अरबों की संपत्ति है-अब तो जागें कैंट अफसर
-173 में अब शॉपिंग माॅल और रेजिडेंशियल बिग अपार्टमैंट बनान की तैयारी
– किराएदारों को कर लिया है खाली कराने तैयार, बंगले के तीनों शोरूम मालिक भी तैयार
मेरठ के आबूलेन स्थित बंगला नंबर 173 अरबों की संपत्ति है जो कैंट प्रशासन के कुछ बेहद भ्रष्ट अफसरों की वजह से हमेशा से भारत सरकार के हाथों से निकलने जा रही है। DEO के इस बंगले को लेकर यदि कैंट अफसरों की कारगुजारियों की बात की जाए तो उस पर एक किताब लिखी जा सकती है और विमोचन रक्षा मंत्री या फिर DG डिफैंस से कराया जा सकता है। लेकिन अब जो नई थ्योरी सामने आयी है वो यह कि कैंट अफसरों की नकारेपन के चलते इस बंगले को खुर्दबुर्द करने को अब एक दो नहीं कई मजबूत हाथों ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया है। इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम ज्योति प्रसाद जिनकी कोई संतान नहीं थी, खुद को उनका दत्तक पुत्र बताने वाला गाजियाबाद निवासी एक शख्स सामने आ गया है। अब इन महानुभाव से यह पूछने वाला कोई नहीं कि भाई यदि आप दत्तक पुत्र है तो इसका कहीं उल्लेख ज्योति प्रसाद जैन की हैंडराइटिंग में क्यों नहीं है। यदि आपके पास उनकी हैंडराइटिंग में कोई ऐसा उल्लेख है तो सार्वजनिक कर उंगली उठाने वालों का मुंह बंद करा दो। ऐसा नहीं किया तो फिर सवाल पीछा नहीं छोड़ेगे क्योंकि बंगले की जमीनी कीमत ही अरबों में बैठती है। केवल दत्तक पुत्र ही सामने नहीं आए हैं इनकों खुर्दबुर्द करने में भाजपा के एक विधायक का भी नाम लिया जा रहा है। कुल तीन चार लोग मिल गए हैं और बंगला अब उनकी बपौत्ती समझा जाए। बड़ा नाम कैंट बोर्ड के एक पूर्व उपाध्यक्ष का लिया जा रहा है। उन्होंने ही इसकी टेक्निकल जो भी प्रॉबल आ सकती है उनकी और उन्हें दूर कैसे किया जाएगा वो तमाम तरकीबें बता दी सुननी जाती हैं। दरअसल कैंट सीईओ व डीईओ के आधीन जितने भी बंगले हैं वो सब नगर निगम को शिफ्ट हो रहे है। यहां पर बिग माल व बिग रेजिडेंशियल अर्पाटमेंट की प्लानिंग के पीछे तक है कि काम शुरू कर देते हैं और बाद में एमडीए तथा दूसरे सरकारी महकमों से निपटते रहेंगे। सरकार अपनी है इसलिए टेंशन वाली कोई बात नहीं है। जिस वक्त कैंट के बंगलों की बर्बादी की दास्तां लिखी जाएगी, उसमें यह भी लिखा जाए कि जो आए थे कोठों को बंद कराने सिक्कों की खनक देखी तो खुद ही मुजरा करने लगे
173-आबूलेन दे रहा कारगुजारियों की गवाही, आबूलेन बंगला-173 फाइलों में सील, मालिकाना हक तक नहीं, मौके तीन भव्य शोरूम- सिविल एरिया स्थित कथित विवादित बंगले को लेकर सीईओ कैंट बोर्ड का यह कैसा है मैनेजमेंट–
शहर का दिल कहे जाने वाले आबूलेन स्थित बंगला 173 फाइलों में सील है, जो लोग इसमें कथित अवैध रूप से काविज हैं उन पर इस बंगले का मालिकाना हक तक नहीं, लेकिन यदि स्टेटस की बात की जाए तो इस आवासीय संपत्ति में आबूलेन मेन रोड पर तीन भव्य शोरूम नजर आएंगे। सब डिविजन आफ साइट और चेंज आफ परपज जैसी कैंट अधिनियम की धाराओं के गंभीर उल्लंधन के बावजूद कैंट बाेर्ड कार्यालय न जाने ऐसे क्या कारण है कि गंभीर नजर