हादसों को न्योता दे रही अफसरों की लापरवाही,
-वितरण क्षेत्र बढ़ रहे हैं हादसों को रोकन के लिए ट्रेड स्टाफ नहीं
-विद्युत नियामक आयोग की हिदायतों को लेकर नहीं बरती जा रही गंभीरता
-ट्रेड लाइन स्टाफ की चौबीस घंटे तैनाती की शासन से की गयी है सिफारिश
मेरठ। विद्युत नियामक आयोग की हिदायातों को लेकर लखनऊ में बैठे उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के उच्च पदस्थ अफसर गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। नियामक आयोग ने हादसों को रोकने के लिए जो हिदायते जारी हैंं तथा शासन को सिफारिश भेजी हैं उन पर अमल करने के बजाए केवल वितरण क्षेत्र बढाए जा रहे हैं। वर्तमान में पच्चीस वितरण क्षेत्रों को बढ़ाकर चालिस कर दिया गया है। वितरण क्षेत्रों को बढाने की पैरवी करेन वाले अफसरों पर इस बात का कोई उत्तर नहीं कि वितरण क्षेत्र तो बढाए जा रहे हैं लेकिन इनको मैनेज व रखरखाव के लिए स्टाफ कितना बढ़ाया गया है।
तो क्या अफसर सीढ़ी लेकर घूमेंगे
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन प्रशासन ने पिछले दिनों वितरण क्षेत्रों की संख्या पच्चीस से बढाकर चालिस कर दी है। लेकिन जितने वितरण क्षेत्र बढाए गए हैं उनके सापेक्ष्य स्टाफ कितना बढाया गया है, इसको लेकर तस्वीर साफ नहीं है। इसीलिए सवाल पूछा जा रहा है कि वितरण क्षेत्र तो बढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन स्टाफ बढाए जाने के सवाल पर चुप्पी साध ली गयी है। इसको लेकर राज्य विद्युत परिषद प्राविधिक कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश के पश्चिमांचल महासचिव अभिमन्यु कुमार खासे चिंतित हैं।
किसको दिया जा रहा है धोखा
राज्य विद्युत परिषद प्राविधिक कर्मचारी संघ उत्तर प्रदेश का मानना है कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में पूर्व में कार्यरत 25 वितरण क्षेत्रों को बढ़ाकर 40 कर दिया गया हैं। प्रत्येक उपभोक्ता जानता है कि उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन का कार्य उत्तर प्रदेश के सभी उपभोक्ताओं का बेहतर निर्बाध विद्युत आपूर्ति करना, विद्युत खर्च की बिलिंग करना, विद्युत दुर्घटनाओ को समाप्त करना, विद्युत आपूर्ति में पैदा व्यवधान को समाप्त करना है। लेकिन विभाग में होने वाले आदेशों और क्रिया कलापों को देखने से ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता कि विभाग को चलाने वाले इसको लेकर गंभीर हैं। इस समय नए वितरण क्षेत्रों के निर्माण से ज्यादा जरूरी अन्य मुद्दे हैं।
तो फिर नियामक आयोग की हिदायतों का क्या
वितरण व्यवस्था को सुधारने के नाम पर उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन को चलाने वालों के द्वारा वितरण क्षेत्र बढाए जाने की बात तो समझ में आती है, लेकिन उन हिदायतों का क्या जो विद्युत नियामक आयोग ने नवीनतम मानकों के अनुरूप जारी की है। सुरक्षा व निर्वाध बिजली आपूर्ति समेत कई मुद्दों पर नियामक आयोग ने कारपोरेशन को हिदायतें जारी की हैं:-
1- उपभोक्ताओं की संख्या के अनुसार ही नए विद्युत फीडर बनाए जाए।
2- उपभोक्ताओं की संख्या के अनुसार ही बिजली उपकेंद्र बनाए जाएं।
3- उचित संख्या में लाइन के अनुरक्षण के लिया 24 घंटे मानक संख्या में ट्रेंड लाइन स्टाफ तैनात किया जाए।
4-नियामक आयोग ने हिदायत दी कि स्टाफ की तैनाती में मानकों की अनदेखी न कि जाए। नसीहत भरे अंदाज में नियामक आयोग ने कहा है कि अक्सर कम कर्मचारीयों को ही अपने से दुगने या तिगुने कर्मचारियों का कार्य करना पड़ता हैं।
5-मानकों की बात करने वाले स्टाफ की बात सुनने के बजाए अक्सर उन्हें नौकरी से निकल दिया जाता है। नियामक आयोग ने उसको गलत परंपरा बताया है।
6-अक्सर विरोध करने पर निकाल दिया जायेगा पापी पेट का जो सवाल हैं। इसलिए लाइन स्टाफ कैसे भी बीमार/सोते जागते/थकान/मानसिक रूप से परेशान होने की स्थिति में भी कार्य करता हैं। वह आपूर्ति तो चालू कर देता हैं लेकिन कई बार अपनी जान से हाथ धो बैठता हैं।
7- कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण की पूर्ति विभाग टेंडर के नाम पर ठेकेदार को और ठेकेदार नौकरी के नाम पर कर्मचारियों के मत्थे मढ देता हैं, खाना पूर्ति के लिए नाम मात्र के लिए बिजली घर पर भी रख देता लेकिन कर्मचारियों को तो अपनी जान खुद बिना उपकरणों के बचानी होती हैं तो वह अक्सर सफल भी जो जाते हैं कई बार सफल नहीं भी हो पाते हैं। इसकी चिंता ठेकेदार/विभाग को नहीं रहती क्योंकि अक्सर मृतक के घरवालों को लाखों रुपए देने से बचने के लिए ठेकेदार विभागिय अधिकारियों की मदद से ये साबित करने में सफल हो जाता है कि लाइन पर कार्य करने वाला उसके द्वारा नियुक्त नहीं था कोई फर्जी व्यक्ति था ।
कुल मिलाकर ये समझ आया की जोन के निर्माण से केवल विभाग के उन अधिकारियों को लाभ हुआ है जिनको परमोशन के लिए कार्य क्षेत्र नहीं थे, संभवतः उनके द्वारा ही अपने निजी लाभ के लिए ही जोन के निर्माण के संदर्भ में तर्क ऊर्जा मंत्री, अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक को दिए गए होंगे जबकि वास्तविक समस्याओं के लिए कोई प्रस्ताव नहीं दिया जाता होगा। ऐसा संभव भी है कयोंकि निर्णय लेने वालों की मीटिंग कमेटी में यही CE और SE ही होते हैं जिनको बस अपना भला कैसे हो से मतलब हैं। जबकि सबसे ज्यादा जरूरत उपर लिखे अन्य स्टाफ और संसाधन को बढ़ाने की है। कर्मचारी विभाग की रीढ़ कि हड्डी होता हैं, उसको बढ़ाने की बजाय मुख्य अभियंता के पदों का एडजस्टमेंट समझ से बाहर हैं।