घोटले में लिप्त डीलरों को सजा-अफसरों का मजा, उत्तर प्रदेश शासन के फूड सेल ने खाद्य विभाग के जिन अफसरों को घोटाले में कसूरवार ठहराया गया वो तमाम अफसर उनके ऊपर प्रस्तावित कार्रवाई को टलवाकर मजा कर रहे हैं, इसके इतर फूड सेल ने मेरठ के जिन राशन डीलरों को कसूरवार ठहराया था, उनके लिए सजा मुकर्र कर दी गयी। मेरठ जनपद के ऐसे करीब साठ राशन डीलरों पर एफआईआर करा दी गयी है।
यह है पूरा मामला
साल 2018 में मेरठ में बड़ी संख्या में राशन कार्डो में जोड़ी गयी यूनिट जांच के बाद निरस्त कर दी गयी थीं। भाजपा के एक बड़े नेता की शिकायत पर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने यह जांच करायी थी। लेकिन राशन माफिया कुछ अफसरों व राशन डीलरों ने जिन राशनों से यूनिट काट दी गयी थीं, उन काटी गयी यूनिटों का भी राशन गोदाम से उठा लिया। जो राशन गोदाम से उठाया गया था, वो राशन बजाए उपभोक्ताओं को देने के उसकी कालाबाजारी कर दी गयी। खुले बाजार में वो खाद्यान बेच दिया गया। इस बात की भी शिकायत भाजपा नेता ने सूबे के सीएम से कर दी।
फूड सेल ने की थी जांच
जिला आपूर्ति कार्यालय के कुछ अफसरों तथा राशन डीलरों द्वारा मिलकर इतने बड़े घोटाले को अंजाम देने का मामला प्रकाश में आने के बाद शासन ने मामले के आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए फूड सेल से जांच करायी। फूड सेल की जांच में मेरठ के जिला आपूर्ति कार्यालय के कई अफसरों तथा मेरठ के शहर व देहात के कुल 63 राशन डीलरों को गरीबों के नाम पर खाद्यान उठाकर उसकी काला बाजारी के मामले में कसूरवार माना था। फूड सेल की जांच में डीएसओ मेरठ के अफसरों को कसूरवार ठहराए जाने के बाद हडकंप मचा गया था। कसूरवार ठहराए गए अफसरों की गिरफ्तारी की आशंका तक व्यक्त की गयी थी जिसके चलते तब फूड सेल की जांच में दोषी पाए गए अफसर कई दिन तक डीएसओ कार्यालय नहीं आए। दरअसल सभी को एफआईआर व गिरफ्तारी का डर सता रहा थ। इस मामले में जिन 63 राशन डीलराें को आरोप माना गया था उन सभी के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 की धारा 3/7 के तहत एफआईआर दर्ज करा दी गयी। यह बात अलग है कि पुलिस वालों ने गिरफ्तारी से टूट के नाम पर जमकर मांडवाली की।
डीएम मेरठ को प्रमुख सचिव खाद्यान का पत्र
गरीबों के नाम पर राशन डकारने वालों पर फूड सेल की रिपोर्ट मिलने के बाद 9 सितंबर 2020 को तत्कालीन प्रमुख सचिव खाद्यान ने डीएम मेरठ को एक पत्र लिखकर बताया था कि शासन के निर्देश पर फूड सेल की 12 अप्रैल 2019 को भेजी गयी आख्या का संदर्भ ग्रहण करने का आग्रह करते हुए आरोपी ठहराए गए 63 उचित दर विक्रेताओं के विरूद्ध धारा 409, 420, 407, 408, 471 आईपीसी व धारा 3/7 के तहत सभी अभियुक्तों पर एफआईआर दर्ज कराकर जांच कराए जाने के निर्देश दिए थे। साथी ही अभियुक्त बनाए गए सभी राशन डीलरों की दुकानें भी निरस्त किए जाने के निर्देश दिए गए थे।
एसपी फूड सेल ने भेजी थी रिपोर्ट
गरीबों के नाम पर राशन घोटाला अंजाम देने वाले डीएसओ मेरठ के अधिकारियों व 63 राशन डीलरेां को लेकर जांच करने वाली फूड से के एसपी आईपीएस अधिकारी दयाशंकर मिश्रा ने 23 सितंबर 2019 को अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी थी। इस रिपोर्ट में जांच में दोषी मनो गए सभी 63 राशन डीलरों समेत मेरठ जनपद के डीएसओ कार्यालय में कार्यरत दोषी पाए गए अधिकारियों पर भी एफआईआर व विभागीय कार्यवाही की बात कही गयी थी।
कार्रवाई के बजाए यह हुआ
वैसे तो होना चह चाहिए थे कि जब शासन के निर्देश पर सूबे की फूड सेल जैसी ऐजेंसी ने जांच कर रिपोर्ट प्रेषित कर दी थी तो बगैर देरी किए तत्कालीन डीएम व डीएसओ को कसूरवार ठहराए गए अधिकारियों जिनमें तत्कालीन डीएसओ भी शामिल थे एफआईआर करा दी जानी चाहिए थी, लेकिन ऐवसा हुआ नहीं। इसके इतर शासन से मामले की एक ओर जांच कराए जाने के लिए तत्कालीन एक पत्र शासन को भिजवा दिया गया। जिसके चलते फूड सेल की जांच रिपोर्ट में कसूरवार ठहराए गए डीएसओ मेरठ कार्यालय में तैनात उन अधिकारियों को एफआईआर से मुक्ति मिल गयी, लेकिन फूड सेल ने जिन 63 राशन डीलरों को कसूरवार माना उन्हें कोई रियायत नहीं दी गयी।
इन अधिकारियों का माना कसूरवार
डीएसओ कार्यालय मेरठ के जिन अधिकारियों को कसूरवार माना गया उनमें आशाराम तत्कालीन पूर्ति निरीक्षक तहसील सरधना। फूड सेल ने इन विभागीय कार्रवाई की भी संस्तुति की थी। नरेन्द्र सिंह क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी सरधना। इन पर भी विभागीय कार्यवाही की संस्तुति की गयी थी। विकास गौतम तत्कालीन डीएसओ जिन्हें निलंबित किया गया। अजय कुमार तत्कालीन पूर्ति अधकारी भी शामिल थी। इन सभी के खिलाफ फूड सेल ने अपनी जांच में धारा 120बी, 420, 407, 408, 471 फूड ऐल के एसपी ने उक्त रिपोर्ट तत्कालीन प्रमुख सचिद्य खाद्य मनीष चौहान को भेजी थी।
निष्कर्ष
इतने बड़े स्तर पर गरीबों के हक का राशन डकारने के लिए अंजाम दिए गए राशन घोटाले के आरोपी आज भी खुले घूम रहे हैं, इसके उलट जिन राशन डीलरों पर एफआईआर की गयी उन्होंने पुलिस से पीछा छुडाने के लिए अपनी जेबें ढीली कीं। शासन की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस नीति और घाेटाला करने वाले अधिकारियों का बचाव के लिए तमाम हथकंडे अपनाना सवाल तो बनता है
यह कहना है कि डीएसओ का
इस मामले को लेकर तत्कालीन डीएसओ से भी जब आरोपियों पर एफआईआर को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने जानकारी दी कि मामले की एक ओर जांच के लिए शासन को पत्र भेजा गया गया है, जब तक शासन स्तर से निस्तारण नहीं हो जाता तब तक कुछ भी आगे की कार्रवाई संभव नहीं है।