अंधेरे में जो है बैठे नजर उन पर भी कुछ डालो अरे ओ रोशनी वालों, आपकी जिदंगी को उजाले से रोशन करने वाले खुद मुफ्लिसी की गर्दिशों के अंधेरे में रहने को मजबूर हैं। महंगाई के इस दौर में जब आटा से लेकर डाटा व बाइक के तेल और पढाई तथा बीमारी सब कुछ महंगा सब कुछ महंगा सिवाए इसकी जिंदगी के। इनकी जिंदगी की कीमत महज साढ़े सात लाख रुपए लगायी गयी है और काम की बात की जाए तो वक्त भी कम पड़ जाएगा और काम की फेरिस्त बनाते-बनाते कागज भी कम पड़ जाएगा। आज यह संवाददाता बात कर रहा है पीवीवीएनएल के उन बंधुआ मजदूरों की जिन्हें लाइन मैन या बिजली वाले भैय्या कहकर लोग बुलाते हैं। दिन हो या रात, धूंप हो या छांव, आंधी हो या बरसात जब हम अपने घरों में खुद को कैद कर लेते हैं तब ये मजदूर कंधे पर या फिर साइकिल और बाइक पर सीढी लादकर हमारे घरों में उजियारा करने को निकल पड़ते हैं।
यकीन करो ये वाकई मजदूर हैं
इस खबर में लाइन मैन या बिजली वाले भैय्या को मजदूर लिखा है, आप यकीन कीजिए श्रम विभाग की लिखा पढी में इन्हें वाकई मजदूर का दर्जा दिया गया है। निविदा संविदा कर्मचारी सेवा समिति के अध्यक्ष ठाकुर भूपेन्द्र सिंह (मेरठ) ने पीवीवीएनएल ही नहीं बल्कि यूपी पावर कारपोरेशन को अपने कंधों पर ढोहने वाले जिन्हें साेसाइटी लाइन मैन या बिजली वाले भैय्या कहकर बुलाता है, उन मजदूरों श्रम विभाग में जो लिखा पढ़ी सरकार ने करायी है उसकी स्याह हकीकत को बेपर्दा किया है। श्रम विभाग में इनको भवन निर्माण मजदूरों के तौर पर दर्ज किया गया है।
साढ़े सात लाख लगायी है जिंदगी की कीमत
सरकार ने इन मजदूरों की जिंदगी की कीमत करीब साढे सात लाख लगायी है। श्रम विभाग में बतौर भवन निर्माण मजदूर के तौर पर पंजीकृत जिन संविदा कर्मचारियों को पीवीवीएनएल में काम पर रखा गया है, वो यदि काम के दौरान हादसे का शिकार होने के चलते इस दुनिया से रूखस्त हो जाते हैं तो उनके आश्रितों को सिर्फ साढ़े सात लाख की रकम बतौर मुआवजा मिलेगी। रूकिए थोड़ा सब्र कीजिए अभी सिस्टम की बेहयाई आनी तो बाकि है। साढ़े सात लाख के इस बीमे की रकम भी केवल तभी मिलेगी जब इलेक्ट्रक्ल एक्सीडेंट होगा। मतलब काम के दौरान यदि कोई इलैक्ट्रक्ल एक्सीडेंट किसी मजदूर के साथ होगा तभी यह रकम मिलेगी। यदि किसी अन्य हादसे में उसकी मौत हो जाती है तो उसके परिवार को फिर बीमे की इस रकम से महरूम कर दिया जाएगा, भले ही उसकी मौत के बाद परिवार सड़क पर ही क्यों न आ जाए।
गिनते-गिनते थक जाओगे काम
पीवीवीएनएल के इन निर्माण मजदूरों की यदि डयूटी की फेरिस्त की बात की जाए तो वो इतनी लंबी है कि यदि गिनने की बारी आएगी तो थक जाओगे लेकिन काम की यह फेरिस्त खत्म होने का नाम नहीं लेगी, इस लंबी चौड़ी फेरिस्त के बाद भी नौकरी पर हमेशा खतरा मंडराता रहता। इस बात का डर हमेशा हाबी रहता कि कहीं एसडीओ या जेई किसी बात से रूठ ना जाए और बाहर करने का फरमान सुना दें। अब जरा एक नजर फेरिस्त पर भी डाल लीजिए
-कनैक्शन और डिस कनेक्शन करना।
-चार किलो वोट के नए कनेक्शन लगाना।
-उपभोक्ताओं की बिजली संबंधित तमाम शिकातयों को अटेंड करना।
-किसी भी कारण से काट दिए गए कनेक्शन को जोड़ना।
-हाइटेंशन समेत तमाम प्रकार के फाल्ट दूर करना।
