संविदा ठेकेदार पर कार्रवाई या कृपा, कैंट बोर्ड के आउटसोर्स ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई को मजाक बना कर रख दिया गया है। मेरठ कैंट बोर्ड के अफसरों ने ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई की है या उसकी मेहरबानियों का बदला चुकाया है। कैंट बोर्ड के आउटसोर्स ठेकेदार पर आरोप है कि उसने प्रत्येक कर्मचारी का करीब चार-चार हजार प्रति माह के हिसाब से कम भुगतान किया है, जबकि बोर्ड ने ठेकेदार को लगभग चौदह हजार रुपए प्रति आउटसोर्स कर्मचारी के हिसाब से भुगतान किया है। इस तरह से करीब चार माह में आउटसोर्स ठेकेदार ने प्रतिमाह करीब-करीब 28 लाख रुपए एक ही झटके में कमाई कर डाली। आउटसोर्स कर्मचारियों से ठेकेदार की इस खुली लूट से कैँट बोर्ड प्रशासन बेखबर हो ऐसा भी नहीं था। क्योंकि तत्कालीन सीईओ नवेन्द्र नाथ से कई बार चींख-चींखकर उनकी मेहनत की कमाई पर हर माह डाले जा रहे इस डाके को रोकने की गुहार लगा रहे थे, यह बात अलग है कि कैंट बोर्ड प्रशासन पर ठेकेदार की मेहरबानियों का रंग इतना गढ़ा चढ़ा था कि अफसरों पर गरीब आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ की जा रही नाइंसाफी दिखाई नहीं दे रही थी या अफसर उसे नजर अंदाज करते आ रहे थे। वो तो भला हो डीएन यादव डायरेक्टर मध्य कमान जो मेरठ में कैंट प्रशासन के अफसरों की कारगुजारी की जांच को आए और उन तक आउटसोर्स कर्मचारियों के साथ किए जा रहे अन्याय की खबर पहुंचा दी गयी। साइड इफैक्ट यह हुआ कि आउटसोर्स का ठेका खत्म कर दिया गया। जो स्टाफ था, उसी से कैंट बोर्ड काम लेने लगा। अब समझ लीजिऐ खेल की क्रोनोलॉजी। ठेका निरस्त के आदेश में शर्त लगा दी कि काटी गयी रकम दे दी गयी तो दो करोड़ की जमानत राशि रिलीज कर दी जाएगी। जबकि सजा में होना यह था कि पहले ठेकेदार ब्लैक लिस्टेड होता और उसके बाद जमानत राशि जब्त की जाती। करीब ढाई करोड ठेकेदार आउटसोर्स स्टाफ की सेलरी की कटिंग से कमा चुका है। ये शर्त ही ठेकेदार को सबसे बड़ा रिलीफ साबित होगी।