सिसकते छात्र और निर्लज्ज NTA, NEET 2024 में हुई भारी अनियमितताओं को लेकर देश भर में छात्र अब सड़कों पर आ गए हैं । छात्रों एवं उनके अभिभावकों में भारी आक्रोश है। उन्हें लग रहा है कि NTA की लापरवाही एवं भ्रष्टाचार के कारण पेपर बड़े स्तर पर लीक हुआ जिसके कारण कट ऑफ 50-60 अंक तक बड़ी है। रही सही कसर NTA ने बिना किसी नियम के ग्रेस मार्क्स दे कर कर दी है। दिनांक 6 जून को जारी पब्लिक नोटिस में NTA ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने 1500 से अधिक छात्रों को ग्रेस मार्क्स दिए।
नीट जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा में इस तरह की अनियमितताओं का मिलना पूरे तंत्र को कटघरे में खड़ा करता है। लाखों छात्र एक सुनहरे भविष्य की आशा में तीन से चार साल तक इस परीक्षा की तैयारी करते है और परीक्षा करवाने वाली एजेंसी NTA के भ्रष्ट आचरण की वजह से उनके सपने चकनाचूर हो जाते हैं। एक मेधावी युवा के लिए ये बहुत पीड़ा दायक है। विश्व की सबसे कठिन परीक्षा, जिसमे पच्चीस लाख छात्र सम्मिलित हों उस परीक्षा में सफल होना वैसे ही इतना कठिन होता है ,ऐसे में पेपर लीक करके छात्रों के भविष्य को खत्म किया गया। ये अपराध अक्षम्य है। दोषी अधिकारियों को सजा मिलनी चाहिए।जिन छात्रों को आज नीट में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए शाबाशी और सम्मान मिलना चाहिए था, जो आज खुशियां मनाते दिखाई देने चाहिए थे आज वो छात्र पचास डिग्री की झुलसती गर्मी में सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं। कुछ स्थानों से सुइसाइड के भी दुखद समाचार मिले हैं। इन दर्दनाक घटनाओं के जिम्मेदार वो अधिकारी हैं जिन्होंने पेपर लीक के पर्याप्त सबूतों के बावजूद लीपा पोती करके इसे दबाया। चार जून को जब नीट का परिणाम आया तो छात्रों के होश उड़ गए। NTA ने निर्धारित तिथि से दस दिन पूर्व ये सोचकर परिणाम घोषित किया था कि देश का मीडिया जब आम चुनावों के परिणाम में व्यस्त होगा तो उसके कुकृत्यों पर पर्दा पड़ जाएगा। मगर उनके मंसूबे सफल नहीं हुए।आज सोशल मीडिया ही नहीं अपितु मेन स्ट्रीम मीडिया भी चीख चीख कर कह रहा है कि इस परीक्षा में महा घोटाला हुआ है। *छात्र इस परीक्षा को रद्द कर दोबारा नीट की मांग कर रहे हैं।केंद्र में कोई चुनी हुई सरकार नहीं है , कोर्ट में ग्रीष्मावकाश है।युवा मासूम छात्र कानपुर,पटना,कोटा और जयपुर जैसे नगरों की सड़कों पर धक्के खाकर न्याय की भीख मांगने को विवश है।
इस संबंध डा. राज शेखर यादव का कहना है कि यदि इन छात्रों को न्याय नहीं मिला तो देश की न्याय व्यवस्था से इनका भरोसा उठना तय है। अपने बच्चों की सिसकियों को सुनने और उनके दर्द को समझने की क्षमता क्या भारतीय समाज खो चुका है ? देश की व्यवस्था में देश के युवा का विश्वास टूटा तो ये इस से बड़ी विडम्बना अन्य न होगी।