32 साल में कुछ नहीं कर पाए-इनसे ना रखें उम्मीद

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32 साल में कुछ नहीं कर पाए-इनसे ना रखें उम्मीद,

यूं ही जारी रहेगा हादसों का सिलसिला, 32 साल में कुछ नहीं कर पाए, इनसे ना रखें उम्मीद

1992 में तत्कालीन मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव नगर विकास ने कैटल कालोनी के दिए थे आदेश

शहर में चल रहीं 2350 डेयरियां की जानी हैं आबादी से बाहर, सरकारी आंकड‍़ों से कहीं ज्यादा हैं डेयरियों की संख्या

मेरठ। शहर में आबादी के बीच चल रही डेयरियों को बाहर कैटल कालोनी में शिफ्ट किए जाने के शासन के आदेश 32 साल पहले जारी हुए थे। साल 1932 में तत्कालीन मुख्य सचिव व प्रमुख सचिव नगर विकास ने उक्त आश्य के आदेश जारी किए थे। इन आदेशों में कहा गया है कि मेरठ समेत प्रदेश के तमाम नगरों में जितने भी डेयरियां आबादी के बीच संचालित की जा रही हैं उन्हें शहर के बाहर कैटल कालोनी विकसित कर शिफ्ट कर दिया जाए। इन 32 सालों के दौरान मेरठ में पुलिस प्रशासन ही नहीं नगर निगम और मेरठ विकास प्राधिकरण में कई अफसर आए और चले गए। कितने सांसद, मंत्री, विधायक बने और चले गए, लेकिन एक भी नाम ऐसा नहीं याद पड़ता जिसको लेकर कहा जा सके कि अमुक अफसर या जनप्रतिनिधि शहर में आबादी के बीच चल रही डेयरियों को लेकर गंभीर था। हां इतना जरूर है कि इस समस्या को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना या उनके सरीखे एक दो अन्य के स्तर से सिस्टम को चलाने वालों को बार-बार नींद से जगाने का प्रयास किया जा रहा है, यह बात अलग है कि  अफसरों की कुंभकर्णी नींद है कि टूटती ही नहीं। जब भी कोई हादसा होता है तब जरूर दो चार दिन उसका साइड इफैक्ट नजर आता है, लेकिन वक्त बीतने के साथ ही तमाम फाइलें अगली घटना के इंतजार में दफन कर दी जाती हैं। जाकिर कालोनी की घटना के बाद निश्चित रूप से आबादी के बीच चल रही डेयरियों को हटाने वाली फाइल की धूल झाडी जाएगी। अफसरों के बयान आएंगे। हो सकता है कि नगर निगम या दूसरे महकमे पुलिस को साथ लेकर कुछ ऐसा करें जिससे मीडिया कवरेज मिल सकें। यह भी हो सकता है कि कुछ पशु पकड़ कर गोशाला भेज दिए जाएं। कुछ जब्त कर लिए जाएं, लेकिन शहर के डेयरियों की बात करें तो उनकी संख्या तो 2350 है। इतनी तो डेयरी हैं और यदि एक डेयरी में औसतन पचास पशु भी हों तो अंदाजा लगा लीजिए हालात कितने खराब हैं।

शास्त्रीनगर एफ-ब्लॉक कोठी में 90 भैंसे

पशु डेयरियों को लेकर हालात कितने गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शास्त्री एफ-ब्लॉक में विधायक अतुल प्रधान कीे आवास के समीप एक कोठी में 90 भैंसों की डेयरी चल रही है। भगत सिंह मार्केट इलाके में एक मकान मे 75 भैंसों की डेयरी चल रही हैं। इन डेयरियों से निकलने वाला गोबर मक्काचीन नाले में बहा दिया जाता है। नाले में जब गोबर बहाया जाएगा तो वहां बहने वाले पानी का ठहरना तय है। गोबर से शहर के तमाम नाले लबालब हैं। निगम प्रशासन भले ही कुछ भी दावे करे लेकिन होता कुछ नजर नहीं आ रहा।

