नारद के श्राप के कारण त्रेता युग में भटकना

नारद के श्राप के कारण त्रेता युग में भटकना
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नारद के श्राप के कारण त्रेता युग में भटकना, श्री सनातन धर्म रक्षिणी सभा पंजीकृत मेरठ शहर के तत्वधान में श्री रामलीला कमेटी पंजीकृत मेरठ शहर द्वारा बुढ़ाना गेट स्थित जिमखाना मैदान में प्रथम दिन रामलीला का मंचन किया गया। सर्वप्रथम आज की लीला मंचन के मुख्य अतिथि विकास चौबे द्वारा दीप प्रज्वलन कर आरती पूजन, गणेश वंदना व लक्ष्मी नारायण के पूजन के पश्चात कार्यक्रम की शुरुआत की गई। मुख्य पूजनकर्ता प्रवीण अग्रवाल रहे । 20 फीट की ऊंचाई पर प्रभु ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी ने भगवान श्री गणेश व उनकी दोनों पत्नियां रिद्धि सिद्धि पर फूल बरसा कर आशीर्वाद दिया। यह दृश्य बहुत ही मनमोहक था।

रामलीला का शुभारंभ श्री कला मंच ग्रेटर नोएडा के प्रशिक्षित कलाकारों द्वारा किया गया। सभी आर्टिस्ट ने आधुनिक लाइट और साउंड के माध्यम से अपनी कला का जादू बखेरा।

सर्वप्रथम माता सती और भगवान शिव के परम प्रेम की कथा का वर्णन किया गया। जिसमें संदेश दिया गया कि किसी को बिन बुलाए कहीं पर नहीं जाना चाहिए चाहे वह कितना भी निकटतम क्यों ना हो ।विवाहित पुत्री को पिता के घर ,गुरु को शिष्य के घर अथवा किसी व्यक्ति के यहां जिससे अपवाद हो। इसके पश्चात धूमधाम से शिव विवाह संपन्न हुआ।
प्रभु श्री राम के दर्शन आज सभी भक्तो को हुए।
नारद मोह की लीला का मंचन करते हुए दर्शाया गया कि नारद जी हिमाचल की वादियों में तपस्या के लिए निकलते हैं । घोर तपस्या करते देख देवताओं के राजा इंद्र को डर हो जाता है कि कहीं नारद जी उनका राज्य ना हड़पना चाह रहे हैं। इसी डर के चलते नारद जी की तपस्या को भंग करने के उद्देश्य से देवताओं के राजा इंद्र तीन बाण वाले कामदेव को भेजते हैं। कामदेव अपने प्रयास में असफल रहते हैं । नारद जी तपस्या पूर्ण कर शंकर भगवान के पास आते हैं और उन्हें कामदेव के ऊपर अपनी विजय हासिल करने का वर्णन करते हैं। शंकर भगवान उनका वर्णन सुन नारद जी को समझाते हैं कि उनकी भाषा में अहम का प्रयोग हो रहा है उनमें अभिमान के अंकुर फूटने लगे हैं उन्हें समझाते हैं कि इस भाषा का प्रयोग विष्णु भगवान के पास जाकर ना करें। नारद भगवान उनकी अनसुनी कर विष्णु जी के पास पहुंचते हैं और उन्हें भी अपने अहंकार की भाषा में कामदेव के ऊपर विजय का वर्णन करते हैं। भगवान विष्णु उन्हें अनसुना करते हैं परंतु बाद में वह नारद को प्रेम भी करते थे और उनके अभिमान के अंकुर को फूटने नहीं देना चाहते थे।
नारद जी का अहंकार खत्म करने को भगवान विष्णु ने एक नगर बसाकर राजा की पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर की रचना की। नारद जी वहां पहुंच कन्या के रूप को देखकर मोहित हो जाते हैं, और भगवान का स्मरण करते हुए अपने रूप को सुंदर बनाने की मांग करते हैं। स्वयंवर में कन्या वहां मौजूद भगवान के गले में माला डाल देती है, जिसे देख नारद जी गुस्से में आ जाते हैं।

असुर सुरा बिष संकरहि आपु रमा मनि चारु।
स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु॥
अर्थार्त

असुरों को मदिरा और शिव को विष देकर तुमने स्वयं लक्ष्मी और सुंदर (कौस्तुभ) मणि ले ली। तुम बड़े धोखेबाज और मतलबी हो। सदा कपट का व्यवहार करते हो॥
भगवान के परम प्रिय नारद जी के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु को पत्नी वियोग में त्रेता युग में भटकना पड़ा। भगवान नारद मोह का प्रसंग कलाकारों द्वारा ऐसे दर्शाया गया कि श्रोता उसी युग में पहुंचकर किसी कला को नहीं स्वयं प्रभु के दर्शन कर रहे थे। इसके पश्चात रावण द्वारा ऋषि-मुनियों को मारना पीटना व उसके अत्याचार के कारण पृथ्वी ने प्रभु से पुकार कर प्रार्थना की कि वह स्वयं पृथ्वी पर प्रकट हो रावण से पृथ्वीलोक को बचाएं। रामलीला मंचन के पश्चात वहां मौजूद सभी भक्तजनों को प्रसाद भेंट किया गया। इस कार्यक्रम में संस्था अध्यक्ष मनोज गुप्ता राधा गोविंद मंडप, महामंत्री मनोज अग्रवाल खद्दर वाले, कोषाध्यक्ष योगेंद्र अग्रवाल बबलू, राकेश गर्ग, अंबुज गुप्ता, रोहताश प्रजापति, राजन सिंघल, आनंद प्रजापति, राकेश शर्मा, अनिल गोल्डी, दीपक शर्मा, विपुल सिंघल ,संदीप गोयल रेवड़ी, मयंक अग्रवाल, मयूर अग्रवाल, अपार मेहरा, विपिन अग्रवाल ,लोकेश शर्मा ,मनोज दवाई, मनोज वर्मा, पंकज गोयल पार्षद सहित हजारों की संख्या में भक्तगण मौजूद रहे।

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