महफिल-ए-बारादरी-अदब की महफिल

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महफिल-ए-बारादरी-अदब की महफिल, महफिले बारादरी यानि अदब की महफिल जिसको प्रेस्टिज स्कूल की संचालिका डा. पूनम कपूर ने गाजियाबाद के नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में सजाया था, देर तक सुनने सुनाने का दौर चलता रहा।

मुख्य अतिथि असलम राशिद रहे। तमाम सुनने सुनाने का सहूर रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी से लेकर शायद व पत्रकार सरीखे इसमें शरीक हुए। अध्यक्ष व मशहूर शायर व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पवन कुमार ने कहा कि “किसी ने रक्खा है बाज़ार में सजा के मुझे, कोई ख़रीद ले क़ीमत मिरी चुका के मुझे। मुख्य अतिथि असलम राशिद ने फ़रमाया “हम समझे थे चांद सितारे बनते हैं, पर अश्कों से सिर्फ शरारे बनते हैं। दिन दिन भर आईना देखा जाता है, तब जाकर दो चार इशारे बनते हैं। संस्था की संस्थापिका डॉ. माला‌ कपूर ‘गौहर’ का सावन गीत “सावन की इस पावन रुत में, मन मल्हार ही गाए, तुम छेड़ो ऐसी रागिनी, तन तानपुरा हो जाए…” और ग़ज़ल के शेर “नींद का ऐसा सिलसिला रखना, ख़्वाब में ख़्वाब का पता रखना। तंज़ कर लेना शौक़ से लेकिन, सामने पहले आईना रखना। जब भी ‘गौहर’ ग़ज़ल सुनाना तो, गूंगे लफ़्ज़ों को बोलता रखना” पर दाद बटोरी। संचालक तरुणा मिश्रा ने फरमाया “एक इम्कान है जो दिल में छुपा रक्खा है, आज की रात भी दरवाज़ा खुला रक्खा है। दर्द आए कि ख़ुशी आए, कज़ा या के हयात, हमने सब के लिए दरवाज़ा खुला रक्खा है। अध्यक्ष गोविंद गुलशन को “क्यूं नज़र फेर के बैठे हो, ख़फ़ा हो, क्या हो, हमसे क्यूं बात नहीं करते, खुदा हो, क्या हो। धूप में रहके लुटाते हो मुहब्बत अपनी, तुम हो बादल कोई..। रौशनी बांट रहे हो ये बताओ तो ज़रा, क्यूं.. । इनके अलावा” नेहा वैद का गीत “हमने तो घर बुलाया.. डॉ. वागीश सारस्वत की ”शर्त ये है कि तुम मुस्कुराती रहो..डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया  “सूरज पूरब से निकलेगा,  के अलावा योगेन्द्र दत्त शर्मा,  जगदीश पंकज‌ के नवगीत, प्रतीक्षा सक्सेना दत्त की कविता ‘कील’, पुष्पा जोशी की कविता “टपका”  आदि की रचनाएं भी सराही गईं।

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