पचास करोड़ खर्च करने के बाद भी तीन साल से लटका है ताला, -बनने के बाद अभी तक एलएलआरएम मेडिकल को हेंड ओवर तक नहीं। करीब पचास करोड़ का बजट खर्च करने के बाद भी एलएलआरएम मेडिकल कालेज में बनाया गया ओवर हेड टेक अभी तालों में कैद है। उस पर ताला लटका हुआ है। यहां तक कि कार्यदायी संस्था द्वारा अभी तक हैंड ओवर तक नहीं किया गया है। सूत्रों ने जानकारी दी है कि जो ओवर हेड टेंक मेडिकल परिसर में बनकर तैयार खड़ा हुआ है वह सफेद हाथी इसलिए बना हुआ है क्योंकि उसको चलाने वाला अभी तक कोई आपरेटर तक नहीं है। जानकारों का कहना है कि इस ओवर हेड टैंक को चलाने के लिए विशेष काबलियत रखने वाला आपरेशटर चाहिए जो कम से कम मेडिकल प्रशासन के पास तो नहीं है। हालांकि मेडिकल प्रशासन ने अपरोक्ष रूप से इसको चलवाने का काफी प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हाे सके, जिसकी वजह से इतनी भारी भरकम रकम खर्च किए जाने के बाद भी यह ओवरहेड टैक महज शोपीस बनकर रह गया है जिस कार्य व मकसद से इतनी बड़ी रकम खर्च कर इसको तैयार कराया गया वह न तो मकसद हासिल किया जा सका और तीन साल से यदि ताला ही झूल रहा है तो फिर समझा जा सकता है कि इस रकम का खर्च किया जाना कितना मुनासिब था। टैंक में जो कीमती मशीनें लगी हुई हैं उनको चलाने के लिए यदि आपरेटर आ जाए तो शायद इससे केवल मेडिकल ही नहीं बल्कि अन्य का भी भला होगा।
काली नदी को गंंदा कर रहा है मेडिकल
कभी जीवनदायनी समझी जाने वाली काली नदी को मेडिकल गंदा कर रहा है। मेडिकल का निर्माण साल 1965 में हुआ था। डा. जीके त्यागी इसके पहले प्रधानाचार्य थे। जानकारों की मानें तो उस दौर में प्लांट का पानी एक कुंआ में भर जाता था। उस पानी को तब के मेडिकल के कुछ कर्मचारी खाद के रूप में बेच दिया करते थे। अब जैसे-जैसे एलएलआरएम मेडिकल मेरठ का विस्तार हुआ है। चिकित्सा की सुविधाएं यहां बढ़ गई हैं। यहां से निकलने वाला दूषित पानी की मात्रा भी काफी बढ़ गई है। साथ ही यहां से निकलने वाले रसायनिक पानी को रिसायकल करने का कोई इंतजाम न होने की वजह से अब मेडिकल की चार दीवारी के बराबर से नाली निकाल दी गयी है। यह नाली सीधे काली नदी में मेडिकली से निकलने वाले रसायनिक पानी को गिराती है। इससे काली नदी का प्रदूषण स्तर और भी ज्यादा बढ़ रहा है। इसको लेकर पूर्व में पर्यावरण प्रेमी अनेक बार आवाज भी उठा चुके हैं। इसकी शिकायत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक की गयी है। वहीं दूसरी ओर यह भी बात सही है कि मेडिकल प्रशासन की अपनी भी कुछ मजबूरियां है, क्योंकि जो रसायनिक पानी मेडिकल से निकलता है उसकी समस्या का स्थायी निदान अभी तक मौजूद नहीं है। ऐसे में रसायनिक पानी को काली नदी में गिराने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। हालांकि यह पर्यावरण के नजरिये से बेहद घातक है। उसके दूरगामी दुष्परिणाम सामने आने तय हैं।
यह कहना है मेडिकल प्राचार्य का
मेडिकल प्राचार्य डा. आरसी गुप्ता का कहना है कि जो ओवर हेड टेक बना है उसको चलाने के लिए जब आपेरशन मिल जाएगा तो उसको प्रयोग में लाया जा सकेगा। तीन साल से कार्यदायी संस्था से अनेकों बार आपरेटर के लिए आग्रह किया जा चुका है।