पंचों का इस्तीफा-यह तो होना ही था…

पंचों का इस्तीफा-यह तो होना ही था...
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पंचों का इस्तीफा-यह तो होना ही था..,
मेरठ के सदर दुर्गाबाड़ी स्थित प्राचीन श्री 1008 पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर के जिन्हें पंच बताया जा रहा थ, उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। वैसे जिस दिन इन्हें पंच बनाया गया था उसी दिन सदर जैन समाज के समक्ष यह साफ हो गया था कि पंचों के नाम पर जो प्रपंच रचा जा रहा है वह चलने वाला नहीं। जिसके लिए और जिस वजह से पंच प्रकरण हुआ उसको भी सदर जैन समाज की शायद स्वीकार्यकर्ता इसी वजह से नहीं मिल सकी थी। मंदिर को लेकर खींचतान से दूर रहने वाले समाज के तमाम लोगों का मानना है कि जो कुछ हुआ उसके पीछे एक छिपा एजेंडा चलाया जा रहा था। जो कम से काम मंदिर जैसी पवित्र संस्था में नहीं स्वीकार्य है। लोगों का साफ मानना है कि जो कुछ समाज के सामने आना चाहिए, उस पर पर्दा डालने और क्लीनचिट देकर बैकडोर से निकलाने के अलावा कोई दूसरा ऐजेंडा नहीं चलाया जा रहा था। यह सब गुमराह किए जाने की श्रेणी में आता है। जो पंच बने थे उनका वादा सदर जैन समाज के सम्मुख था कि मृदुल जैन से पिछले हिसाब लिया जाएगा। एक करोड़ कैश और एक किलो सोने की भी बात पूरे दमखम के साथ कहीं गयी थी। इतना ही नहीं दो दिन की मियाद तय की गयी थी, फिर ऐसा क्या हुआ जो मंदिर जी में खडेÞ होकर सदर जैन समाज से किया गया वादा बिसरा गया। तमाम चीजों पर बात करते रहे, लेकिन मुख्य मुद्दा मंदिर के अब तक के हिसाब किताब का उससे भागते रहे। क्यों और किसके लिए ऐसा किया जा रहा था। मंदिर का जो कुछ है क्या उसकी बात करना गलत है। क्या वो सब समाज के सामने नहीं आना चाहिए। आप कीजिए इधर उधर की बात, लेकिन जो वादा मंदिर जी में खडे होकर किया गया था, वो तो समाज के सम्मुख पूरा कीजिए। वादा पूरा ना करने का समाज में कैसा संदेश जाता है, यह सब जानते हैं। समाज और मंदिर जी से ऊपर कोई नहीं। फिर मंदिर समाज का है किसी की बपौती नहीं कि हिसाब दिया ना दिया। होना तो यह चाहिए था कि जो कुछ मंदिर जी का है वो सबके सामने आता और मुख्य व सबसे अहम जिला प्रशासन से आग्रह कर डिप्टी रजिस्ट्रार की मार्फत मंदिर जी की कमेटी के चुूनाव कराए जाते, सारी बातें हो रही हैं, लेकिन इनमें कहीं भी ना जाने ऐसी क्या खौफ जो मंदिर जी की कमेटी के चुनाव कराने को तैयार नहीं। खैर जो हुआ ठीक ही हुआ होगा…लेकिन ऐसा नहीं कि मुर्गा बांग नहीं देगा तो दिन नहीें निकलेगा। पंच नहीं तो कोई अन्य अब मंदिर का काज देखेगा। किसी के होने ना होने से वक्त थमता नहीं है। लेकिन मुख्य बात अभी भी पुराना हिसाब और मंदिर जी के चुनाव उससे एक रत्ती ना आगे ना पीछे…और समाज का पूरा यकीन है कि यह होकर रहेगा। कोई बाधा ना तो हिसाब देने से रोक सकती है ना ही चुनाव कराने से….

ये हुआ घटनाक्रम
गुरूवार की देर शाम जिन्हें पंच बताया गया वो सभी मंदिर जी पहुंचे। कविवर सौरभ सुमन भी पहुंचे थे। मंदिर जी के एक कक्ष में सभी ने खुद को बंद कर लिया। समाज के तमाम लोगों की निगाहें इस बैठक और बंद कमरें के खुलने के बाद बाहर आने वाली खबर पर लगी थीं। दरअसल पंचों के बीच वाट्सअप-बाट्सअप शुरू होने और विनोद बुरा के द्वारा अनिल बंटी से असहमति जता दिए जाने के बाद आसार नजर आने लगे थे कि जिस 21 तारीख को समाज की जिस सभा को लेकर आस्तीन चढ़ाए घूम रहे हैं उस पर संकट के बादल छाने लगे हैं। गुरूवार की दोपहर होते-होते खबरें मिलने लगी थी कि पंचों में से अनिल बंटी को संभवत: बाहर कर दिया जाए। इसका संकेत कवि सौरभ जैन सुमन ने भी दिया था। वो भी इस बात से खिन्न नजर आए कि मंदिर जी से जुडेÞ सवालों का उत्तर देने के बजाए उन सवालों से भागा जा रहा है। चीजों को सही तरीके से पेश नहीं किया जा रहा है। खैर मंदिर जी में पंच और सुरभ जैन सुमन एक साथ बैठे और बाहर जो खबर आयी वो पंचों के इस्तीफे की आयी। जानकारों का कहना है कि इस्तीफा देकर पंचों ने किसी अन्य नहीं बल्कि खुद पर भी बड़ा अहसान किया है। अन्यथा काफी चीजें तेजी से बदल रही थीं। जो ऐसी थी जिनसे मुश्किलें खड़ी होनी तय मानी जा रही हैं। जैसे प्रशासन की अनुमति के सभा को बुलाने का एलान देना। जबकि मामला पहले से डिप्टी रजिस्ट्रार के यहां विचाराधीन है। ऋषभ एकाडेमी के सचिव सीएम डा. संजय जैन ने भी डिप्टी रजिस्ट्रार के यहां पत्र दिया हुआ है। उसके बाद ही डिप्टी रजिस्ट्रार ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा हुआ है। इन तमाम चीजों के ऊपर सभा बुलाए जाने का निर्णय कैसे कर लिया गया इससे सदर जैन समाज के तमाम लोग हैरान भी हैं। उनका साफ कहना है कि यह उचित नहीं था।

 

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