पहले अवैध निर्माण-फिर बचाव का रास्ता, -बचाव का रास्ता भी बातें हैं कैंट अफसर- मेरठ छावनी इलाके में भारत सरकार के बंगलों में अवैध निर्माण कराने में मददगार साबित होने वाला स्टाफ या अधिकारी केवल अवैध निर्माण के रास्ते ही नहीं बताते, बल्कि जो भी और जिस भी प्रकार के अवैध निर्माण कराए जाते हैं उनको बचाना कैसे है, वो रास्ता भी बताते हैं। ऐसा ही कुछ मेरठ छावनी बीआई लाइन स्थित बंगला 45 के मामले में नजर आता है। सेना की जरूरत के मद्देनजर जिस बंगले को एक लंबी प्रक्रिया के बाद रिज्यूम किए जाने वाले बंगलों की सूची में शामिल कर लिया गया है, उस बंगले में केवल अवैध निर्माण तक ही डीईओ व सीईओ कार्यालय के स्टाफ की कारगुजारिया सीमित नहीं रही हैं। इससे भी इतर अब जो अवैध निर्माण किए गए हैं उनको बचाने के तरीकों काम और मंथन चल रहा है। छावनी बीआई लाइन स्थित बंगला 45 का अवैध निर्माण और उसको बचाने जाने के रास्तों का सुझाया जाना कोई पहली बार नहीं होने जा रहा है, इससे पहले भी मेरठ छावनी क्षेत्र में जितने भी अवैध निर्माण हुए हैं या वर्तमान में चल रहे हैं उन सभी में बचाव का रास्ता कैंट बोर्ड और डीईओ कार्यालय का स्टाफ ही बताता है। जानकारों की मानें तो अवैध निर्माण में मददगार साबित होने वाले इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि कल को यदि रक्षा मंत्रालय से कोई जांच आती है तो गर्दन न फंसे, इसलिए बचाव का रास्ता भी पहले से ही बनकर रखते हैं। ऐसे अवैध निर्माणों पर फिर नोटिस और चालान का खेल शुरू होता है। जैसा कि 45बीआई लाइन में भी किया गया। बंगले की दीवारों पर डीईओ कार्यालय के स्टाफ ने कई माह पूर्व नोटिस चस्पा किया था। ऐसा इसलिए क्योंकि भीतर एंट्री का साहस नहीं जुटा सके थे शायद। लेकिन यह सुविधा केवल उन्हीं को हासिल होती है जिनके साथ आमतौर पर डील की बात सुनने में आती है। सामान्य तौर पर यदि कोई एक टायलेट भी बनवाना चाहे तो क्या मजाल जो एक ईट की भी चिनाई कर ले, तुरंत ही अधिकारी वहां हथोड़ा गैंग भेजकर ध्वस्त करा देते हैं। लेकिन 45-बीआई लाइन में इतना बड़ा अवैध निर्माण उस बंगले में करा लिया जाता है जो रिज्यूम होना चाहिए। स्टाफ में भी इसकी सुगबुगाहट है कि सब एरिया मुख्यालय में बैठे फौजी अफसरों को सेना की जरूरत को ध्यान में रखते हुए आर्मी भेजकर वहां अब तक कब्जा ले लेना चाहिए। तकनीकि जानकारों का कहना है कि यदि सब एरिया के अफसर तत्काल 45-बीआई लाइन बंगले में सेना भेजकर रिज्मशन की कार्रवाई करते हैं तो इसका पर्याप्त व कानूनी अधिकारी उनकाे हासिल है। फिर जो बंगला पहले से रिज्यूम किए जाने वाले बंगलों की सूची का हिस्सा हो, वहां तो किसी प्रकार के इफ-बट की गुंजाइश ही नहीं बच जाती, लेकिन इसके बाद भी सब एरिया के उच्च पदस्थ के स्तर से क्यों देरी की जा रही है इस बात को लेकर कैंट बोर्ड की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ भी खासे हैरान हैं। दरअसल आशंका जतायी जा रही हैं कि जिस प्रकार बंगले को रिज्यूम करने में लगातार देरी हो रही है उसके चलते यहां काविज लोगों को अदालत से स्टे हासिल करने का मौका ही दिया रहा है। यदि रिज्यूम की कार्रवाई के खिलाफ स्टे आ जाता है तो इसके लिए सीधे बड़े अफसरों के निर्णय लेने में देरी पर ही सवाल उठाए जांएगे। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि जब सेना की जरूरत का मामला होता है जैसा कि 45-बीआई लाइन के मामले में सामने हैं तो फिर अदालत स्टे भी नहीं देती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि कैंट प्रशासन के स्तर से पहले ही अदालत में केविएट दायर कर दी जाए। मेरठ छावनी के बीआई लाइन स्थित बंगला 45 आर्मी हायरिंग पर है। छावनी क्षेत्र की जिस संपत्ति से आर्मी का कनेक्शन जुड़ जाता है, उसको लेकर जितनी संवेदनशीलता या कहें चौकसी कैंट प्रशासन के अफसरों से आमतौर पर बरती जानी चाहिए इस बंगले में वैसी सतर्कता बरती गयी हो, ऐसा लगता तो नहीं, क्योंकि यदि सतर्कता बरती गयी होती तो अवैध निर्माण का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। फिर ऐसा क्या कारण है कि जो आर्मी हायरिंग का जो बंगला रिज्यूम किया जाना चाहिए था, उसमें बड़ा अवैध निर्माण हो जाता है और इसको रोकने के लिए जिनकी जिम्मेदारी है, वो बजाए जेसीबी भेजने के हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।