हाईकोर्ट में 17 रिट हैं दायर

शहर में चल रही डेयरियों को लेकर हाे रही समस्याओं से डेयरी संचालक अनभिज्ञ हो ऐसा भी नहीं है। डेयरी संचालक खुद चाहते हैं कि प्रशासन कैंटल कालोनी विकसित करे ताकि अपने पशुओं को वो लोग आबादी के बीच से कैटल कालोनी में शिफ्ट कर सकें। डेयरी संचालकों की ओर से कोर्ट में पैरवी कर रहे आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना बताते हैं कि हाईकोर्ट में इसको लेकर 17 रिट दायर की जा चुकी हैं। इस मामले में बजाए ठोस कदम उठाने के अधिकारियों का रवैया एक दूसरे के पाल में गेंद डालने सरीखा है इससे ज्यादा कुछ नहीं। साल 2012 से इसको लेकर हाईकोर्ट में कानूनी लड़ाई जारी है।

मेडा भेज चुका है डीएम को प्रस्ताव

शासन के आदेशों के चलते मेरठ विकास प्राधिकरण कैटल कालोनी बनाने के लिए जिला प्रशासन से जमीन की मांग कर चुका है। इसके लिए वीसी मेडा के साइन से अनेक प्रस्ताव जिला प्रशासन को भेजे जा चुके हैं। मेडा ने कैटल कालोनी के लिए 83 हजार वर्ग मीटर जमीन डीएम से मांगी है।

मुसीबतों का है अंबार

आबादी के बीच चल रही डेयरियां मुसीबतों की वजह बनी हुई हैं।  डेयरी संचालक व उनके कर्मचारी गंदगी को कॉलोनी या आसपास फेंक देते हैं। निवासी और पार्षद इनकी शिकायत कई बार अधिकारियों से कर चुके हैं। इसके बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों ने कार्रवाई के बजाय आंखें मूंद रखीं हैं। ये डेयरियां न केवल गंदगी फैलाकर लोगों स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हैं बल्कि कभी भी जाकिर कालोनी जैसे हादसे की पुनरावृत्ति कर सकती हैं। शहर की अधिकांश कालोनी में डेयरी का कारोबार किया जा रहा है। नगर निगम और मेडा क्षेत्र की आवासीय कॉलोनियों के मकानों में व्यवसायिक गतिविधियों पर रोक लगी हुई है। शहर में संचालित होनी वाली डेयरियां गंदगी का बड़ा कारण हैं। शहर में डेयरियों से निकलने वाली गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। यही गंदगी सड़क व नाले में जमा हो जाती है।इससे मच्छरों और बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके चलते कई पार्षद व निवासी अधिकारियों से शिकायत कर डेयरियों पर अंकुश लगाने की मांग कर चुके हैं। इसके बावजूद अधिकारियों की कृपा दृष्टि डेयरियों पर बनी रहती है। अब, कई लोगों की जान जाने के बाद अधिकारी इन डेयरियों पर अंकुश लगा पाते हैं या नहीं यह देखने वाली बात होगी। शहर में जलभराव की समस्या भी लोगों के मुसीबत का कारण बन गई है। शनिवार को हुए हादसे की मुख्य वजह भी नींव में बारिश का पानी रिसाव बताया गया है। शहर में गली-गली में होने वाला जलभराव वहां स्थित भवनों की नींव कमजोर करता है। लोग अक्सर जलभराव की समस्या से निजात दिलाने की मांग करते हैं। नालियों और नालों में जमा होने वाली डेयरी की गंदगी भी जलभराव का बड़ा कारण है। लेकिन निगम के अधिकारी न तो पानी निकासी की उपयुक्त व्यवस्था कर पाए हैं और न ही जलभराव से निजात दिला पाएं हैं।

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