बेसिक के मास्टर जी बेचारे काम के बोझ के मारे, -बेसिक के मास्टर जी हैं या फिर स्टेपनी-, सरकार की नीतियों व निर्णयों ने सरकारी स्कूलों के गुरू जी को स्टेपनी बनाकर रख दिया है। जो कान किसी अन्य विभाग का कर्मचारी न कर सके वो गुरू जी को सौंप दो। जहां तमाम महकमों का स्टाफ हाथ खड़े कर दे। वहां बेसिक के स्टेपनी बन चुके गुरू जी को जबरन धकेल दो। मास्टर जी की जो हालत बना कर रख दी है उसके बाद यह समझ में नहीं आ रहा है कि वो बच्चों को पढ़ाएंगे कब। जितना लंबा शडयूल उन पर थोप दिया गया है और जितने ज्यादा काम व जिम्मेदारी बेसिक के मास्टर जी के कंधों पर है, उसके चलते तो सबसे ज्यादा चिंता मास्टर जी के कंधों की है कि सरकार की ओर से खच्चर की मानिंद लाद दिया गया इतना ज्यादा बोझ सहन भी कर सकेंगे या फिर रास्ते में ही घुटने टेक देंगे। मास्टर जी के कंधाें पर अब तक शिक्षा के अलावा चुनाव कराने का ही काम भर था, लेकिन वर्तमान में ऐसे कामों की लंबी लिस्ट है जो उनके कंधों पर लाद दिए गए हैं। मसलन चुनाव कराने के अलावा सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट माने जाने वाला स्कूल चलो अभियान। इस अभियान में लगे मास्टर जी दूर दराज के गांवों के अलावा शहर के स्लम इलाकों में बच्चों को स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों से मिन्नतें करते देखे जा सकते हैं। यहां तक भी गनिमत थी। मुसीबत तो तब शुरू हुई जब स्वास्थ्य विभाग का काम भी मास्टर जी कंधों पर आ गया।संचारी रोग नियंत्रण अभियान, खाद्यान्न वितरण ड्यूटी, बच्चों के फोटो व प्रोफाइल अपडेट करने, स्कूल के बाद हाउसहोल्ड सर्वे आदि के काम भी हैं। स्टेपनी बने मास्टर जी इन कामों में इतना व्यस्त हैं कि उन्हें पढ़ाने का वक्त ही नहीं मिल रहा है।
पढाने के अलावा सब कुछ
प्राइवेट स्कूलों का डाटा भी फीड उनसे कराया जा रहा है। इसी क्रम में अक्सर शिक्षकों की ऑनलाइन व ऑफलाइन ट्रेनिंग भी होती है। कुछ शिक्षकों को एआरपी, एसआरजी, शिक्षक संकुल के रूप में तैनात कर भी शिक्षण कार्य से दूर कर दिया जाता है। शिक्षक ट्रेनिंग करने, बीएलओ ड्यूटी, बोर्ड परीक्षाओं के संचालन आदि में भी लगते हैं। इतना ही नहीं, कई बार शिक्षकों की ड्यूटी बच्चों को अल्बेंडाजोल (पेट के कीड़े मारने की दवा) की गोली खिलाने और दवा खाने से छूटे बच्चों का डाटा रजिस्टर मेंटेन करने में भी लगा दी जाती है। इसके अलावा भी कई अन्य कामों में ड्यूटी लगा दी जाती है।