स्कूलों से बच्चों की दूरी-गुरुजी की मुसीबत पूरी

स्कूलों से बच्चों की दूरी-गुरुजी की मुसीबत पूरी
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स्कूलों से बच्चों की दूरी-गुरुजी की मुसीबत पूरी,

कम बच्चों पर मुश्किम में बीएसए के प्रधानाचार्य, मेरठ। बेसिक बेसिक शिक्षा परिषद के जिन विद्यालयों में बच्चों की संख्या 151 से कम हैं, वहां से प्रधानाध्यापकों का हटाया जा रहा है। इन विद्यालयों के प्रधानाध्यापक सरप्लस की श्रेणी में आ गए हैं। उनको अब अधिक बच्चों वाले विद्यालयों में भेजने की तैयारी है। प्रदेश भर में बेसिक बेसिक शिक्षा परिषद के ऐसे स्कूल चिन्हित किए जा रहे हैं जहां बच्चे मानकों के अनुरूप संख्या में नहीं है। सरकार का मानना है कि प्रदेश जहां स्कूल चलो अभियान के बाद भी बच्चों की संख्या में इजाफा नहीं हो रहा है, वहां पर संसाधनों को देना मुनासिब नहीं होगा। बेसिक बेसिक शिक्षा परिषद के जिन स्कूलों में पर्याप्त बच्चे हैं तथा जहां सरकार के स्कूल चलो अभियान का व्यापक असर दिखाई देता है वहां तमाम संसाधनों को मुहैय्या कराया जाए। लेकिन ऐसे स्कूल जहां बच्चे तय मानकों के अनुरूप नहीं है हां इसके लिए स्कूल के प्रधानाचार्य को कसूरवार माना जा रहा है। सालों से ऐसे स्कूलों में जमे प्रधानाचार्य की कुर्सी हिलनी तय है। सूत्रों ने जानकारी दी है कि प्रदेश भर में ऐसे   प्रधानाध्यापकों को चिह्नित किया गया है। वहीं, कम बच्चे वाले विद्यालयों के वरिष्ठ शिक्षक ही प्रधानाध्यापक का कार्य करेंगे। परिषदीय विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए तमाम उपाय किए गए। कम बच्चों वाले स्कूलों से शिफ्ट किए जाने के सरकारी आदेश का विरोध भी शुरू हो गया है। हालांकि सरकार की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि  जब बच्चे ही कम हैं तो वहां पर संसाधन ज्यादा देना उचित नहीं है, इसलिए ऐसे विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों को अधिक बच्चों वाले विद्यालयों में भेजा जा रहा है, जिससे उनकी उपयोगिता साबित हो सके। यह भी जानकारी मिली है कि  प्राथमिक विद्यालयों से सरप्लस चिह्नित प्रधानाध्यापकों का जनपदवार पूल बनाया जा रहा है। इसमें कनिष्ठता के क्रम में पहले समायोजन किया जाएगा। यह प्रक्रिया चल रही है। वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि बढ़ानी पड़ेगी विद्यार्थियों की संख्या तभी बात भी बनेंगी। इसके अलावा  शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को सरप्लस से बचना है तो उन्हें विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ाने के लिए कदम उठाने पड़ेंगे।अमूमन जिन विद्यालयों में पढ़ाई होती हैं, वहां पर बच्चों को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती है, वह खुद ही आते हैं। जिले के कई विद्यालय इस मामले में नजीर पेश कर रहे हैं। उनमें शिक्षक नियमित उपस्थित रहते हैं और बेहतर पढ़ाई करा रहे हैं। वहीं, जहां पर पढ़ाई प्रति शिक्षक उदासीन और गैरहाजिर रहे हैं, वहां छात्र संख्या कम है।

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