कैंट बोर्ड: 22B से ये रिश्ता क्या कहलाता है

कैंट बोर्ड: रोड निर्माण की जांच
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कैंट बोर्ड: 22B से ये रिश्ता क्या कहलाता है, मेरठ छावनी के बाउंड्री रोड स्थित अवैध होटल/रिजार्ट 22B के अवैध निर्माण से लेकर सील लगाने और चंद घंटों बाद सील के टूट जाने के प्रकरण को लेकर कैंट बोर्ड तमाम उच्च पदस्थ अधिकारियों की जितनी फजीहत हुई है, उतनी शायद ही किसी अन्य मामलों को लेकर मेरठ कैंट बोर्ड की हुई हो। हैरानी की बात तो यह है कि देश भर की छावनियों में फजीहत या कहें बदनामी के बाद भी मेरठ कैंट बोर्ड प्रशासन के अधिकारी भूल सुधारने को तैयार नहीं है। जिसके बाद सवाल यह उठता है कि 22B के गुनाहगारों से कैंट बोर्ड अधिकारियों खासतौर से इंजीनियरिंग सेक्शन के बड़े साहव का यह रिश्ता क्या कहलाता है। साल 2015 में हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण के चलते 22B को सील करने के आदेश दिए थे। आर्मी की मदद से 22B को सील भी कर दिया गया। वहां कैंट बोर्ड ने पहरा बैठा दिया, लेकिन हैरानी की बात यह है कि सील को तोड़कर 22B में अवैध निर्माण कर लिया जाता है। अवैध निर्माण कोई एक दो दिन या सप्ताह या महीने नहीं चलता, इसकी मियाद लंबी होती है। होटल बनकर खड़ा हो जाता है। कैंट बोर्ड प्रशासन पर क्या इस बात का कोई जवाब है कि 22B की सील टूटती है तो फिर क्यों नहीं 22B मालिकान के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाया जाता। क्यों नहीं हाईकोर्ट में वाद दायर किया जाता। क्या इसके लिए इंजीनियरिंग सेक्शन और बोर्ड के लीगल सेल इंचार्ज जिम्मेदार नहीं हैं। जिन मामलों की जांच को पिछले दिनों डायरेक्टर मध्य कमान डा. डीएन यादव मेरठ आए थे, उन फेरिस्त में 22B भी शामिल था। उन्होंने इसको लेकर कठोर टिप्पणी भी की थी। डीएन यादव सबसे ज्यादा नाराज 22B को ट्रेड लाइसेंस दिए जाने को लेकर हुए थे। ट्रेड लाईसेंस कांड को लेकर कार्रवाई भी की जाती है। उनके जान के बाद 13 जुलाई की बोर्ड बैठक में बोर्ड अध्यक्ष व कमांडर 22B को सील करने के आदेश देते हैं। इन आदेशों के अनुपालन में भी कई माह का वक्त बोर्ड के इंजीनियरिंग सेक्शन के बड़े साहब निकाल देते हैं। लेकिन सीबीआई छापे के साइड इफैक्ट के बाद 22B को सील किया जाता है, लेकिन चंद घंटों बाद ही इस सील को तोड़ दिया जाता है लेकिन बोर्ड प्रशासन पूर्व की तर्ज पर न तो वहां सेना की मदद से दोबारा सील का प्रयास करता है न ही आरेापी के खिलाफ हाईकोर्ट की अवमानना का वाद दायर किए जाने की कोई सूरत नजर आ रही है। बोर्ड के दूसरे पायदान के अफसर सेटिंग गेटिंग के चलते यह कर रहे हैं, जैसी कि स्टाफ में भी आम चर्चा है। लेकिन बड़ा सवाल बोर्ड के पहले पायदान के अफसरों से पूछा जाना चाहिए कि वो क्यों नहीं कोई एक्शन ले रहे हैं। क्यों हैं तमाम बड़े अफसर मौन?

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