बुरा फंसता नजर आ रहा है चुनाव, उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव को लेकर यदि मेरठ नगर निगम की बात की जाए तो बसपा का अच्छा खास चुनाव अब फंसता नजर आ रहा है, बसपा के चुनाव को सबसे ज्यादा डेमेज करने का काम प्रत्याशी को लेकर सोशल मीडिया पर वायरल होने वीडियो से हुआ है. मुस्लिम व दलित ओबीसी की अच्छी खासी या कहें की चुनाव परिणाम को एक तरफ करने वाली मतदाताओं की संख्या होने के बाद भी महापौर चुनाव में उतरी बसपा ने प्रत्याशी की अपनी ही गलतियों से मुसीबत मोल ले ली है. जानकारों का कहना है कि इसके साइड इफैक्ट तय हैं, वर्ना कोई कारण नहीं था कि दलित और मुस्लिम का गठजोड़ हाथी को चुनावी दलदल पार करा देता, लेकिन फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. हालांकि चुनाव में अभी तीन दिन शेष हैं और तीन दिन में कुछ भी हो सकता है, क्या हो सकता है और क्या नहीं इसको लेकर परिणाम की बात करना जल्दबाजी होगी. कमोवेश यही दशा महापौर को लेकर कांग्रेस की भी नजर आ रही है. मेरठ नगर निगम क्षेत्र में तीन लाख से ज्यादा मुसलमान मतदाता हैं और कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतार है, लेकिन इसके बाद भी अभी कोई ऐसी दशा नहीं लग रही है जिससे दावे से कहा जा सके कि मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाने के बाद मेरठ नगर निगम क्षेत्र का मुस्लिम मतदाता कांग्रेस का हाथ पकड़ लेगा, जहां तक मुस्लिम मतदाताओं की बात है तो इस मामले में अभी तो पलड़ा सपा-रालोद गठबंधन का ही भारी नजर आता है, जो चुनाव है वह भी भाजपा व गठबंधन प्रत्याशी के बीच ही नजर आता है, हालांकि आमतौर पर मेरठ की यदि बात की जाए तो यहां का मिजाज रहा है कि मतदान की पूर्व संध्या पर मतदाता तय करते हैं कि दिन निकलने पर करना क्या है, इसलिए जो हालात अभी नजर आ रहे हैं उनको देखते हुए नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी. चुनाव की जहां तक बात है तो मेरठ में यूं तो सभी प्रत्याशी जीत के दावे कर रहे है. आम आदमी सरीखे प्रत्याशी जिन्हें मतदाता भी अभी मुख्य मुकाबले में नहीं मान रहे हैं वो भी जीत कन्फर्म मानकर चुनाव प्रचार में आस्तीन चढ़ाए नजर आते हैं, जबकि यदि जमीनी हकीकत की बात की जाए तो मेरठ के महापौर का चुनाव अभी फंसता हुआ दिखाई दे रहा है, क्लीनस्वीप का दावा किसी को लेकर नहीं किया जा सकता, भले ही चुनावी महाभारत में उतरे प्रत्याशी कुछ भी दावा करते रहें.