नहीं आ रहा है। यहां यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इस बंगले को रिज्यूम करने का एक प्रस्ताव भी पूर्व में कैंट बोर्ड द्वारा भेजा जा चुका है, हालांकि बंगले पर अवैध रूप से काविज तत्वों के मददगार बोर्ड के कुछ पूर्व सदस्य व कैंट बोर्ड अफसर सफाई में कह सकते हैं कि बंगला 173 रिज्यूम का जाे प्रस्ताव भेजा गया था, उसको विड्रा कर लिया गया था, लेकिन जानकारों का कहना है कि ऐसा कोई प्रावधान एक्ट में नहीं है। यह बार यदि किसी बंगले को रिज्यूम किए जाने का प्रस्ताव सेना मुख्यालय या रक्षा मंत्रालय को भेज दिया जाता है तो फिर उस पर अंतिम निर्णय बोर्ड की बैठक, में तकनीकि तौर पर लिए जाने के लिए कोई अधिकृत नहीं है।उस संबंध में केवल मंत्रालय या सेना मुख्यालय में बैठने वाले उच्च पदस्थ अधिकारी ही अधिकृत होते हैं।
जीएलआर में दर्ज 173 का इतिहास:
आबूलेन स्थित 173 की यदि बात की जाए तो जीएलआर में यह बंगला किन्हीं ज्योति प्रसाद जैन के नाम दर्ज है। उनके कोई संतान नहीं थी। बताया जाता है कि निधन से पूर्व उन्होंने किसी प्रकार की वसीयत इस बंगले को लेकर नहीं की थी। जिसकी वजह से यह बंगला किसी अन्य के नाम मुटेशन नहीं हो सका। हालांकि अवैध रूप से काविज लोगों के पैरोकार रहे कैंट बोर्ड के कुछ पूर्व सदस्यों का तर्क है कि ज्योति प्रसाद के रिश्तेदार किसी दिनेश चंद जैन गाजियाबाद के पास पावर आफ अटार्नी थी। उसका प्रयोग करते हुए ही दिनेश जैन ने तरूण प्रकाश और अतुल एरन के नाम कर दी। बंगले का कुल रकबा करीब तीन हजार गज बताया जाता है। जिस सेल डीड की बात सुनने में आ रही है उसके 17 सौ गज तरूण प्रकाश व 13 गज अतुल ऐरन के नाम लिखी गयी सुनी जाती है। अतुल एरन वाले पार्ट में भाजपा नेता सुधीर रस्तौगी व कारोबारी रवि माहेश्वरी का हिस्सा भी बताया जाता है।
कैंट बोर्ड अफसरों की पहली कारगुजारी
आबूलेन स्थित आवासीय बंगला-173 को लेकर कैंट बोर्ड अफसरों व तत्कालीन बोर्ड के मैंबरों की यह पहली कारगुजारी थी जो सामने आयी थी। आवासीय बंगला वो लोग बेच देते हैं जिनके नाम मुटेशन तक नहीं। बंगला बिकने के साथ ही सब डिविजन ऑफ साइट व चेंज आफ परपज यानि कैंट की धाराओं का गंभीर उल्लंघन, लेकिन खेल का हिस्सा होने की वजह से कैंट बोर्ड के तत्कालीन अफसरों ने बजाए हाथ खोलने के मुट्टी बंद कर ली, ऐसा सुना जाता है। दरअसल शुरू में इस आवासीय बंगले को किराए पर दिया गया।
आवासीय बंगले में अवैध निर्माण
आबूलेन के सिविल एरिया में मौजूद बंगला-173 इस प्रकार खुदबुर्द किए जाने के बाद यहां अवैध निर्माण शुरू करा दिया गया। काफी काम जब पूरा हो गया उसके बाद कैंट अफसरों ने किसी भी जांच में अपनी गर्दन को फंसने से बचाने के लिए साल 2010-11 में तत्कालीन सीईओ कैंट ने बंगले पर सील लगा दी। इसके खिलाफ काविज पक्ष कैंट बोर्ड की लचर पैरवी के चलते ध्वस्तीकरण सरीखी कार्रवाई के विरूद्ध स्टे ले आया। तब से आज तक इस बंगले का स्टेटस फाइलों में यथास्थिति का है। मसलन साल 2010-11 में जो स्टेटस था, वहीं स्टेटस आज भी फाइलों में बना है, भले ही मौके पर मौजूद शोरूम कैंट बोर्ड अफसरों की कारगुजारियों की पोल खोल रहे हैं।