-11 हजार हाइटेंशन लाइन की पेट्रोलिंग व मेनटिनेंस के साथ ब्रेक होने पर उसको जोड़ना।
-एलटी यानि खंबा टूटने या एक जगह से दूसरे जगह पर उसको शिफ्ट करना।
-33 हजार हाईटेशन की लाइन की पेट्रोलिंग करना तथा उसका मेनटिनेंस रखना तथा ब्रेक होने पर जोड़ना।
-ट्रांसफार्मरों की सफाई और फूंके हुए ट्रांसफार्मरों को बदलना या रिपेयर करना।
-पावर स्टेशन के यार्ड की सफाई करना तथा उसको मेनटेन रखना।
-मीटर रीडर जिन उपभोक्ताओं के मीटरों की रिडिंग नहीं ला पाते उनकी रिडिंग का कलेक्शन करना।
-दस किलो वाट से ज्यादा के कनेक्शन वाले बिलों को बांटना व रेवेन्यू जनरेट करना।
-यदि घर परिवार में कोई काम पड़ जाए तो डरते-डरते छुट्टी के लिए गुहार लगाना।
खतरे में जान-जरूरी है काम
-आधी तूफान या भयंकर बारिश के दौरान लाइनों व फीडर पर नजर रखना। प्राकृतिक आपदा के वक्त जब सब लोग घरों में सुरक्षित होते हैं तब लोगों के घरों को रोशन करने के लिए जान जोखिम में डालकर बिजली आपूर्ति को बनाए रखना। उसको बाधित न होने देना। अब खुद ही अंदाजा लगा लीजिए कि चिराग तले अंधेरा है या नहीं। या फिर किसी पुरानी फिल्म के गाने के बोल है कि अंधेरे में जो है बैठे नजर उन पर भी कुछ डालो अरे ओ रोशनी वालों।
काम-काम नहीं-इंसान-इंसान में फर्क
संविदा पर जो कर्मचारी रखे जाते हैं उनमें जो आईटीआई किए हैं उनको 10,843 महीने के मिलते हैं। जो आईटीआई नहीं किए हैं उनको करीब आठ हजार के पास पास और इसी काम के लिए जो रिटायर्ड आर्मी पर्सन आते हैं उनको करीब 29 हजार महीने के दिए जाते हैं। काम-काम में फर्क नहीं इंसान-इंसान में फर्क न कहे तो इसको और क्या कहें।
एक और स्याह हकीकत
निविदा संविदा कर्मचारी सेवा समिति के अध्यक्ष ठाकुर भूपेन्द्र सिंह ने बताया कि बीते पांच साल में करीब दो सो संविदा कर्मी डयूटी के दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं। उनकी मौत के बाद परिवार किस हाल में रह रहा है। दो वक्त की रोटी मिल भी रही है या नहीं, इससे महकमे को कोई सरोकार नहीं होता। अफसरों का रवैया तो बस यह है कि अपना काम बनता और….
मौत का साया और जिंदगी की दरकार
पीवीवीएनएल हो या फिर प्रदेश का कोई दूसरा डिस्काॅम संविदा कर्मचारी किन हालातों में काम कर रहे हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिर पर मौत का साया है और जिंदगी की दरकार है। यूं कहने को उनके पास सेफ्टी किट होनी चाहिए। जिसमें रबड़ के लॉग शूज (काफी साल पहले तक यूं लॉग शूज लाइन पर काम करने वाले कर्मचारियों के पांव में दिखाई देते थे, लेकिन अब नजर नहीं आते), सेफ्टी के लिए हेलमेट, वायर काटने के लिए अच्छी क्वालिटी का प्लास कटर सरीखा सामान भी होना चाहिए। कितने कर्मचारियों पर यह सामान है यह तो पीवीवीएनएल के अफसर ही बता सकते हैं।
वर्जन
तीस लाख का बीमा गारंटी
निविदा संविदा कर्मचारी सेवा समिति के अध्यक्ष ठाकुर भूपेन्द्र सिंह की सरकार से मांग है कि पीवीवीएनएल समेत तमाम डिस्कॉम के संविदा स्टाफ को भवन निर्माण मजदूरों के बजाए बाकायदा बिजली कर्मचारी के तौर पर ही श्रम विभाग में दर्ज किया जाए। साथ ही किसी भी प्रकार की दुर्घटना के चलते जिदंगी से हाथ धोने वाले संविदा कर्मियों को कम से कम तीस लाख का बीमा व परिवार के एक सदस्य को अमृत आश्रित कोटे में नौकरी मिले।