस से खुद को सीधे बचाए रखना। दूसरा यह कि जब यह ही साफ नहीं होगा कि काटी गयी अवैध कालोनी का गिरोह के आठ दस भूमाफियाओं में असली मालिक मसलन ज्यादा हिस्सा किस का है तो रेवेन्यू चोरी को लेकर किसी भी संभावित कार्रवाई से बचे रहेंगे। रेवेन्यू चोरी इसलिए कहा गया है क्योंकि यदि एमडीए से नक्शा पास करवाते तो फिर कालोनी में सीवरेज सिस्टम, पानी की टंकी, हरियाली यानी पेड पौधे, साफ सुथरी सड़क नालियां, पार्क आदि बनाने में खर्च करना पड़ता, लेकिन अवैध कालोनी काट कर इस खर्च के साथ ही नक्शा पास कराने के लिए एमडीए को दिए जाने वाले राजस्व को भी बचा लिया जाता है।
राजस्व का चूना ही नहीं किसान व खीरीदार को भी धोखा
मेरठ प्राधिकरण के जोन डी-फोर के किला रोड व रूडकी रोड जोन के लावड रोड इलाके की तर्ज पर भूमाफियाओं केवल योगी सरकार को ही राजस्व का चूना नहीं लगा रहे हैं, वो उस किसान को भी धोखा दे रहे हैं जिससे उन्होंने खेत का सौदा तो कर लिया है लेकिन उसका पेमेंट नहीं दिया है। साथ ही उस खरीदार को भी ढगने का काम कर रहे हैं जो जीवन भर की कमाई लेकर छत का सपना पूरा करने की सोचकर इन भूमाफियाओं के चंगुल में फंस जाता है और फिर जीवन भर उस घड़ी को कोसता है जब वह भूमाफियाओं के गिरोह के पास भूखंड का सौदा करने गया था। सूबे की योगी सरकार को राजस्व का तगड़ा झटका दिया जा रहा है इस बात से न तो सत्ताधारी संगठन बेखबर हैं और न ही एमडीए के वो अफसर जिनको योगी सरकार ने भूमाफियाओं को नेस्त नाबूत करने यानि पनपने न देने की हिदायत दी है। लेकिन सरकार की मंशा के अनुसार कुछ नहीं हो रहा है। जोन डी-फाेर किला रोड और लावड रोड की तर्ज पर एक साथ कई-कई अवैध कालोनियां काटी जा रही हैं। एमडीए प्रशासन और भूमाफियाओं के गिरोह की कारगुजारियां तो किसी से छिपी नहीं है, लेकिन जो जानकारी भूमाफियाओं के करीबी दे रहे हैं वो वाकई हैरान करने व डराने वाली है। वो ऐसे कि ये भूमाफिया किसी भी लिखा पढ़ी में खुद का नहीं फंसाते हैं। अवैध कालोनी में जो भूखंड बेचा जाता है उसका बैनामा किसान से कराते हैं। लेकिन किसान की बदनसीबी देखिये कि उसका खेत तो पहले ही डरा धमका कर कब्जा लिया जाता है, लेकिन जब कोई भूखंड बिकता है और बैनामे के लिए किसान को रजिस्ट्रार के यहां बुलाया जाता है तो बजाए जमीन के उस टुकड़े का ही सही पूरा पेमेंट देने को किसान को महज सबज बाग दिखाया जाता है। तब तक किसान भूमाफियाओं के गिरोह में पूरी तरह से फंस चुका होता है। उसके लिए उगले तो मरे और निकले तो कोढी हो सरीखे हालात बना दिए जाते हैं। इसकी मिसाल भी लगे हाथों दे दें। रूडकी रोड सोफीपुर हिन्दू शमशान घाट में खेत में बनाया गया अवैध मार्केट जिसका नाम रामा कुंज रखा गया है, इसी तर्ज पर लावड रोड एक साथ काटी जा रही कई-कई अवैध कालाेनियों के असल मालिक किसानों को चंगुल में फंसाया जाना। इसके अलावा और इसी तर्ज पर एमडीए के जोन डी-फोर किला रोड पर जो अवैध कालोनियों की बाढ़ ला दी गयी है वो भी मिसाल है। एक बात और किला रोड हो या फिर लावड रोड जिस पर अवैध कालोनियों को काटने के लिए भूमाफियाओं के गिरोह को न्यौता देने का काम दौराला के भूमाफिया ने सिर्फ इसलिए किया है ताकि अवैध रामा कुंज को शासन के निर्देश पर किसी भी संभावित कार्रवाई से बचा या जा सके सरीखी कालाेनियों का असल मालिक लग्जरी गाड़ियों में नेताओं व अपराधियों को अगल-बगल में बैठाकर घूमने वाले खुद को सफेदपोश साबित करने वाले ये भूमाफिया नहीं है बल्कि भले ही अवैध ही सही लेकिन कालोनियों के असल मालिक वो किसान हैं जिनसे उनकी मां सरीखी जमीन को छीन लिया गया है। एक साथ छीनी जाने वाली जमीन का पैसा टुकड़ों-टुकड़ों में दिया जाता है। वो रकम किसान के किसी काम नहीं आती। क्योंकि भूमाफियाओं द्वारा जमीन छीन लिए जाने के साथ ही उसके घर का चूल्हा जलाने का जरिया तो पहले ही खत्म हो चुका होता है। उसके सामने खेत की जो रकम टुकड़ों में आती है घर परिवार का गुजारा करने के लिए उस रकम का इस्तेमाल करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता।