हाशिमपुरा के कसूरवारों को जमानत

हाशिमपुरा के कसूरवारों को जमानत
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हाशिमपुरा के कसूरवारों को जमानत,

मेरठ/शुक्रवार को आए सुप्रीमकोर्ट के एक आदेश ने एक बार फिर हाशिमपुरा वासियों के जख्म ताजा कर दिए हैं। करीब 38 साल पहले पीएसी और सेना के हाशिमपुरा में चलाए गए सर्च आॅपरेशन के बाद पीएसी ने करीब 42-45 जवान और बूढ़े लोगों को पकड़ा और उन्हें 41 वीं बटालियन की सी-कंपनी के पीले रंग के ट्रक में भरकर ले गए। आरोप है कि उन्हें थाने ले जाने के बजाय गाजियाबाद की मुरादनगर के पास एक नहर पर ले जाया गया। वहां पीएसी जवानों ने उन लोगों को गोली मार दी। कुछ शवों को गंग नहर में और बाकी को हिंडन नदी में फेंक दिया। इसमें 38 लोग मारे गए। ज्यादातर के शव तक नहीं मिले।
केवल 11 ही शव मिल सके थे
शर्मसार करने वाले इस घटना में मारे गए लोगों में से सिर्फ 11 शवों की पहचान उनके रिश्तेदारों ने की। हालांकि, पांच लोग बच गए। गोलीबारी के दौरान उन्होंने मरने का नाटक किया और पानी से तैरकर निकल गए।
यह हुई थी घटना
साल 1987 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सांप्रदायिक तनाव चल रहा था। इसे लेकर पीएसी और सेना ने शहर के हाशिमपुरा इलाके में सर्च आॅपरेशन चलाया। इस दौरान पीएसी की दो राइफलें लूट ली गईं और एक मेजर के रिश्तेदार की हत्या कर दी गई।
9 साल बाद चार्जशीट दायर हुई
हाशिमपुरा कांड ने अल्पसंख्यकों को हिलाकर रख दिया। मामले की जांच (क्राइम ब्रांच क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट) को सौंपी गई। इस वीभत्स घटना के करीब 9 साल बाद 1996 में गाजियाबाद की क्रिमिनल कोर्ट में चार्जशीट दायर हुई। दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश से पता चलता है कि गाजियाबाद कोर्ट ने तीन साल में 20 से ज्यादा वारंट जारी किए, लेकिन सभी बेनतीजा रहे। कुछ समय बाद पीड़ितों के परिवारों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामला दिल्ली ट्रांसफर कर दिया।
सबूतों के चलते ट्रायल कोर्ट से सभी आरोपी बरी
मई 2006 में दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने हत्या, आपराधिक साजिश, अपहरण, सबूत मिटाने और दंगा करने के अलावा अन्य मामलों में 19 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। हालांकि, लापरवाही यहां खत्म नहीं हुई। आरोपियों के बयान करीब 8 साल बाद मई, 2014 में दर्ज हुए। इस दौरान तीन आरोपियों की मौत भी हो गई। अगले साल यानी 2015 में बाकी बचे सभी 16 आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हत्या से आरोपियों को जोड़ने के लिए जरूरी सबूत गायब थे।
31 साल बाद मिला था इंसाफ
ट्रायल कोर्ट के फैसले को पीड़ितों और उनके परिवारों ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। आगे की जांच के लिए कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को हस्तक्षेप करने की मंजूरी दी। हाईकोर्ट ने अतिरिक्त सबूत जोड़ने की भी अनुमति दी। हाईकोर्ट ने हाशिमपुरा नरसंहार को मर्डर इन कस्टडी (हिरासत में हत्या) माना। कोर्ट ने कहा- यह अल्पसंख्यकों की टारगेट किलिंग थी। यह पीड़ितों के लिए लंबी और कठिन लड़ाई रही। उत्तर प्रदेश की क्राइम ब्रांच और क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट ने अपनी रिपोर्ट में पीएसी के 66 जवानों को दोषी ठहराया था।
हाईकोर्ट ने सभी को धारा 302 (हत्या), 364 (अपहरण), 201 (सबूत मिटाने), 120-बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी माना। घटना के करीब 31 साल बाद 31 अक्टूबर, 2018 हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 16 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि, दोषी साबित होने के बाद सभी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
जुम्मे को आए आदेश से हैरान
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 10 दोषियों को जमानत दे दी। मामला साल 1987 का है। पीएसी के अफसरों और जवानों ने करीब 35 निहत्थे हाशिमपुरा निवासियों के लोगों को गोली मार दी थी। जो आदेश आया है उसको लेकर हाशिमपुरा के वाशिंदे हैरान और परेशान हैं। यह संवाददाता जब प्रतिक्रिया जानने को पहुंचा तो वो कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे। कुछ ने केवल इतन ही कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था।
वहीं दूसरी ओर शुक्रवार को सुप्रीमकोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस आॅगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने पेश सीनियर एडवोकेट अमित आनंद तिवारी ने दलील दी कि दिल्ली हाईकोर्ट ने गलत तथ्यों के आधार पर ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा था।
ट्रायल कोर्ट ने घटना के करीब 28 साल बाद 2015 में फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया था। हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में 16 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। एडवोकेट तिवारी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, लेकिन सभी 2018 से जेल में हैं। इस वजह से उन्हें जमानत दी जाए। मामले को उनकी गवाही को आधार पर बनाया गया।
आरोपी और घटना एक नजर में
हाशिमपुर कांड के पीएसी दोषी कर्मियों में समी उल्लाह, निरंजन लाल, सुरेश चंद शर्मा, राम ध्यान, हम्बीर सिंह, कुंवर पाल सिंह, बुद्ध सिंह और मोहकम सिंह, महेश प्रसाद और जयपाल सिंह भी शामिल रहे हैं। पूरा मामला 22 मई 1987 को मेरठ में सांप्रदायिक दंगों के मद्देनजर पीएसी कर्मियों द्वारा उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हाशिमपुरा से मुस्लिम समुदाय के लगभग 42 से 45 लोगों का कथित तौर पर अपहरण कर लिया गया था। इनमें से लगभग 35 लोगों की उसी दिन देर रात पीएसी द्वारा हत्या कर दी गई और उनके शवों को नहर में फेंक दिया गया।

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