Honey trap मौत को लगा लेते हैं गले,
अच्छा तो यही है कि मिजाज की रंगीनियतों पर काबू रखा जाए, क्योंकि यदि एक बार Honey trap का शिकार हुए तो फिर गए काम से। सौ में एक बामुश्किल दो चार ही मामले ऐसे होते हैं जिनका खुलासा हो पाता है वो भी तब जब पीड़ित के पास कोई ही रास्ते होते हैं पहला यह कि पूरी तरह से बर्बाद होने का इंतजार करे और दूसरा पुलिस की मदद। पुलिस के साइबर एक्सपर्ट का कहना कि बहुत ही बिरले मामलों में पीड़ित पुलिस के पास पहुंचता आमतौर पर लोग Honey trap का शिकार होकर अपनी बर्बादी का तमाशा ही देखते हैं। Honey trap की दुनिया में परतापुर कांड बहुत ही मानइर केस माना जा रहा है। हाईप्रोफाइल बैकग्राउंड वाले ही अक्सर Honey trap के जाल में फंसते हैं और बदनामी के डर से चुप भी रहते हैं, लेकिन यदि थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो इससे बचा भी जा सकता है।
ऐसे बनाए जाते हैं शिकार
व्हाट्सएप हनी ट्रैप घोटाला कैसे काम करता है पहले यह समझना जरूरी है। फर्जी प्रोफाइल स्कैमर्स द्वारा बनाए जाते हैं। इन्हें उपयोगकर्ता पहचान सकते हैं क्योंकि वे पीड़ितों को लुभाने के उद्देश्य से आकर्षक तस्वीरों का उपयोग करते हैं । स्कैमर्स बातचीत शुरू करते हैं और उनका विश्वास जीतने के उद्देश्य से उपयोगकतार्ओं से बहुत दोस्ताना या छेड़खानी वाले तरीके से बात करने की कोशिश करते हैं। एक आम हनी ट्रैप अकाउंट, जिसे अक्सर महिला के रूप में दिखाया जाता है, उसकी कहानी अच्छी होती है, तस्वीरें अच्छी होती हैं और उसे पहचानना मुश्किल होता है।
तकनीक का करते हैं यूज
ट्रैपर्स अपने लक्ष्य के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं। वे इस तरह से सवाल पूछते हैं जिससे संदेह पैदा न हो, उनका उद्देश्य व्यक्तिगत विवरण उजागर करना होता है। संपर्क को गहरा करने के लिए आमने-सामने की मुलाकात या वीडियो कॉल सहित विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि कई ट्रैपर्स पारंपरिक तरीकों से चिपके रहते हैं, कुछ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक उन्नत तकनीकों का उपयोग करते हैं। कुछ लोग छिपे हुए लिंक भेज सकते हैं, जिन पर क्लिक करने पर उन्हें लक्ष्य के डिवाइस तक पहुंच मिल सकती है। मनोवैज्ञानिक रणनीति, जैसे कि लक्ष्य को बाध्य या दोषी महसूस कराना, भी प्रभावी हो सकता है। इसके अतिरिक्त, अन्य मनगढ़ंत प्रोफाइल के साथ सहयोग करने से प्रामाणिकता की धारणा बढ़ सकती है, जिससे ट्रैपर अधिक भरोसेमंद दिखाई देता है।
एक बार फंसे तो गए काम से
साइबर क्राइम एक्सपर्ट का कहना है कि Honey trap कई तरह से काम करता है। Honey trap की शुरूआत सोशल साइट पर एक फैक प्रोफाइल बनाने से की जाती है। प्रोफाइल की डीपी पर खूबसूरत मगर भोलाभाला चेहरा लगाया जाता है। इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ लोगों को ठगना भर होता है। इसके बाद शिकार की तलाश की जाती है। एक बार जब कोई इनकी रेंज में आ जाता है तो उसके बाद होता है उसके शिकार यानि फंसाने का काम। इस काम में जल्दबाजी इसलिए नहीं की जाती ताकि जिसका शिकार किया जाना है वो चौकस ना हो जाए। आमतौर पर होता यह है कि जिसका शिकार होता है उसको जब तक हकीकत पता चलती है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इसके जाल मेंं फंसने वाले अक्सर घर परिवार और बदनामी के डर से पुलिस के पास मदद के लिए जाने से डरते हैं। बहुत ही बिरले ऐसे मामले होते हैं जिनमें लोग पुलिस के पास आते हैं। इनके चुंगल से कोई भी शिकार तब तक नहीं निकल पात जब तक कि जाल बिछाने वाले खुद ना उसको मुक्त करें। होता यह है कि जब तक शिकार को पूरी तरह से बर्बाद नहीं कर दिया जाता तब तक यह गिरोह उसको छोड़ता नहीं। कई बार तो साल दर साल गुजर जाते हैं।
पुलिस से तुरंत सूचना
Honey trap फंसे पीड़ितों को पुलिस से मदद मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए। समय रहते पुलिस को सूचना देकर ऐसे शातिरों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सकता है। आयुष विक्रम सिंह एसपी सिटी