यूं ही नहीं उड़ी पतंग-वजह भी है

यूं ही नहीं उड़ी पतंग-वजह भी है
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यूं ही नहीं उड़ी पतंग-वजह भी है, मेरठ नगर निगम के महापौर के चुनाव के मतदान में यदि साइकिल चलने के इतर पतंग उड़ी भी है,  जैसा की दावा भाजपा के कुछ नेता कर रहे हैं तो उसके पीछे ठोस कारण भी है और इन ठाेस कारणों के पीछे मतदान के दौरान मुसलमानों के बीच साइकिल के न चलने और पतंग के आसमान में इठलाने के पीछे खुद सपा सुप्रीमो की नीतियां हैं. हालांकि यहां यह भी गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव की यदि बात की जाए तो प्रदेश भर के तमाम 17 नगर निगमों के महापौर के चुनाव में केवल मेरठ नगर निगम के महापौर का चुनाव का मतदान ही इकलौता ऐसा है, जहां माना जा सकता है कि पतंग आसमान में इठलायी है, लेकिन यह गई कहां तक है, इसका तो सही-सही पता आने में अभी चंद घंटे शेष है. शनिवार को तस्वीर पूरी तरह से साफ हो जाएगी, लेकिन यहां बात पंतग को आसमान तक पहुंचने के लिए रास्ता किसने दिया इसकी हो रही है. मेरठ के मुस्लिम इलाकों में सपा से नाराजकी की एक बड़ी वजह पिछले दिनों के जो भी घटनाक्रम हुए हैं, उनमें मुखर होने कर बजाए साथ देने के सपा सुप्रीमो का रवैया बैकफुट वाला रहा. मुस्लिम इस नाराजगी की बड़ी वजह आजम खान  प्रकरण और पुलिस कस्टडी में अंजाम दिए गए अतीक अहमद हत्या कांड पर अखिलेश के रवैये को बताते हैं. उनका साफ कहना है कि औबेसी मुखर थे इसलिए पतंग पर जाना बनता है.  अनौपचारिक बातचीत में मस्लिम मेरठ व यूपी समेत देश भर में हुई कई घटनाएं गिना देते हैं, उन्होंने इसका पूरा ब्याेरा सहेज कर रखा है. इसके अलावा जो दूसरी वजह वो यह कि मेरठ नगर निगम क्षेत्र में मुसलमान मतदाताओं की भारी भरकम मसलन इतनी की चुनाव परिणाम को अपने बूते प्रभावित कर सकते हैं, इतनी संख्या होने के बाद भी किसी मुस्लिम को प्रत्याशी बनाने गुर्जर को प्रत्याशी बनाया. इस बातचीत में मुस्लिमों के नाम पर जो नाम गिनाए गए हैं उनमें पूर्व कैबिनेट मंत्री शाहिद मंजूर, शहर विधायक रफीक अंसारी की पत्नी, दिलशाद मुन्ना सरीखे नाम गिनवाए गए हैं. मुसलमानों का मानना है कि यदि सपा ने किसी मुसलमान को यहां प्रत्याशी बनाया होता तो शायद पतंग के लिए चुनावी स्पेस नहीं बचता. जो भी चुनाव स्पेस मतदान के दौरान पंतग को मिला है उसके लिए कोई अन्य या मुसलमान नहीं बल्कि सीधे-सीधे सपा सुप्रीमो को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. हालांकि इस बातचीत में यह भी स्पष्ट कर देते हैं कि पतंग से कितना नुकसान सपा-रालोद गठबंधन प्रत्याशी को पहुंचा है या पहुंचा भी है या नहीं यह पक्की तौर पर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि चुनाव की पूर्व संध्या पर जो नाराज चल रहे थे, उनकी काफी हद तक मान-मुन्नवल कर ली गयी थी.

पतंग ही क्यों: इस सवाल पर इस अनौपचारिक बातचीत में बताया गया कि बसपा के हशमत मलिक का चुनाव उनकी खुद की गलतियों तथा दलित के बंट जाने की वजह से खराब हुआ. मतदान के दौरान आश्चर्यजनक रूप से दलित ही नहीं कुछ इलाकों में वाल्मीकि भी सपा-रालोद गठबंधन की ओर जाता नजर आया. यह बसपा के लिए बुरी खबर के समान है. रही सही कसर हमशत मलिक के सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कुछ वीडियोज ने पूरी कर दी. इसी वजह से बसपा का चुनाव मतदान के दौरान सिमटता नजर आया. वैसे पतंग की स्थिति में सुधार के लिए कुछ धर्म गुरूओं को सपा के मुस्लिम नेता जिम्मेदार मान रहे हैं. उनका कहना है कि पतंग इतनी उड़ी नहीं जितनी की भाजपाइयों ने प्रोपोगेंडा कर दिया.

कांग्रेस से दूरी की वजह: इस सवाल पर मुस्लिमों का कहना है कि अरसे से यह दूरी बनी है, कांग्रेस की ओर से इस दूरी को पाटने की कोई पहल होती नजर नहीं आ रही, इतना ही नहीं यह दूरी अभी यूं ही बनी रहेगी. लेकिन सबसे बड़ी वजह प्रत्याशी को लेकर गिनायी जा रही है. यदि किसी मुस्लिम को ही यहां उतारना था तो बहुत से नाम थे, जो कम से कम भले ही चुनाव तो नहीं जीत पाते, लेकिन हां कांग्रेस का चुनाव जरूर खड़ा कर देते चुनाव नजर भी आता. इस बात से कांग्रेस के गैर मुस्लिम नेता भी इत्तेफाक रखते हैं. कुछ का तर्क है कि सुरेन्द्र सैनी को ड्राप करना गलती रही. लेकिन इसके लिए आलाकमान के बजाए जिन पर समानांतर कांग्रेस संगठन चलाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं, उनकी धीरज गुर्जर की मार्फत की गयी पैरवी को कारण बता रहे हैं.

आप कंसीडर करने की स्थिति में तो आए: आम आदमी पार्टी की स्वीकार्यता को लेकर जब मुस्लिमों से पूछा गया तो उनका कहना था कि मेरठ में आम आदमी पार्टी अभी इस स्थिति में नहीं कि उसको मतदान के दौरान कंसीडर किया जाए, उनका कहना है कि पार्टी ठीक है, लेकिन जहां तक मेरठ की बात है तो संगठन केवल रूम भर  में नजर आता है. जब तक वार्ड व बूथ स्तर पर संगठन नजर नहीं आएगा, तब तक आप को कैसे कंसीडर किया जा सकता है.

नफा है तो नुकसान भी: मतदान के दौरान जैसा की भाजपाइयों का दावा है कि पतंग खूब उड़ी है जिसके चलते मुस्लिम मतदाता सपा-रालोद, बसपा, एमआईएम व कांग्रेस में बंट गया, वहीं दूसरी ओर इस बार मतदान के दौरान दलित जहां गठबंधन पर जाता दिखाई दिया तो वहीं दूसरी ओर चौंकाते हुए बल्मीकि भी भाजपा से छिटकता हुआ नजर आया, छिटका ही नहीं बल्कि यह छिटका हुआ वाल्मीकि गठबंधन प्रत्याशी का झंड़ा उठाए दिखाई दिया. इसके अनेक कारण गिनाए जा रहे हैं. इसी के चलते सवाल पूछा जा रहा है कि पतंग के उड़ने से कितना फायदा और दलित व वाल्मीकि के छिटकने से कितने नुकसान की आशंका है. इस सवाल का सही जवाब तो परिणाम आने के बाद ही मिल सकेंगे.

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