कुदरत का कहर-घुटनों पर तालिबान, कुदरत के कहर ने तालिबान को घुटनों पर ला दिया है। बुधवार को आए भूकंप के बाद तालिबान दुनिया के सामने मदद को गिड़गिड़ा रहा है। तालिबानी हुकुमरानों की समझ में आ गया है कि दुनिया से अलग थलग रहकर हुकुमत नहीं की जा सकती। दरअसल एक साल पहले जब अमेरिकों की कायराना हरकत से तालिबानी अफगानिस्तान पर काबिज हुए थे तो दुनिया की तमाम ऐसियों खासकर इंसानी मददगार ऐजेन्सियों ने तालिबान छोड़ दिया था। भूकंप के कहर के बाद अब तालिबान दुनिया से मदद मांग रहा है। अफगानिस्तान की आपात सेवा के अधिकारी सराफुद्दीन मुस्लिम ने कहा , ‘‘किसी देश में जब इस तरह की कोई बड़ी आपदा आती है तब अन्य देशों की मदद की जरूरत पड़ती है। अफगानिस्तान में सर्वश्रेष्ठ परिस्थितियों में भी ग्रामीण इलाकों में पहुंचने में मुश्किल होती है और भूकंप से पर्वतीय क्षेत्र की सड़कों को काफी नुकसान पहुंचा है। इन परिस्थितियों के मद्देनजर, तालिबान सरकार के एक अधिकारी ने अंतरराष्ट्रीय मदद मांगी है। काबुल में, प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद ने पक्तिका और खोस्त में भूकंप पीड़ितों के लिए राहत कोशिशों में समन्वय के वास्ते राष्ट्रपति भवन में एक आपात बैठक बुलाई है।
बख्तर समाचार एजेंसी ने जो मृतक संख्या (1,000) बताई है वह 2002 में उत्तरी अफगानिस्तान में आये भूकंप के बराबर है. वहीं, 1998 में अफगानिस्तान के उत्तरपूर्वी इलाके में 6.1 की तीव्रता वाले भूकंप में कम से कम 4,500 लोग मारे गये थे। पक्तिका से प्राप्त फुटेज में यह देखा जा सकता है कि लोग कंबल में लपेट कर घायलों को हेलीकॉप्टर तक पहुंचा रहे हैं. अन्य का इलाज जमीन पर किया जा रहा है। बचावकर्मी हेलीकॉप्टर से मौके पर पहुंचे, लेकिन तालिबान के सत्ता पर कब्जा कर लेने के बाद कई अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों के अफगानिस्तान से चले जाने के कारण इसमें दिक्कत आने की संभावना है। विशेषज्ञों ने भूकंप के केंद्र की गहराई महज 10 किमी बताई है, जो इससे हुए विनाश का दायरा बढ़ा सकता है. इस आपदा ने तालिबान नीत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है, जिसने पिछले साल सत्ता पर कब्जा कर लिया था।