पहले बचा तो लो बेटी को

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पहले बचा तो लो बेटी को,

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: गर्भावस्था में लिंग परीक्षण अनिवार्य होना चाहिए।

MEERUT/भारत में “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अभियान एक महत्वपूर्ण कदम है जो न केवल महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज में लिंग समानता की दिशा में भी कार्य करता है। बावजूद इसके, हमारे समाज में लिंग आधारित भेदभाव और महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा आज भी जटिल और गहरे रूप में मौजूद है। इनमें से एक गंभीर समस्या है गर्भावस्था में लिंग परीक्षण और लिंग आधारित भ्रूण हत्या। भारत में पीसी पीएनडीटी (प्रेग्नेंसी टेस्टिंग एंड प्री-नैटली डायग्नोस्टिक टेक्निक्स) एक्ट 1994 में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य गर्भावस्था में लिंग परीक्षण की रोकथाम और भ्रूण हत्या को रोकना था। इस एक्ट के तहत लिंग परीक्षण और चयनित भ्रूण हत्या के लिए कठोर सजा का प्रावधान है। लेकिन, दुर्भाग्यवश, इस कानून का कई बार दुरुपयोग किया जाता है। कुछ असमाजिक तत्व एवं पैसों के लालची चिकित्सक गर्भावस्था के शुरुआती चरणों में लिंग परीक्षण करते हैं और यदि बच्ची का लिंग पाया जाता है, तो वे अवैध रूप से उस भ्रूण को समाप्त कर देते हैं। इस प्रकार की घटनाओं के परिणामस्वरूप, समाज में लिंग अनुपात असंतुलित होता जा रहा है और महिलाओं की संख्या घटती जा रही है। यह देखने में आया है कभी-कभी इस एक्ट में कुछ छोटी-मोटी गलती के कारण चिकित्सकों को भी जेल में जाना पड़ता है। अगर हमें लड़कियों की गर्भ में होने वाली हत्याओं को बचाना है, तो सरकार को गर्भावस्था के दौरान लिंग परीक्षण को पूरी तरह से अनिवार्य करने के लिए और कड़े कदम उठाने होंगे। मेरा सुझाव है कि सरकार गर्भवती महिलाओं के लिए अल्ट्रासाउंड को अनिवार्य कर दे, ताकि गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता चल सके। यदि किसी महिला के गर्भ में लड़की पाई जाती है, तो उसकी डिलीवरी तक महिला और उसके बच्चे की निगरानी की जाएं, ताकि भ्रूण हत्या के लिए होने वाले सभी प्रयास रोके जा सके। यदि कोई मामला सामने आता है जिसमें भ्रूण को लिंग आधारित कारणों से खत्म कर दिया गया है, तो सरकार को महिला, उसके पति और गर्भपात करने वाले चिकित्सकों के खिलाफ कठोर सजा का प्रावधान करना चाहिए। यह सजा केवल कानूनी प्रक्रिया की प्रक्रिया नहीं होगी, बल्कि समाज को एक कड़ा संदेश भी देगी कि महिला भ्रूण की हत्या किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है।सिर्फ कानूनी कदम ही पर्याप्त नहीं हैं, इसके साथ ही समाज में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए हमें यह बताना होगा कि लड़कियाँ किसी से कम नहीं होतीं, और लिंग का चयन करने की बजाय हमें हर बच्चे को समान अधिकार देना चाहिए। लड़कियों को शारीरिक और मानसिक रूप से भी मजबूत बनाना, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना, यही सबसे अहम है।अगर हम सचमुच अपनी बेटियों को बचाना चाहते हैं और उन्हें समाज में उनका सही स्थान दिलाना चाहते हैं, तो हमें गर्भावस्था में लिंग परीक्षण अनिवार्य करना होगा । साथ ही, किसी भी प्रकार की भ्रूण हत्या के खिलाफ सख्त दंडात्मक प्रावधानों की आवश्यकता है। हमें हर संभव कदम उठाकर यह सुनिश्चित करना होगा कि बेटियाँ केवल हमारे समाज की संरक्षक नहीं, बल्कि देश की प्रगति में सहायक है। बेटी से परिवार है, परिवार से कुटुंब है। कुटुंब से मोहल्ला है। मोहल्ले से गांव है। गांव से शहर है। शहर से प्रदेश है ।और प्रदेश से देश है।

डॉ अनिल नौसरान
संस्थापक
साइक्लोमैड फिट इंडिया

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