साध्वी लोकेशा भारती जी के प्रवचन

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साध्वी लोकेशा भारती जी के प्रवचन, श्री आशुतोष महाराज जी द्वारा संचालित दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान व साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिषद सीसीएसयू द्वारा  1857 की क्रांति पर आधारित,  कार्यक्रम का आयोजन हुआ |  शुभारम्भ संयोजिका – साध्वी लोकेशा भारती ने दीप जलाकर किया। कार्यक्रम में इतिहास विभाग के प्रमुख विग्नेश, प्रोफेसर आराधना जी, प्रोफेसर शुची जी  व छात्र छात्राएं उपस्थित रहें | संस्थान के युवा स्वयंसेवकों द्वारा एक अद्भुत थिएट्रिकल वर्कशॉप आयोजित की गयी। जिसमें  सशक्त भारत के निर्माण में क्रांतिकारियों के बलिदानों को बड़े प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गय। वर्कशॉप के माध्यम से संस्थान ने भारत की महान संस्कृति को अभिव्यक्त किया तथा असंख्य युवाओं के भीतर गौरवान्वित भारतीय के भावो को जागृत किया | कार्यक्रम में शाखा की संयोजिका साध्वी लोकेशा भारत का एक विशेष चिंतन सत्र भी हुआ।  साध्वी लोकेशा भारती जी ने सभी को आध्यात्मिक क्रांति की महत्वता को सहजता से समझाया |  भारत की आज़ादी में मंगल पाण्डेय, भगत सिंह आदि के साथ साथ चाणक्य, स्वामी विवेकानंद व् अरविन्द घोष जैसे युवा सेनानी, जो कि आत्मिक स्तर से जागृत थे, का भी अति महत्वपूर्ण योगदान रहा। आज़ादी से पहले युवा नारी का सम्मान करता था, इसीलिए उसके अन्दर संस्कार थे , भारत को ज़मीन का टुकड़ा नहीं, माँ समझता था इसीलिए उसके अन्दर भारत के लिए प्रेम था, आज के युवाओं की ऐसी अवस्था के पीछे मुख्य कारण सिर्फ यही है कि वह अपनी संस्कृति को भूल, पश्चिमी सभ्यता को अपना रहा है।  इसका सीधा प्रभाव राष्ट्र पर पड़ रहा है, राष्ट्र सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, एवम शैक्षिक स्तर पर कमजोर हो रहा है | आज के दौर में यह आत्मसात करना ही होगा कि भारत भूमि केवल एक भूखंड नहीं है, अपितु योग भूमि है, हमारी माता है | एक मात्र भारत ही ऐसा राष्ट्र है जहाँ से सदा शांति का सन्देश दिया गया और जिसका चुनाव स्वयं ईश्वर ने धरती पर अवतार धारण करने हेतु किया | अतः इसके महान गौरव की रक्षा करना हमारा द्रण संकल्प होना चाहिए | इसीलिए आज समय की मांग है कि प्रत्येक भारतीय, अपनी संस्कृति को जीवन में पुनः धारण कर “वसुधैव कुटुम्बकम” के भावों को क्रियान्वित कर दिखलाये।

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