साल 2016 में सीईओ राजीव श्रीवास्तव का एक्शन
आबूलेन बंगला-173 में यूं तो सेटिंग गेटिंग के चलते यथास्थिति के हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी लगातार निर्माण का काम जारी रहा, लेकिन साल 2016 में तत्कालीन सीईओ राजीव श्रीवास्तव ने कार्रवाई करते हुए इसको सील कर दिया। फाइलों में सील होने के बावजूद ताबड़-तोड़ अवैध निर्माण जारी रहा ओर वहां भव्य हाल बना डाले। इस बीच अवैध निर्माण व लोगों के अवैध रूप से काविज होने का उल्लेख करते हुए कैंट बोर्ड ने इस बंगले को रिज्यूम करने का एक प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय व सेना मुख्यालय को भेज दिया। हालांकि बाद में खेल के चलते बताया गया कि रिज्यूम के प्रस्ताव को वापस कर लिया गया है, जबकि कैंट बोर्ड प्रशासन नियमानुसार इसके लिए अधिकृत नहीं। यह निर्णय केवल सेना के अधिकार क्षेत्र में ही निहित है। यह काम प्रसाद चव्हाण के कार्यकाल में हुआ।
कैंट अफसरों की बड़ी कारगुजारी-बोर्ड को ही लगा दिया चूना
आबूलेन बंगला-173 में अवैध कब्जा और अवैध निर्माण तथा हाईकोर्ट के यथा स्थिति के विरूद्ध जब आरोपियों पर कोर्ट की अवमानना का वाद दायर करने की बारी आयी या कहें कार्रवाई की बात कही जाने लगी तो अवैध निर्माण में मदद को लेकर बदनाम रहे स्टाफ ने कारगुजारी दिखाते हुए बोर्ड को चूना लगाने और अवैध काविज लोगों से दोस्ती निभाने के लिए बोर्ड के साथ गद्दारी का काम किया। दरअसल जो कुछ भी हुआ, उसको लेकर नोटिस दिया जाना था। होना तो यह चाहिए था कि जो नोटिस भेजा गया वह आबूलेन बंगला-173 के पते पर भेजा जाता। लेकिन कैंट बोर्ड के हितों को नुकसान पहुंचाते हुए नोटिस भेजा गया बंगला- 173-बी आबूलेन के पते पर। इस खेल ने हाईकोर्ट की अवमानना के दोषियों को साफ बचा लिया। क्योंकि कोर्ट को बता दिया गया कि जिस पते पर नोटिस भेजा गया है, वो तो वहां रहते तक नहीं ना ही उससे कोई वास्ता।
निष्कर्ष:- इस कारगुजारी से साफ है कि जिनके कंधों पर अवैध निर्माण व अवैध कब्जे रोकने की जिम्मेदारी है वो यदि दोस्ती निभाने पर आ जाएं तो क्या नहीं कर सकते। ऐसा नहीं कि कारगुजारियां केवल स्टाफ तक ही सीमित हैं। इस मामले में बोर्ड के सदस्य भी स्टाफ से कमतक नहीं आंके जा सकते। दरअसल हुआ यह कि जब बड़े-बड़े अवैध निर्माणों को लेकर फजीहत होने लगी और मामला पीडी मध्य कमान तक पहुंच गया तो उसके बार कैंट प्रशासन के तत्कालीन अफसरों ने फजीहत से बचने के लिए कार्रवाई-कार्रवाई का शोर मचाना शुरू कर दिया। इस कार्रवाई को टालने के लिए बोर्ड के तमाम सदस्य बजाए बोर्ड के प्रति निष्ठा जाहिर करने के अवैध रूप से काविज लोगों के समर्थन में खुलकर उतर आए और तब हुई बोर्ड की एक बैठक में प्रस्तावित कार्रवाई को टलवा दिया गया। नतीजा सबके सामने है। कैंट बोर्ड के हाथों से करोड़ों रूपए की संपत्ति निकल गयी। पूरी तरह से उसको खुर्दबुर्द कर दिया गया। इसके लिए कोई और नहीं वो तमाम अफसर जिम्मेदार हैं जिनके वारे में कहा जा रहा है कि जो आए थे कोठों को बंद कराने-सिक्कों की खनक देखी तो खुद ही मुजरा करने लगे।