इस बार दलित भाग्य विधाता, यूपी नगर निकाय के दूसरे चरण में शामिल मेरठ नगर निगम के महापौर के चुनाव में इस बार दलित ही भाग्य विधाता साबित होंगे. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि बसपा सुप्रीमो के प्रति दलितों का पहले जैसा मोह इस बार नजर नहीं आ रहा है. इस मोह भंग का कारण भी दलित ही गिनाते हैं. उनका कहना है कि समाज के जिस वर्ग ने दलितों को सबसे ज्यादा सताया है, बहन जी चुनाव के बाद उसी समाज के उसी वर्ग के सुर में सुर मिलाते नजर आती हैं. संभवत: दलितों का यह इशारा अगड़ों की पार्टी समझे जाने वाली भाजपा की ओर था. मेरठ नगर निगम का महापौर चुनने की जहां तक बात है तो दलित ही इस चुनाव में मुसलमानों का भी रूख तय करेंगे. बसपा प्रत्याशी समर्थक भले ही मुसलमानों को लेकर मूंछों पर ताव देते रहें, लेकिन मेरठ का मिजाज लास्ट स्टेज पर आकर चुनाव पलटने का रहा है. चुनाव से एक दिन पहले चुनाव में की गयी मेहनत पर यहां पानी फिरते देरी नहीं लगती. इस बात को पुराने भाजपाई भी अच्छी तरह से जानते हैं और समझते भी हैं. कयास लगाए जा रहे हैं कि बसपा से इतर यदि पचास फीसदी दलित सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी अपने पक्ष में कर लेते हैं तो फिर मुसलमानों को लेकर गठबंधन प्रत्याशी की चिंता काफी हद तक दूर हो जाएगी. अभी भले ही मुसलमान कुछ को बसपा प्रत्याशी के साथ दिखाई देता हो, लेकिन कयास है कि मतदान से ऐन पहले यदि पचास फीसदी भी दलित सपा-रालोद गठबंधन के पाले में पहुंच गया तो फिर सत्तर से अस्सी फीसदी मुसलमान मतदान के दौरान साइकिल की सवारी कर सकता है. भगवा खेमा भी मतदान के दौरान मुसलमानों के ध्रुवीकरण को लेकर आशकित है, शायद यही कारण रहा जो शुक्रवार को जीमखाना मैदान में सीमए योगी की जनसभा में जिस प्रकार से भगवाधारी भाषण की उम्मीद कर रहे थे, वैसे भाषण से परहेज बरता गया. इसके निहितार्थ की जहां तक बात है तो माना जा रहा है कि इसके पीछे मुख्य वजह किसी भी सूरत में मतदान के दौरान मुसलमानों का ध्रुवीकरण रोकना है. यदि यह ध्रुवीकरण के बजाए मुतदान में मुसलमान बंट गया तो चीजें काफी हद तक आसान हो जाएंगी. अब बात कुछ गुर्जरों व पंजाबियों को भाजपा में जहां तक लाने की है, तो मतदान में इससे किसी चमत्कार की उम्मीद करना जल्दबाजी होगी, जहां तक गुर्जरों की भाजपा में एंट्री कराने की बात है तो जिन्होंने एंट्री की उनका या परिवार का वोट भले ही मिल जाए, लेकिन गुर्जरों बारे में कहा जाता है कि जब बिरदारी की बात आती है तो बाकि चीजें काफी पीछे छूट जाती हैं, कमोवेश ऐसा ही कुछ पंजाबियों की एंट्री को लेकर कही जा रही है. जिन पंजाबियों की एंट्री कराई गई हैं, इस एंट्री को उन पंजाबियों के लिए नुकसान का सौदा राजनीतिक पंड़ित मानकर चल रहे हैं, इससे भाजपा प्रत्याशी को कितना और कहां तक फायदा होगा यह चुनाव परिणाम आने के बाद ही साफ हो सकेगा.