मेयर: घाटे में रही है भाजपा, मेरठ समेत प्रदेश के सभी नगर निगम के मेयर के चुनावों की रणभेरी बज गयी है, लेकिन यदि मेरठ की बात की जाए तो सत्ताधारी पार्टी भारतीय जनता पार्टी मेरठ नगर निगम के मेयर को लेकर अब तक घाटे में ही रही है। महज दो बार ही भाजपा अपना मेयर बना सकी। मेरठ में अब तक रहे मेयरों की यदि बात की जाए तो शुरूआत साकेत स्थित असावरी कोठी जो अब एक सोसाइटी में तब्दील हो गयी है, वहां से होती है। असावरी बड़े कारोबारी अरूण जैन का रिहायश हुआ करते था, जहां सुबह के वक्त तमाम दलों के नेता हाजरी लगाने पहुंचा करते थे। मेरठ को नगर निगम का दर्जा मिलने के बाद जब पहली बार चुनाव हुआ तो जनता दल के टिकट पर अरूण जैन मैदान में थे। उन्होंने कांग्रेस के दयानंद गुप्ता को दो मतों से मात दी। दरअसल तब निर्वाचित होकर आने वाले सभासद मेयर चुना करते थे। पब्लिक द्वारा मेयर का चुनाव का चलन तो बाद में आया। अरूण जैन के बाद मेरठ के मेयर जनता दल के ही अय्यूब अंसारी बने। अय्यूब अंसारी ने भी भाजपा के प्रत्याशी सत्य प्रकाश अग्रवाल को करारी मात दी। हालांकि बाद में सत्यप्रकाश अग्रवाल विधायक बन गए। अय्यूब अंसारी ने केवल भाजपा के सत्यप्रकाश अग्रवाल को पटखनी नहीं दी बल्कि भाजपा के बागी व मेरठ के कदावर नेता मोहन लाल कपूर को भी करारी शिकस्त दी। अय्यूब अंसारी के बाद मेयर बनने की बारी आयी हाजी शाहिद अखलाक की। उन्होंने भाजपा के पवन गोयल को करारी शिकस्त दी। इस बार चुनावी महासमर में मोदी कान्टीनेंटल के कर्मचारी नेता व एक साफ सुथरी छवि वाले श्याम मोहन गुप्ता भी मैदान में थे। साफ सुथरी छवि के बूते श्याम मोहन गुप्ता का करीब बीस हजार वोट हासिल कर लेना एक बड़ी बात थी, लेकिन श्याम मोहन गुप्ता शायद तब नहीं जानते थे कि आमतौर पर भारतीय राजनीति में उनके सरीखे या उनके जैसे मिजाज वालों की खपत नहीं है। हाजी अखलाक के मेयर बनने के बाद भाजपा की हार का सिलसिला टूटा भाजपा के नाम पर मधु गुर्जर मेयर बनीं। उन्होंने संजीदा बेगम को हराया। दरअसल इस बार भाजपा की जीत की वजह संजीदा बेगम सरीखी कमजोर प्रत्याशी को माना गया। मधु गुर्जर के बाद भाजपा ने हरिकांत अहलूवालिया के तौर पर जीत का सिलसिला जारी रखा, लेकिन जब सामने मजबूत प्रत्याशी के तौर पर सुनीता वर्मा आयी तो भाजपा की कांता कर्दम को शिकस्त मिली। सुनीता वर्मा ने भाजपा की कांता कर्दम के अनीता सूद को भी हराया। इस बार भी भाजपा का चुनाव फंसा हुआ नजर आ रहा है। नगर निगम की राजनीति का सहूर रखने वाले जानकार इसकी वजह सपा-रालोद गठबंधन व आम आदमी पार्टी से दो महिला चेहरे उतारने जाने के बाद भाजपा के चुनाव को लगभग फंसा हुआ मान कर चल रहे हैं। इसकी काट भाजपा का थिक टैंक कहां तक तलाश कर पाता है यह प्रत्याशी के नाम के एलान के बाद ही पता चल सकेगा।