कैंट बोर्ड: 36 करोड़ को मार दी लात, पाई-पाई को मोहताज मेरठ कैंट बोर्ड के अफसर आय के नए-नए स्रोत तलाशने को लेकर कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद की जेब भरने के लालच में छत्तीस करोड़ की रकम पर लात मार दी। कैंट बोर्ड प्रशासन ने यदि कैंट बोर्ड अधिनियम 2006 में दिए गए प्रावधानों के अनुसार काम किया होता तो छत्तीस करोड़ रुपए कैंट बोर्ड के खजाने में जमा होते और अफसरों की वाहवाही भी होती, लेकिन खजाने से ज्यादा चिंता खुद की जेब की थी जिसकी वजह से छत्तीस करोड़ की रकम हाथ में आने से पहले ही निकल गयी। मेरठ टू दिल्ली रैपिड प्रोजेक्ट के चलते लालकुर्ती संजय गांधी मार्केट से दुकानें शिफ्ट की जानी थीं। यहां 36 दुकानें हैं। कैंट बोर्ड का अधिनियम कहता है कि इस प्रकार की परिस्थियों में ओपन ऑक्शन यानि खुली बोली का प्रावधान है। लेकिन रेवेन्यू सेक्शन ने कैंट एक्ट को डस्टबिन में फैंक दिया और ये सभी दुकानें नियमानुसार जो ओपन बोली से दी जा सकती थीं और एक भारी भरकम रकम कैंट बोर्ड के खजाने को मिलती उस सब पर पानी फेरने का काम किया। सुनने में आया है कि बजाए ओपन ऑक्शन कराने के पांच-पांच लाख में सौदा कर दिया गया है। इसी तरह बात की जाए लालकुर्ती गड्ढा मार्केट की तो वहां कुल 58 दुकानें हैं। स्टाफ की मानें तो इनमें से करीब 28 दुकानें ऐसी हैं जिसमें सिकमी किराएदार हैं, जबकि कैंट एक्ट में सिकमी किराएदार का कोई प्रावधान नहीं दिया गया है, यदि मुख्य आवंटी या उसके परिवार का कोई रक्त संबंधी नहीं है तो उस दुकान पर कैंट बोर्ड को कब्जा लेना चाहिए तथा नए सिरे से खुली नीलामी से उक्त दुकान को आवंटित किया जाना चाहिए। लेकिन रेवेन्यू सेक्शन पर इसको लेकर भी खेल के आरोप लग रहे हैं। जो अवैध आवंटी हैं उनसे एक से दो लख तथा जो लीगल आवंटी हैं उनसे पचास से एक लाख तक वसूले जाने की चर्चा बाजार में सुनी जा रही है।