व्यापार संघ: चंदे पर उठा सवाल, संयुक्त व्यापार संघ के एक गुट द्वारा 505 संस्थाओं का चंदा एकत्रित कर लिया गया है। 505 संस्थाओं ने अपना 3 वर्ष का वार्षिक शुल्क डेढ़ हजार रुपये इनके पास जमा किया है। कुल Rs.7,57,500/-बनता है। मेरठ शहर के वरिष्ठ व्यापारी नेता विपुल सिंहल ने इस पर सवाल उठाते कहा है कि पिछले कार्यकाल में भी इन्हीं के द्वारा लगभग 9 लाख जमा किए गए थे जिसका कोई विवरण इनके द्वारा नहीं दिया गया। संयुक्त व्यापार संघ के संविधान के मुताबिक संयुक्त व्यापार संघ के अध्यक्ष, महामंत्री अथवा कोषाध्यक्ष अपने पास 5000 से अधिक की रकम नहीं रख सकते हैं। संस्थाओं पर विश्वास न करते हुए पैसा एकत्रित किया गया तथा अपने पास रखा गया। विषय यह नहीं है कि यह ईमानदार है अथवा नहीं विषय है जब पैसे की आवश्यकता नहीं है तो व्यापारियों से एकत्रित क्यों किया गया। संयुक्त व्यापार संघ का संविधान हो अथवा देश के इनकम टैक्स विभाग की गाइडलाइन किसी भी संस्था द्वारा इतना पैसा एकत्रित कर अध्यक्ष के पास रखा जाना और किसी प्रकार की किताबों में ना दिखाया जाना उचित नहीं है। विपुल सिंहल का चंदा देने वालों से कहना है कि आपने चंदा जरूर दिया है, शायद आपके पास आए पदाधिकारियों की शर्म में दिया गया परंतु जो गलत है उसे स्वीकार करना चाहिए। संयुक्त व्यापार संघ को कभी भी व्यापारियों के लिए आवश्यकता पड़ने पर कभी किसी संस्था ने चंदा देने से अपना हाथ पीछे नहीं रखा है। जब दो-दो संस्था चल रही हो, कौन असली कौन नकली का पता ना हो, व्यापारियों के पास चंद एकत्रित करने जाना उन्हें बेशर्मी की हद तक पहुंचाना और जबरन चंदा वसूल करना कहां तक उचित है। एक ही नाम से दो दो संस्था चल रही है। पद की लालच में दूसरे शख्स को भी संयुक्त व्यापार संघ का नाम इस्तेमाल करने दिया जा रहा है और खुद भी करते चले जा रहे हैं। इस लालच की गद्दी को छोड़कर संयुक्त व्यापार संघ को एक करने का काम करेंगे तो भविष्य में व्यापारियों के लिए यह संस्था उनके व्यापार को बढ़ाने का उनकी परेशानियों को खत्म करने का काम करेगी, अन्यथा आप अपने नाम के आगे अध्यक्ष पद देखने का लालच रखते रहेंगे और आने वाले समय में संस्था का वजूद शून्य हो जाएगा। जिन संस्थाओं ने जब चंदा इनको दिया उन्हें भी इनसे सवाल करना चाहिए था, यह संस्था एक कब और कैसे होगी। अगर आप लोगों को लगता है कि मैं संस्था को एक करने की बात करता हूं वह गलत है तो कृपया कर मुझे लिख भेजें कि संस्थाएं दो ही बेहतर है, आप एक करने की बात ना किया करें। संस्था को एक करने के लिए मेरी बात कहने का तरीका गलत हो परंतु भाव सिर्फ इतना है कि संस्था एक हो।