शंकराचार्य का गुरुकुल व्यवस्था पर जोर, – गुरुकुल व्यवस्था के बिना विश्व से अंधकार को दूर करना संभव नहीं-शंकरान्न्द स्वामी जानी खुर्द गुरुकुल प्रभात आश्रम में उत्तरप्रदेश सँस्कृत संस्थान एवं स्वामी समर्पणानन्द वैदिक शोध संस्थान के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोज्यमान द्विदिवसीय राष्ट्रीय वेद संगोष्ठी भव्य रूप में सम्पन्न हुई। वेद संगोष्ठी का विषय ऋग्वेद में विविध विद्याएं रहा।
प्रोफेसर श्रीवास्तव निगमालंकार अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में ऋग्वेद में सृष्टि विज्ञान विषय पर प्रकाश डाला।उपस्थित जिज्ञासुओं से ऋग्वेद जैसे महनीय ग्रंथ पर विशेष चिंतन करने का आग्रह किया ।
जवाहर लाल विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रोफेसर बृजेश पांडे ने की । मुख्य वक्ता डॉक्टर निरंजन लाल मंगलम ने ऋग्वेद में विमान विद्या इस विषय पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने व्याख्यान में प्रतिपादित किया की ऋग्वेद में 12 स्थान पर विमान शब्द का उल्लेख आया है, उन्होंने मरुद्गणों को तीव्र गति वाला बताया। वैदिक विमान रस युक्त तथा बीज शक्ति से युक्त है और यही बीज शक्ति मरुतों को नियंत्रित करती है , मरुद्गण का अभिप्राय उन्होंने मैग्नेटिक फील्ड बताया जो की स्थल वायु से इतर है।
प्रोफेसर बृजेश पांडे ने कहा कि वेद सभी विद्याओं का मूल है तथा भारतीय परंपरा का यह अटूट विश्वास है। आवश्यकता है कि वेदादि शास्त्रों का गहनता से स्वाध्याय कर उन तत्वों को जन सामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
प्रोफेसर सोमदेव शतांशु ने समापन सत्र में विशेष रूप से भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री शंकरानंद जी की गरिमामयी में उपस्थिति रही।शंकारानंद जी ने सोमामृत नामक पावनी की विशेषांक तथा गुरुकुल प्रभात आश्रम की नवनिर्मित वेबसाइट का लोकार्पण किया। गुरुकुल के योग्य स्नातक अभय सिंह द्वारा अनूदित पुस्तक राघव कृपा का विमोचन भी किया ।डॉक्टर विनोद कुमार तथा डॉ रवि प्रभात ने विशिष्ट वक्ता के रूप में शोध पत्र वाचन किया ।
समापन पत्र के अपने उद्बोधन में शंकारानंद जी ने कहा कि यह भारत का संधि का चल रहा है , भारत को ज्ञान , अर्थ और सैन्य शक्ति के रूप में विश्व के समक्ष खड़ा करना यह हमारा दायित्व है। और इन सब के मूल में ज्ञान शक्ति है, यह गुरुकुल व्यवस्था ही ज्ञान शक्ति का को प्रबल कर सकती है । गुरुकुल व्यवस्था के बिना विश्व से अंधकार को दूर करना संभव नहीं है। सभी गुरुकुलों को संगठित होकर एक दिशा में आगे बढ़ना चाहिए और यह संकल्प लेना चाहिए कि आने वाले 25 वर्षों में यह लक्ष्य हमें प्राप्त करना है तथा भारत के विश्व में उच्च शिखर पर स्थापित करना है। इस सत्र में धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक डॉ वेदव्रत ने किया।
संगोष्ठी में 50 से अधिक शोधपत्रों का वाचन किया गया।जिनमे अंतिम दिन विशेष रूप से डा भावप्रकाश,डा सोमवीर,डॉ वेदवर्धन, डॉ कल्पना आर्य, डॉ देवेंद्र ओझा, डॉ सुशील डॉ अरुणिमा , डॉ नितिन आदि ने ऋग्वेद से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर विद्वत्तापूर्ण शोधपत्र प्रस्तुत किये।