स्विमिंग पूल नहीं उनका पानी भी खतरनाक, मेरठ में तमाम कायदे कानूनों को ताक पर रखकर अवैध तरीके से संचालित किए जा रहे स्विमिंग पूल ही नहीं उनका पानी भी बेहद खतरनाक है। खासतौर से यह बच्चों के लिए काफी खतरनाक बताया गया है। नियमानुसार स्विमिंग पूल का पानी समय समय पर या फिर एक निर्धारित अवधि में साफ किया जाना बेहद जरूरी है, लेकिन ऐसा किया नहीं जा रहा है बल्कि सफाई के नाम पर केवल क्लोरीन डाल दी जाती है। स्विमिंग पूल या वाटर पार्क का गंदा पानी कई रोगों का कारण होता है। गंदे पानी के कारण हेपेटाइटिस ए, हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियां फैल सकती हैं। वहीं पूल का पानी बदले बिना ही साफ करने के लिए पानी में क्लोरिन की मात्रा ज्यादा डाल दी जाती है। यह क्लोरीन हाइड्रोजन आयन के साथ मिलकर माइल्ड एसिड बनता है। इससे स्विमिंग पूल का पानी एसिडिक पीएच का होता है। पानी का पीएच वैल्यू 8 से अधिक नहीं होना चाहिए। एक्सपर्ट के मुताबिक इसलिए जब भी स्विमिंग पूल में नहाने जाए तो पता करना चाहिए कि पानी में क्लोरीन की कितनी मात्रा है। अगर पानी में ज्यादा मात्रा में क्लोरीन है तो नहाने से बचना चाहिए। यह सेहल के लिए हानिकारक है। स्विमिंग पूल और वाटर पार्क का पानी ही एक तरह से जहरीला हो गया है। उनका पीएच लेवल यानि पोटेशियम ऑफ हाइड्रोजन की मात्रा ज्यादा होती है। आमतौर पर मनोरंजन और गर्मी से राहत के लिए लोग स्विमिंग पूल में घंटों समय बिताते हैं। वहीं, स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम और प्रशासन की लापरवाही के चलते पानी के खेल की यह मस्ती शहर के लोगों खासतौर पर बच्चों के लिए भारी पड़ सकती है। क्योंकि गर्मियों की शुरुआत होते ही शहर के गली मोहल्लों, होटल रेस्टोरेंट में स्विमिंग पूल्स और वाटर पार्क खुलने शुरू हो जाते हैं। इनमें मानकों की जमकर अनदेखी होती है जिसके चलते इन पूल्स और पार्क का पानी सेहत को खराब कर सकता।
नहीं बदला जाता है पानी
इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सालभर में एक भी पूल या वाटर पार्क के पानी की क्वालिटी जांच ना तो निगम करता है और ना ही स्वास्थ्य विभाग। ऐसे में गंदे पानी को साफ करने के लिए भरपूर मात्रा में क्लोरिन मिलाकर पानी का पीएच लेवल बिगाड़ दिया जाता है।
ना एनओसी, ना किट, ना वाटर क्वालिटी जांच
गौरलतब है कि शहर में एक दर्जन से अधिक छोटे बड़े स्विमिंग पूल और तीन वाटर पार्क संचालित हैं। नियमानुसार इन वाटर पार्क के पास भूगर्भ जल दोहन की एनओसी से लेकर, पानी के पीएच स्तर और क्लोरीन की मात्रा को नापने के लिए किट होना जरुरी है। जितनी बार भी पानी में क्लोरिन डाला जाए उसका पीएच स्तर जांचा जाए। लेकिन ऐसा नही हो रहा है। स्थिति यह है कि अधिकतर पूल्स और पार्क में पानी का पीएच स्तर मापने तक के लिए में किट ही नहीं है। यहां पानी का रंग देखकर ही पीएच का आंकलन कर लिया जा है। पानी का रंग पीला होने के बाद अंदाज से क्लोरीन और कई बार फिटकरी मिलाकर पानी की सफाई कर दी जाती है। पानी की पीएच स्तर मापे बिना ही मनोरंजन और स्पोटर्स एक्टिविटी के लिए पूल्स और पार्क खोल दिए जाते हैं। सालभर में एक भी वाटर पार्क या पूल के पानी के क्वालिटी का निरीक्षण भी निगम स्तर पर नही किया गया है। स्थिति तो यह है कि अधिक स्वीमिंग पूल बिना भूगर्भ जल विभाग की एनओसी के संचालित हो रहे हैं। यहां जमकर पानी की चोरी भी की जा रही है और लोगों की सेहत से खेला जा रहा है।
सिर्फ क्लोरिन से हो रही सफाई
स्विमिंग पूल या वाटर पार्क का गंदा पानी कई रोगों का कारण होता है। गंदे पानी के कारण हेपेटाइटिस ए, हैजा और टाइफाइड जैसी बीमारियां फैल सकती हैं। वहीं पूल का पानी बदले बिना ही साफ करने के लिए पानी में क्लोरिन की मात्रा ज्यादा डाल दी जाती है। यह क्लोरीन हाइड्रोजन आयन के साथ मिलकर माइल्ड एसिड बनता है। इससे स्विमिंग पूल का पानी एसिडिक पीएच का होता है। पानी का पीएच वैल्यू 8 से अधिक नहीं होना चाहिए। एक्सपर्ट के मुताबिक इसलिए जब भी स्विमिंग पूल में नहाने जाए तो पता करना चाहिए कि पानी में क्लोरीन की कितनी मात्रा है। अगर पानी में ज्यादा मात्रा में क्लोरीन है तो नहाने से बचना चाहिए।