मेरठ मांगे जाम से आजादी

मेरठ मांगे जाम से आजादी
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मेरठ मांगे जाम से आजादी,

मेरठ/गुजरे साल में यदि किसी मुसीबत का सबसे ज्यादा सामना मेरठ के लोगों ने किया तो वो है जाम की समस्या। जाम के नाम पर बातें तो बहुत कहीं गयीं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहे। जाम की मुसीबत से मुक्त कराने का दम भरने पाले अफसरों ने चाहे वो मेडा के अफसर हो या फिर निगम प्रशासन के अथवा पुलिस के अफसर सभी ने दावे खूब किए लेकिन किसी एक अफसर का दावा ऐसा नहीं जो जमीन पर नजर आता हो। और तो और दावे करने वाले अफसर का ठिकाना सिविल लाइन एरिया है। जब सिविल लाइन ही जाम से बेहाल है तो बाकि शहर की बात करना अभी बेमाने होगी।
कार्रवाई के बजाए कब्जों पर अफसर क्यों हैं मौन
वीआईपी में शुमार सिविल लाइन इलाके में हटवाने के बजाए अफस कब्जों पर मौन बने है। पूरे शहर के अवैध कब्जे हटवाने का दम भरने वाले मेडा और नगर निगम के अफसर ही सिविल लाइन इलाके में सरकारी जमीन पर कर लिए गए अवैध कब्जों से पूरी तरह से बेखबर हैं। निगम के नगरायुक्त का कैंप कार्यालय और मेडा वीसी का मुख्य कार्यालय सिविल इलाके में पड़ता है। ये दोनों ही बडेÞ अफसर दिन में कई बार आते जाते हैं। लेकिन लगता है कि सड़क किनारे नाले नालियों की पटरी पर कर लिए गए अवैध कब्जे इन्हें या तो नजर नहीं आते या फिर मामला सेटिंग गेटिंग का है। यदि मामला सेटिंग गेटिंग का भी नहीं है तो फिर इन दोनों अफसरों पर या तो ऊपरी दवाब है जो सड़क किनारे नाले नालियों पर किए गए कब्जों पर कार्रवाई के लिए हाथ खोलने के बजाए फिलहाल तो हाथ बांधे आ रहे हैं, वर्ना क्या वजह है जो मेडा आफिस से लेकर पुलिस लाइन तक सड़क पर किनारे होटल ढावे खुल गए हैं। यह हाल तो तब है जब पूरे दिन जाम सरीखे हालात रहते हैं। इस रास्ते से पुलिस प्रशासन के तमाम उच्च पदस्थ अफसरों का गाड़ियां यहां से गुजरती हैं, उसके बाद भी नजर नहीं पड़ना और कार्रवाई का ना किया जाना, इससे लगता है कि जरूर इस सब के पीछे कोई ऐसा है जो सब पर भारी है। वर्ना जहां निगम के नगरायुक्त का कैंप कार्यालय हो। कई घंटे जहां नगरायुक्त के गुजरते हों, उससे चंद कदम की दूरी पर सड़क किनारे अवैध मार्केट का गुलजार हो जाना अब यही मान लिया जाए कि निगम प्रशासन के किसी ने हाथ बांध रखे हैं वर्ना सिविल लाइन के इलाके से अवैध कब्जे हटवाने के लिए फोर्स की उपलब्धता को लेकर भी कोई समस्या नहीं है। एक कॉल पर पुलिस लाइन से पैदल ही रिजर्व फोर्स आ जाएगा, लेकिन मुसीबत यह है कि शुरूआत कौन करे। नए साल का पहला दिन है, इन अवैध कब्जों की वजह से लगने वाले जाम में फंसने वालों को उम्मीद है कि निगम प्रशासन की नींद शायद टूट जाए। वैसे जो आसार नजर आ रहे हैं, उससे लगता नहीं कि कुछ होगा। यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि मेरठ महोत्सव पांच दिन चला। इन पांच दिनों में भी कई फड वाले वहीं अपने जगह पर जम रहे। कुछ को जरूर हटाया गया, लेकिन मेडा आॅफिस वालों को नहीं छुआ गया।
पैदल निकला भी दुश्वार
शहर के कमिश्नरी चौराहे की सीमाएं थाना लालकुर्ती व सिविल लाइन से मिलती हैं। लेकिन जाम से निपटने के लिए इंतजाम की बाता करें तो यह चौराहा अफसरों को आइना दिखाने को काफी है। दो-दो थानों की समीमा कमिश्नरी, एसएसपी समेत कई पुलिस अफसरों के चंद कदम की दूरी पर बंगले उसके बाद भी सुबह 10 बजे से शाम पांच बजे तक अवैध मार्केट गुलजार रहती है। यदि कोई जलसा या जुलूस आ जाए तो पैदल निकलना भी दुश्वार हो जाता है। जाम ना लगे इसके नाम पर तमाम काम होते हैं, लेकिन जो अवैध मार्केट है, बस उसे नहीं हटाया जाता।

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