182 की फाइल पर भ्रष्टाचार की धूल ने बांधे अफसरों के हाथ

आबूलेन बंगला 182 की फाइल पर भ्रष्टाचार की धूल ने बांधे अफसरों के हाथ
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182 की फाइल पर भ्रष्टाचार की धूल ने बांधे अफसरों के हाथ

-जयप्रकाश की बोर्ड और हाईकोर्ट से तमाम अपीलें व बंगले को फ्री होल्ड की अर्जी भी खारिज-

-हाईकोर्ट के आदेश पर ध्वस्त किए गए बोम्बे मॉल की तर्ज पर किया बनाया जा रहा है अवैध कांप्लैक्स-

मेरठ। छावनी की घनी आबादी के बीच आबूलेन स्थित रिहायशी बंगला 182 में अवमानना के चलते हाईकोर्ट के आदेश पर जमीदोज किए गए बोम्बे बाजार स्थित बाेम्बे माॅल की तर्ज पर एक और अवैध कांप्लैक्स का निर्माण किया जा रहा है। शहर भर के तमाम बिल्डरों में इस तामीर की जा रही इस अवैध इमारत की चर्चा गरम है, लेकिन इसके बाद भी कैंट बोर्ड मेरठ के अफसर लगभग सौ दुकानों के इस अवैध निर्माण से बेखबर हैं। जानकारों की मानें तो इस अवैध निर्माण में तमाम उन लोगों के अपने अपने किरदार हैं जिनके किरदार भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत जमीदोंज किया जा चुका बोम्बे माल है। हालांकि यह बात अलग है कि कैंट बोर्ड के कुछ भ्रष्ट अफसरों की छत्रछाया में बोम्बे मॉल एक बार फिर से गुलजार और आबाद हो गया है। इस बार यदि बोम्बे माॅल के आबाद होने को हाईकोर्ट के अवमानना का केस चलेगा तो उसमें कैंट बोर्ड के उच्च पदस्थ अफसरों को भी आरोपी बनाया जाएगा। लेकिन अभी बात केवल आबूलेन के बंगला 182 की हो रही है।

ओल्ड ग्रांट के 182 की मालकिन बीबी सादत सुलतान बेगम

आबूलेन स्थित ओल्ड ग्रांट के इस बंगले की जीएलआर में मालकिन बीबी सादत सुलतान बेगम नाम की खातून हैं। उनसे यह बंगला बिल्डरों तक कैसे पहुंचा, इसकी भी एक लंबी कहानी है। बिल्डरों ने इस बंगले को औने पौने दामों पर अवैध रूप से क्रय करने के बाद इसको अवैध तरीके अपनाकर रिहायशी से कामर्शियल में तब्दील करने का कारनामा अंजाम दिया। इस खेल की शुरूआत साल 2005 में हुई। उस वक्त जेएस माही कैंट बोर्ड के सीईओ थे और डीके मलिक डीईओ रक्षा संपदा। बाजार एरिया में होने की वजह से डीईओ का इसमें कोई खास रोल नहीं था। पूरी तरह से यह बंगला कैंट बोर्ड के ज्यूरीडिक्शन में आता है। अवैध निर्माण करने वाले बिल्डर जय प्रकाश अग्रवाल ने जय प्लाजा नामांतरण कर इसमें अवैध दुकानें बना दीं।

चेज ऑफ परपज-सब डिविजन ऑफ साइट

साल 2005 में अवैध क्रय कर  आबूलेन स्थित बंगला 182 में दुकानें बनाकर चेंज ऑफ परपज और बंगले में सब डिविजन ऑफ साइट कर दिया। जिसके बाद कैंट बोर्ड के तब के अफसरों ने इस पर कार्रवाई यानि नोटिस देने शुरू कर दिए। इसको लेकर जितनी भी अपीलें की गईं, वो सभी खारिज कर दी गईं। साल 2996 में जय प्लाजा की सभी अपीलें खारिज किए जाने के बाद यहां सील लगाने सरीखी की कार्रवाई की गईं। ध्वस्तीकरण के भी आदेश हुए। इस बीच बंगले को फ्री होल्ड कराने की अर्जी के साथ बिल्डर ने हाईकोर्ट में फरियाद की, लेकिन हाईकोर्ट से भी उसकी फरियाद खारिज हो गई। हाईकोर्ट से फरियाद खारिज होने के बाद जय प्लाजा के अवैध निर्माण को ध्वस्त किए जाने का पूरा अधिकार कैंट बोर्ड प्रशासन काे मिल गया। लेकिन बजाए ध्वस्तीकरण के लिए हाथ खोलने के कैंट बोर्ड के तमाम अफसर जिनमें वर्तमान अफसर भी शामिल हैं, बिल्डर के सामने हाथ बांधकर खड़े हो गए।

नवेन्द्र नाथ ने मारा था छापा

जय प्लाजा के पिछले हिस्से में जहां बाग बगीचे थे, वहां अवैध निर्माण शुरू कराए जाने की भनक मिलने के बाद पूर्व के सीईओ नवेन्द्र नाथ ने मौके पर छापा भी मारा था। उसके लेकिन उनके तवादले के बाद मानो बिल्डर को कैंट प्रशासन ने अवैध निर्माण की क्लीनचिट जारी कर दी। सुनने में आया है कि जय प्लाजा के पीछे वाले हिस्से में सौ से ज्यादा दुकानों को बहुमंजिला बोम्बे माल की तर्ज पर कांप्लैक्स बनाया जा रहा है। काफी हद तक उसका काम निपट भी चुका है। दो मंजिल तक लैंटर भी डाला जा चुका है।

सीईओ व इंजीनियर सेक्शन पर सवाल

इतने भारी भरकम अवैध निर्माण को लेकर सीईओ कैंट और इंजीनियरिंग सेक्शन के एई व जेई से सवाल तो बनता है कि उन्हें इस अवैध निर्माण का पता नहीं या फिर अंजान बने हुए हैं। यदि मान लिया जाए कि पता नहीं चला। वो बात अलग है कि पूरे शहर को इस अवैध इमारत के तामिर होने की खबर है। दुकानों की बुकिंग भी शुरू कर दी गयी है। यह मामला सामने लाए जाने के बाद क्या अब भी कैंट बोर्ड प्रशासन हरकत में नहीं आएगा या फिर रक्षा मंत्रालय के दखल के बाद ही 182 की फाइल पर जमी भ्रष्टाचार की धूल काे साफ करने के लिए डायरेक्टर मध्य कमान सरीखे किसी अफसरों को एक बार फिर से मेरठ आना होगा।

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