अफसरों की कारगुजारी सेना पर भारी, मेरठ के छावनी इलाके में भारत सरकार के खुर्दबुर्द किए जा रहे ओल्ड ग्रांट के बंगलों के पीछे कैंट के कुछ अफसरों की कारगुजारी सुरक्षा पर भारी पड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। बंगला 22बी व वेस्ट एंड रोड स्थित बंगला 235 इसका बड़ा सूबत हैं। ये दोनों ही बंगले मेरठ कैंट के सीईओ और डीईओ कार्यालय की कारगुजारी का बड़ा सबूत भी हैं। तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर जिस प्रकार से ओल्ड ग्रांट के बंगलों की खरीद फरोख्त की जा रही है। कुछ बंगलो में तो बाकायदा प्लाटिंग तक कर दी गयी है। कुछ बंगलों में फ्लैट बना दिए गए हैं तो कुछ में व्हाईट हाउस सरीखे होटल बार एंड रेस्टोरेंट खोल दिए गए हैं। नियमानुसार कैंट क्षेत्र में ओल्ड ग्रांट के बंगलों की खरीद फरोख्त संभव नहीं है। फ्री होल्ड जो पुराने बंगले हैं उसमें भी तमाम कायदे कानूनों के बाद ही एक सीमित स्तर तक ही खरीद फरोख्त की अनुमति है, लेकिन इन सब में एक बात कॉमन है वो यह कि देश की सबसे पुरानी छावनी जहां सेना की कई यूनिटें रहती हैं, उनके अफसरों के सरकारी आवास हैं। अफसराें के मैस हैं, उनकी सुरक्षा को कोई खतरा ना पैदा हो, लेकिन हो रहा है इसका उलटा है। फ्री होल्ड के बंगले तो दूर की बात रही, मेरठ के छावनी क्षेत्र में इन दिनों तमाम ओल्ड ग्रांट के बंगलों की जबरदस्त खरीद-फरोख्त चल रही है। न कोई रोकने वाला है न कोई टोकने वाला है। भारत सरकार ने ओल्ड ग्रांट के इन बंगलों की देखरेख व नजर रखने की जिम्मेदारी कैंट के जिन अफसरों को दी है वो पूरी तरह से लापरवाह नजर आते हैं। अफसरों की इस लापरवाही को लेकर तमाम बातें सुनने में आती हैं। इन चर्चाओं में सबसे आम अफसरों को सेटिंग गेटिंग के नाम पर मोटी रकम का चढ़ा। ऐसा संभव भी हो सकता है अन्यथा क्या कारण जो इन बंगलों की खरीद फरोख्त पर कैंट प्रशासन के अफसर खासतौर से उच्च पदस्थ अफसर वो चाहें छावनी परिषद के अफसर हो या फिर रक्षा संपदा अधिकारी कार्यालय में बैठने वाले अफसर अथवा सब एरिया मुख्यालय के अफसर। हालांकि जानकारों की मानें तो सब एरिया मुख्यालय पश्चिम क्षेत्र में जो फौजी अफसर बैठते हैं उनका इन बंगलों से कोई सीधा सरोकार नहीं है। हालांकि कई बार ऐसा होता है कि किसी बंगले को सेना को जरूरत होती है। तो उसको एक तय शुदा प्रक्रिया के तहत जिसे रिज्मशन कहा जाता है वहां रहने वालों से खाली करा लिया जाता है। कैंट क्षेत्र में ऐसे तमाम बंगले हैं जो सेना ने रिज्यूम कराने को कहा है। काफी स्तर तक उसको लेकर लिखा पढ़ी भी की जा चुकी है। ऐसे ही ओल्ड ग्रांट के कुछ बंगले बताए जाते हो अंडर रिज्मशन लिखा पढ़ी में है, लेकिन ऐसे भी बंगलों का सौदा कर दिया गया है। ऐसे मामलों को कैंट प्रशासन के उच्च पदस्थ अफसरों की लापरवाही की पराकाष्ठा तो माना ही जाएगा, साथ ही यह भी कि ओल्ड ग्रांट के बंगलों की यह साैदेबाजी कभी भी सेना की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकती है। ओल्ड ग्रांट के इन बंगलों को खरीदने वाले कौन हैं, उनकी क्या बैक ग्राउंट है। पुलिस रिकार्ड में उनका क्या स्टेटस है, ऐसे तमाम सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्यों कि यह सेना की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। मेरठ छावनी देश की सबसे पुरानी छावनियों में मसलन 1857 से भी पुरानी छावनियों में शामिल है। यहां सेना के कई उच्च पदस्थ अफसर बैठा करते हैं। यह देखते हुए सेना की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता का किया जाना और वाजिo सवालों का पूछा जाना भी जरूरी है। इस संबंध मे डीईआ और सीइओ कैंट ही बंगलों को लेकर कुछ स्पष्ट बता सकते हैं।