मत बढ़े मतदान घटा चुनाव फंसा, मेरठ नगर निगम के पिछली बार हुए चुनाव के मुकाबले इस बार करीब सवाल लाख मत बढ़े हैं. पिछली बार जब महापौर का चुनाव हुआ था तो कुल वोट करीब 11.23 लाख था, इस बार कुल वोट 12,57,872 हैं. पिछली बार चुनाव में मतदान का प्रतिशत करीब 48 फीसदी थी, लेकिन इस बार मत बढ़ने के बावजूद मतदान का प्रतिशत घटकर करीब 23 फीसदी रह गया है. इतने कम मतदान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस प्रकार का चुनाव लड़ा और लड़वाया गया है. यह प्रतिशत महापौर के लिए हुए मतदान का है, इसके इतर सर्वाधिक मतदान करीब 71 फीसदी किठौर में हुआ है. होना तो यह चाहिए था कि जब करीब सवाल लाख मत बढ़े हैं तो इसका सीधा फायदा मतदान में उठाया जाता, लेकिन हुआ इसके एकदम उल्टा है. एक बारंगी तो मतदान का प्रतिशत घटकर 37 पर भी जा पहुंचा था. उसके बाद कुछ तेजी आयी और खींचतान कर किसी तरह 45.68 फीसदी तक पहुंचाया जा सका. इतने कम मतदान के साइड इफैक्ट क्या होंगे इसका अनुमान नहीं. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इससे यह साफ हो गया कि मतदान कराने की तैयारियां कैंसी थीं. मतदान का प्रतिशत इतना नीचे रह जहाने के बाद चुनाव फंसा हुआ साफ नजर आता है, चुनाव फंस किसका रहा है, यह साफ हो सकेगा 13 मई को जब परिणाम आएंगे. वहीं दूसरी ओर यदि पूरे जनपद की बात की जाए तो 316 वार्ड में यह 50.01 फीसदी रहा, मेरठ नगर निगम के इसमें 90 वार्ड हैं जिनमें 45.68 फीसदी तक रहा. इसके इतर सभी के अपने-अपने जीत के दावे हैं, यदि सभी जीत रहे हैं तो फिर हार कौन रहा है.
लाव-लश्कर के बाद भी यह हाल: चुनाव लड़ाने के नाम पर पूरा लाव लश्कर मैदान में उतार दिया गया था, मतदान के दौरान भी धुरंधरों की टीम मैदान में थी, जहां से भी छोटी सी भी सूचना आती, पलक झपकते ही वहां पहुंच जाते. कंकरखेड़ा से गड़बड़ी की खबर आयी तो वहां जा पहुंचे. इतनी ज्यादा भाग-दौड़ करने और दिन भर पसीना बहाने के बाद भी मतदान का प्रतिशत यूं लुढ जाना इस बात का सबूत है कि ठेके छोड़ने को चुनावी मैनेजमेंट नहीं कहते, हां जिनका जिम्मेदारी के नाम पर अलग-अलग ठेके दिए जाते हैं उनकी पौह बारह जरूर हो जाती है.
वाटसअप पर नजर आए: चुनाव की पूर्व संध्या से तमाम समर्थक वाट्सअप पर जबरदस्त तरीके से मतदान को लेकर प्रेरित कर रहे थे, ईवीएम का बटन जोर से दबाने को कह रहे थे, लेकिन जो वोटसअप ग्रुप पर ईवीएम का बटन जोर से दबाने को कह रहे थे, उन्होंने यदि धूप व गर्मी की परवाह न करते हुए मतदाताओं को निकालने के लिए प्रेरित किया होता तो शायद हालात कुछ और बेहतर हो सकते थे.
पहले से थी आशंका: मतदान का जैसा हश्र हुआ है उसकी आशंका शुरूआत से ही नजर आने लगी थी. दोहपर करीब तीन बजे तक लगभग 31 फीसदी पर आकर जो गाड़ी अटकी उससे साफ नजर आने लगा था कि कहांं तक गाड़ी खींच सकती है. चुनाव कार्यालय पर संगठन के तमाम दिग्गजों के अलावा प्रदेश पदाधिकारी जिन्हें मेरठ का दायित्व दिया गया था, शाम पांच बजे जब उन्हें मतदान का प्रतिशत पता चला तो संगठन को तंज भरा उलाहना देना नहीं भूले. बोले की दावे तो साठ फीसदी से ऊपर के किए जा रहे थे. ऐसा क्या हुआ जो मतदान का प्रतिशत इतना नीचे चला गया. नसीहत के साथ मतदान का प्रतिशत बढ़ाए जाने काे कहा गया. सफाई दी गयी कि कोशिश कर रहे हैं, कोशिश कैसी रही इसका अंदाजा लगभग 43 फीसदी पर अटक गए गाड़ी से लगाया जा सकता है. मतदान को लेकर उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पीएसी वाले बूथ पर महज दो सौ वोट पड़े थे, कड़ी मेहनत करनी पड़ी तब कहीं जाकर संख्या कुछ बढ़ी. मतदान के चक्कर में तीन-तीन बूथों पर जाकर मेहनत करनी पड़ी उसके बाद भी हश्र क्या हुआ सामने है. जो कुछ हालात नजर आ रहे हैं उससे यही कहा जा सकता है कि कुछ अपनी गलतियां, कुछ चुनावी मैनेजमेंट की खामियां और रही सही कसर पूरी कर दी निर्वाचन कार्यालय के स्टाफ की कारगुजारी ने. तीन बजे तक करीब 31 फीसदी था, जिसके चलते आशंका व्यक्त की जा रही है कि कड़े मुकाबले के चलते इस बार मेरठ नगर निगम के मेयर का चुनाव फंस गया लगता है, इसका नफा और नुकसान किस के हिस्से में आना है यह कहना जल्दबाजी होगी. हालांकि बाद में कुछ तेजी लाने का प्रयास किया गया. ग्राउंड रिपोर्ट की यदि बात की जाए तो कम मतदान का असली कारण बेतरकीब मतदाता सूची है. कई ऐसे मतदाता शहर के अलग-अलग बूथों पर मिले जिन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने लोकसभा व विधानसभा तथा नगर निगम के पिछली बार हुए चुनाव में मतदान किया था, लेकिन इस बार उनका वोट काट दिया गया है. वोट कैसे कट गया यह कोई बताने को तैयार नहीं. कुछ ने शिकायत की कि उनके पास मतदान करने के लिए पर्ची आयी, जब वो बूथ पर पहुंचे तो वहां मौजूद मतदाता सूची में उनका नाम ही नहीं मिला. उन्हें बताया गया कि इस बूथ पर नहीं कुछ दूरी ओर एक अन्य बूथ है, वहां चले जाओ वहां पर नाम है, वहां पहुंचे तो वहां भी मतदान नहीं कर सके. वहां से बताया गया कि इस बूथ पर नहीं किसी अन्य बूथ शायद मतदाता सूची में नाम मिल जाए. दो बूथ पर भटकने के बाद फिर तीसरे बूथ पर जाने की हिम्मत नहीं जुट सके.