मेडा ने पुलिस प्रशासन पर फोड़ा ठीकरा,
गर्दन बचाने को मेडा अफसरों ने पुलिस प्रशासन पर फोड़ा ठीकरा,
तंग गलियों में अवैध कांप्लैक्सों पर हाईकोर्ट सख्त, प्राधिकरण अफसर तलब
मेरठ। दो फुट की गली में सौ दुकानों का अवैध कांप्लैक्स कैसे बनकर तैयार हो गया। शहर की घनी आबादी वाले शीश महल, लाला का बाजार, शहर सराफा बाजार, नील की गली सरीखे तमाम इलाकों में तंग गलियों जिनमें से कुछ में ई रिक्शा में भी मुश्किल से गुजरेगी, वहां सौ या इससे अधिक दुकानों के कांप्लैक्स कैसे बन गए। मेरठ विकास प्राधिकरण के अफसर कैसी डयूटी कर रहे थे, जो उन्हें मेरठ शहर की गली कूचों में अवैध रूप से बनाए जा रहे कांप्लैक्सों की भनक तक नहीं लगी। शहर की तंग गलियों में अवैध कांप्लैक्सों को लेकर मिशन कंपाउंड थापर नगर निवासी आरटीआई एक्टिविस्ट मनोज चौधरी की जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने मेडा अफसरों को तलब कर लिया है। और सवाल किया है कि शहर के पुराने मकान कैसे सौ-सौ दुकानों के अवैध कांप्लैक्सों मे तब्दील हो गए। ऐसा क्या हुआ हो अवैध निर्माण रोकने के लिए जिम्मेदार मेडा अफसरों को इनकी भनक तक नहीं लगी या फिर यह मान लिया जाए कि टाउन की जो प्लानिंग मेडा के टाउन प्लानर कर रहे है उसमें गली कूचों में मौत के कुंओ की मानिंद बना दिए गए अवैध कांप्लैक्सों को भी मुनासिब जगह दी गयी है। मेडा के टाउन प्लानर और अवैध कब्जे रोकने के लिए बनाए गए प्रवर्तन दल की नजर में मौत के कुंए सरीखे ये गली कूचों के अवैध कांप्लैक्स प्राधिकरण को स्वीकार्य हैं वर्ना क्या वजह है कि इन पर कार्रवाई नहीं की गयी।
ठिकरा पुलिस प्रशासन पर
मेरठ के अवैध कांप्लैक्सों पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के चाबुक से घबराए मेडा प्रशासन ने सारा कसूर मेरठ के पुलिस प्रशासन के आला अफसरों का बता दिया। दरअसल इस मामले की पहली सुनवाई इसी साल 29 अप्रैल को हुई थी। उसके बाद हाईकोर्ट से मेरठ विकास प्राधिकरण को नोटिस इश्यू हो गए थे। इन नोटिसों काे जो उत्तर हाईकोर्ट में दाखिल किया गया है उसमे ठीकरा पुलिस प्रशासन पर फोड़ते हुए बताया गया है कि अधिकारियों ने फोर्स नहीं दिया, जिसकी वजह से कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
बन कैसे गए इस पर चुप्पी
शहर की गली कूचों में पुराने मकान अवैध कांप्लैक्सों में कैसे तब्दील हो गए इस पर जो उत्तर हाईकोर्ट में मेरठ विकास प्राधिकरण की ओर से दाखिल किया गया है उसमें उसका कोई कारण नहीं बताया गया है। जनहित याचिका दायर करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट का सवाल है कि एक अवैध कांप्लैक्स रातों रात या फिर एक दो दिन या सप्ताह में या महीने में नहीं बन गए। इनमें एक अरसा लगा है, लेकिन अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई का दम भरने वाले मेडा अफसर इन अवैध कांप्लैक्साें की ओर जाकर झांकने का साहस नहीं जुटा सके। इस मामले में अब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अदालत में 21 अक्तूबर को सुनवाई होनी है।