NHAI-अफसर मस्त-गुजरने वाले पस्त

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NHAI-अफसर मस्त-गुजरने वाले पस्त,

एनएचएआई के अफसर कमाई में मस्त, टोल से गुजरने वाले पस्त
काशी टोल पर अफसरों की लापरवाही की कीमत चुका रहे बेकसूर
सांसों के लिए तड़पते रहते हैं मरीज, टोल पर लंबे जाम में फंसी रहती है एम्बुलेंस
अक्सर जाम रहते हैं सेंसर कई किलोमीटर तक लगता है जाम, कई बार फंसी है वीआईपी गाड़ियां भी
मेरठ/पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट के मानिंद माने जाने वाले मेरठ दिल्ली एक्सप्रेस वे के काशी टोल पर एनएचएआई (नेशनल हाईवे आॅथरिटी) के अफसरों के स्तर से जानलेवा लापरवाही बरती जा रही है। एनएचएआई के अफसर कमाई में मस्त हैं जो गाड़ियां इस टोल से भारी भरकम फीस देकर गुजरती हैं, उनमें बैठे लोग यहां अक्सर लगाने वाले जाम की वजह से पस्त रहते हैं।
काशी टोल प्लाजा पर अक्सर कई-कई किलोमीटर लंबा जाम लगा रहता है। इस जाम की कीमत उन्हें चुकानी पड़ती है जिन्हें सफर में जल्दी होती है। कई बार ऐसे भी लोग जाम में फंस जाते हैं जिन्हें फ्लाईट पकड़नी होती है। या फिर काशी टोल प्लाजा पर अक्सर जाम की कीमत एम्बुलेंस में ले जाए जा रहे वो मरीज चुकाने हैं जिनकी सांसों की डोर बेहद कमजोर पड़ चुकी होती है। जिनके लिए एक-एक पल निहायत ही कीमती होता है क्योंकि हर अगला पल एम्बुलेंस में ले जाए जा रहे मरीज की सांसों पर भारी होता है। और ऐसे में नई दिल्ली या फिर गुडगांव के किसी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में मरीज लेकर जा रही एम्बुलेंस काशी टोल प्लाजा पर लगे जाम में फंस जाए तो अंदाजा लगा लीजिए कि मरीज और तिमारदारों जिनके लिए देरी का एक-एक पल जिंदगी पर भारी होता है उन पर क्या बीतती होगी।
काशी टोल प्लाजा पर आए दिन की इस मुसीबत की वजह एनएचएआई प्रशासन के जो अफसर यहां रखरखाव के लिए रख छोडेÞ गए हैं उनके स्तर से बरती जाने वाली गंभीर व बड़ी लापरवाही है। इंतहा तो यह हो गयी है कि यहां से गुजरने वाले चालक अक्सर कहते हैं कि काशी टोल प्लाजा की कुंडली में जाम का शनि आकर बैठ गया है। जब भी इस टोल से गुजरते हैं जाम की मुसीबत से वाबस्त होना पड़ता है।
ऐसा नहीं कि ऐसे इमरजैंसी हालात के लिए कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं, इंतमाम भी किए गए है और एनएचएआई अफसर यदि चाहें तो इन इंतजामों की बूते हमेशा यहां से गुजरने वाले ट्रैफिक को सुगम भी बना सकते हैं। अब इन्हें इतना करना है कि टोल पर जाम ना लगने दें। पीक आॅवर में गाड़ियों की संख्या बढ़ने की दशा में जो इमरजैंसी गेट या कहें वीआईपी लेन हैं उसका भी यूज गाड़ी खासतौर से आपातसेवा में लगी गाड़ियों को निकालने के लिए कर लिया करें। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। दरअसल हो यह रहा है कि जो सेंसर यहां लगाए गए हैं वो अब आॅउटडेटेड हो गए बताए जाते हैं। इन्हें इसलिए नहीं बदलवााया जा रहा है क्योंकि उसमें वक्त बहुत ज्यादा लग जाएगा। एनएचएआई के अफसरों को यहां से गुजरने वाली गाड़ियों का मिलों लंबे जाम में फंसे रहना मंजूर है लेकिन जो बदइंतजामी उनकी लापरवाही के चलते यहां कायम है उसको दूर करना मंजूर नहीं।
गड़करी के दावों पर भारी लापरवाही अफसरों की कमाई
नियम है कि हाइवे पर कहीं भी होर्डिंग यानि विज्ञापन पट नहीं लगाए जाएंगे। मेरठ दिल्ली एक्सप्रेस वे और इससे सटे एनएचएआई के हाइवे-58 पर जगह-जगह लगे होर्डिंग्स इसको लेकर बनाए गए कायदे कानूनों को मुुंह चिढ़ाते नजर आएंगे। प्रतिबंध के बावजूद हाइवे पर होर्डिंग्स एनएचएआई के किस अफसर की अनुमति से लगे हैं और इसके लिए जिम्मेदार पर क्या कार्रवाई की गई है। वैसे ऐसे मामलों में कार्रवाई तो संबंधित अफसर बनती है लेकिन सवाल यह है कि यह कार्रवाई करेगा कौन। जानकारों की मानें तो जो भी होर्डिग्स अवैध रूप से अफसरों की मदद से लगवाए गए हैं उनकी एवज में फी होर्डिंग एक तय रकम जेब में आती है। हर माह होने वाली इस मोटी कमाई से कौन अफसर हाथ धोना चाहेगा, इसलिए पब्लिक भले ही मुसीबत उठाती रहे, लेकिन अफसरों को केवल अपनी कमाई से सरोकार भर है। यहां हादसों की बात इसलिए कही गयी है क्योंकि होर्डिंग्स कई बार गाड़ी चला रहे शख्स का ध्यान डाइर्वट कर देते हैं। हाइवे पर जहां आमतौर पर 150 की स्पीड पर गाड़िया फर्राटा भरती हैं वहां पल भर के लिए नजर का चूकना यानि मौत को गले जा लगना है।
एनएचएआई की जमीन पर अवैध कब्जा
एनएचएआई के दोनों ओर की जमीन एनएचएआई की संपत्ति है। जगह जब एनएचएआई की है तो फिर उस पर होर्डिग्स कैसे लग गए और किस ने इसकी अनुमति दी। एनएचएआई के उच्च पदस्थ अफसर या तो इस गोरखधंधे का हिस्सा है या फिर उन्हें इतनी फुर्सत नहीं कि मेरठ में क्या घपले किए जा रहे हैं एक बार आकर इसकी भी तहकीकात कर लें।
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