ताकि मिल सके मौत के कुंओं को जिंदगी

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ताकि मिल सके मौत के कुंओं को जिंदगी,

नो पोल्यूशन, नो फायर एनओसी ना ही अंडरवाटर परमिशन
एक मीटर की गली में सौ-सौ दुकानों के कांप्लैक्स, हरसत कामर्शियल हो जाए 5 सौ साल पुराना हिरायशी इलाका
मेरठ/ देहलीगेट इलाके का शहर का घंटाघर और पुरानी कोतवाली के बीच बसा शहर के पांच सौ साल पुराने रिहायशी इलाके को कामर्शियल करने की हरसत कुछ लोग पाले हुए हैं। एक मीटर की गली और उसमें सत्तर से सौ-सौ दुकानों के कांप्लैक्स। गली इतनी तंग कि यदि आग सरीखी कोई अप्रिय घटना हो जाए तो मदद के लिए भीतर फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी ना जा सके। शहर की करीब पांच सौ साल पुरानी आबादी में शुमार किए जाने वाले कागजी बाजार, लाल का बाजार, शीश महल, पत्थर वालान, जत्ती वाड़ा, शहर सराफा, बाजार बजाजा, नील की गली, कच्ची सराय और दूसरे आसपास के ये वो इलाके हैं जहां ब्रिटिश हुकूमत से पहले से लोगों की रिहायश है। बुर्जुग बताते हैं कि जहां पर शहर सराफा बाजार है वहां कुछ ज्वैलर्स की दुकानें हुआ करती थीं। उससे सटा आसपास का सारा इलाका जिसमें ठठेर वाडा, नंदराम का चौक, तिरगरान, शीशमहल और लाला का बाजार आदि भी शामिल हैं वहां पर लोगों के घर थे। यह बात अलग है कि कुछ कारणों के चलते जैसे परिवार में बढ़ौत्तरी होने, बंटवारे होने या फिर संतानों के पढ़ लिखकर नौकरी पर बाहर चले जाने सरीखे तमाक कारणो के चलते इस इलाके से अनेक पुराने परिवार अन्यत्र चले गए हैं। तभी ये इलाके में सरकारी कागजातों में रिहायशी इलाकों के तौर पर दर्ज हैं।
एक मीटर की गली में सौ-सौ दुकानों के कांप्लैक्स
इन तमाम इलाकों में जहां लोगों के पुश्तैनी मकान हैं, वहां सोने-चांदी के कारोबार में एकाएक तेजी से बिखरी चमक के बाद कुछ नामचीन ज्वैलर्स ने इन पुश्तैनी मकानों जिनमें से कुछ महज एक मीटर चौड़ी गलियों में मौजूद हैं उनमें सत्तर से सौ दुकानों वाले कांप्लैक्स बना डाले गए हैं। कांप्लैक्स बनाने वालों ना तो फायर एनओसी ली और न ही भूगर्भ जल संबंधित विभाग से कोई अनुमति ली। किसी भी कांप्लैक्स के लिए सबसे पहले ली जाने वाली पाल्यूशन विभाग की भी एनओसी भी नहीं ली गयी। मेरठ विकास प्राधिकरण से मानचित्र का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।
कोर्ट के चाबुक के बाद टूटी नींद
शहर में मौत के कुंओं की मानिंद बनवा दिए गए इन कांप्लैक्सों को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी की याचिका के बाद जब हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और तमाम सरकारी महकमों को नोटिस जारी कर जवाब मांग लिए उसके बाद नींद टूटी तो शहर के इस पांच सौ साल पुराने इलाके को कामर्शियल घोषित किए जाने के लिए हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए हैं। उद्योग बंधु की बैठक यूं तो व्यापारियों की समस्याओं पर चर्चा के लिए बुलायी जाती है लेकिन इन दिनों उद्योगबंधु की बैठकों में मौत के कुंओं को जिंदगी देने के लिए हाथ-पांव मारे जा रहे हैं।

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