नाला सफाई या निगम के तेल का खेल, मेरठ में नालों की समुचित सफाई ना कराए जाने के चलते चंद घंटों की बारिश में शहर के कई इलाके टापू में तब्दील, जिले के प्रभारी मंत्री की शहर के नालों की सफाई ना किए जाने पर नगरायुक्त को फटकार, इस सब के बीच नाला सफाई के नाम पर तेल के खेल के तमाम पार्षदों के आरोप और इसको लेकर कई बार सदन में हंगामे के बाद भी हालात जस के तस। महानगर नगर निगम क्षेत्र में करीब 450 छोटे बडेÞ नाले हैं। इनमें 16 बडेÞ, 160 मंझोले और 273 छोटे नाले हैं। इन तमाम नालों की एक बार सफाई का दावा नगर निगम के अधिकारी लगातार कर रहे हैं। सूबे के नगर विकास मंत्री अरविंद शर्मा ने मेरठ समेत प्रदेश भर के सभी नालों की सफाई तीस जून कराने का अल्टीमेटम अधिकारियों को दिया था। नालों की सफाई कैसी करायी गयी है इसको लेकर कुछ ज्यादा कहने सुनने की जरूरत नहीं है। पिछले दिनों महापौर व नगरायुक्त तथा कैंट विधायक समेत भाजपा के कई बडेÞ नेताओं को साथ लेकर शहर के नालों की सफाई का निरीक्षण करने को निकले जिले के प्रभारी मंत्री धर्मपाल सिंह पहले ही काफी कुछ कह चुके हैं।
तेल का खेल
जानकारों की मानें खासतौर से नाला सफाई को लेकर सदन में आवाज बुलंद करनेव वाले पूर्व व वर्तमान बोर्ड के पार्षदों की मानें तो नाला सफाई ना होेने के पीछे बड़ी वजह नाला सफाई में लगी मशीनों व वाहनों के नाम पर तेल का खेल है। जब तक तेल के खेल पर रोक नहीं लगेगी तब तक शहर के नालों की सफाई की उम्मीद करना बेमाने हैं। तेल के इस खेल में ड्राइवर से लेकर डिपो प्रभारी व अधिकारी सभी के शामिल होने के आरोप पार्षद लगाते हैं। तेल का यह खेल मशीन के वर्किंग आॅवर को लेकर किया जाता है। पार्कलेन जैसी बड़ी मशीन या नाला सफाई करने वाली दूसरी मशीनों को चार-चार घंटे की दो शिफ्टों में चलाने के नाम पर तेल दिया जाता है। ये सभी मशीनें डीजल से संचालित होती हैं। महानगर में निगम सूरजकुंड, कंकरखेड़ा व दिल्ली रोड तीन वाहन डिपो हैं। तीनों वाहन डिपो से नालों की सफाई व शहर से कूडा कचरा उठाने के लिए नित्य प्रतिदिन मशीनें व दूसरे छोटे बडे़
वाहन जिनमें पोर्कलेन, जेसीबी, डंफर, बडेÞ ट्रक, छोटे हाथी सरीखे तमाम वाहन निकलते हैं। इनके लिए डिपो प्रभारी तेल की पर्ची जारी करते हैं। नाला सफाई में लगने वाली मशीनों के लिए तेल दो शिफ्टों के घंटों के हिसाब से दिया जाता है, जबकि कूडा उठाने वाली गाड़ियों को चक्कर के हिसाब से तेल दिया जाता है। जानकारों की मानें तो जो मशीनें खातसौर से पार्कलेन सरीखी बड़ी मशीनें नाला सफाई के काम में लगायी जाती हैं, तेल का असली खेल उनको चलाने वाले ही करते हैं। मसलन एक शिफ्ट में यदि चार घंटे के लिए मशीन चलाने के लिए यदि डीजल दिया गया तो दो घंटे ही मशीन चलायी जाती है। इतना ही नहीं पूर्व पार्षद अब्दुल गफ्फार, निगम के वार्ड 83 के रिजवान अंसारी, फजल करीब, भाजपा के अनुज वशिष्ठ का आरोप है कि जितना तेल नाला सफाई के नाम पर दिया जाता है, उसका पूरी क्षमता के साथ प्रयोग नहीं किया जाता। यदि तेल के अनुपात में दोनों शिफ्टों में चार-चार घंटे मशीन पूरी क्षमता के साथ चला दी जाए तो कोई वजह नहीं नाला साफ ना हो। एक अन्य पार्षद ने नाम ना छापे जाने की शर्त पर बताया कि होता यह है कि पहली शिफ्ट में तो घंटे मशीन चला भी दी जाती है, लेकिन दूसरी शिफ्ट में तो बिलकुल भी नहीं चलती है।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था वीडियो
पार्कलेन मशीन से नाला सफाई और तेल के खेल का खुलासा करने के लिए पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था। जिसमें पोर्कलेन मशीन को बंद कर ऑपरेटर सो रहा था। सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट वीके गुप्ता ने दावा किया था कि सूरजकुंड डिपो क्षेत्र के किला रोड के नाले पर सफाई के नाम पर जो मशीन लगायी थी, मशीन चलाने के बजाए उसका आॅपरेटर सो रहा था। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि उक्त आपरेटर 23 फर्जी नियुक्तियों के दायरे में आने वाले डिपो के एक बडेÞ कर्मचारी का रिश्तेदार है। जानकारों का कहना है कि वो वीडियो तो वानगी भर है। नाला सफाई के नाम पर पूरे शहर में ऐसा ही खेल चल रहा है।
जीपीएस सिस्टम लगाकर भूले अफसर
नगर निगम की गाड़ियों को जो तेल दिया जाता है उसका समुचित उपयोग हो रहा है या नहीं इस पर नजर रखने के लिए पिछले बोर्ड में अनेक गाड़ियों पर जीपीएस सिस्टम लगवाया गया था। निगम के पूर्व बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य अ. गफ्फार ने बताया कि जीपीएस सिस्टम लगाया तो गया, लेकिन उसकी कभी अफसरों से सुध ली हो, ऐसा कुछ याद नहीं आता। तेल का खेल रोके बगैर नालों की सफाई संभव नहीं है।
नगर स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि नालों की नियमित सफाई करायी जा रही है। पहले राउंड का कार्य मानूसन आने से पहले ही निपट चुका है। दूसरे चरण का सफाई कार्य नियमित रूप से चल रहा है।