जीओसी पर भारी बोर्ड की कारगुजारी, मेरठ कैंट बोर्ड के अफसरों की कारगुजारियां जीओसी इन चीफ मध्य कमान लखनऊ पर भारी पड़ रही हैं। बोर्ड के इंजीनियरिंग सेक्शन की वजह से जीओसी इन चीफ के स्तर से निस्तारित की जा चुकी सैकड़ों अपीलें धूल फांक रही हैं। कैंट बोर्ड के अफसरों ने यदि समय रहते इन पर कार्रवाई की होती तो अवैध निर्माणों को लेकर मेरठ कैंट बोर्ड का दामन इतना दागदार न हुआ होता। जब भी कोई अवैध निर्माण होता है तो कैंट बोर्ड उसमें छावनी अधिनियम की धारा 239 के तहत व 247 के पश्चात 248 का नोटिस जारी करता है। जिस पर अवैध निर्माण कर्ता धारा 340 में जीओसी इन चीफ या प्रधान निदेशक मध्य कमान लखनऊ के यहां अपील दायर करता है। अपील की सुनवाई शुरू होती है। इस सुनवाई में एक फौजी अफसर, कैंट बोर्ड इंजीनियरिंग सेक्शन का एक कर्मचारी तथा एक वकील को लखनऊ भेजा जाता है। इस सारी प्रक्रिया में बोर्ड के खजाने से बड़ी रकम खर्च हो जाती है। कई सुनवाईयों के बाद अपील निस्तारित की जाती है। आमतौर पर जीओसी के यहां से कैंट बोर्ड के हित में ही निर्णय आता है। अपील के निस्तारित होने के बाद प्रकरण को बोर्ड बैठक के पटल पर रखकर धारा 320 का नोटिस दिया जाता है। इस नोटिस में एक सप्ताह का समय अवैध निर्माण को गिराने का दिया जाता है। बस यही से कैंट बोर्ड के इंजीनियरिंग सेक्शन का खेल शुरू हो जाता है। जानकारों की मानें तो इसमें बोर्ड के खिलाफ अपील करने वालों से सौदा शुरू होता है। इस सौदे में अवैध निर्माण करने वाले को कोर्ट जाने का पूरा मौका दिया जाता है ताकि वह जीओसी इन चीफ के आदेश के खिलाफ स्टे हासिल कर सके और अवैध निर्माण यूं ही खड़ा कैंट बोर्ड प्रशासन को चिढ़ाता रहे। या फिर जो अपीलें जीओसी इन चीफ के यहां से निस्तारित कर दी जाती हैं, उन्हें कैंट बोर्ड में लाकर डंप कर दिया जाता है। उन पर आगे की कार्रवाई की सुध नहीं ली जाती। बड़ा सवाल यही कि क्या कैंट बोर्ड अध्यक्ष सब एरिया कमांडर इसका संज्ञान लेकर दोषियों की जिम्मेदारी तय करेंगे। या फिर…..