जमीन घोटाले पर कोर्ट में सुनवाई, -अपनी ही जमीन पर कब्जा लेने को जिला प्रशासन हाईकोर्ट में जवाब दाखिल करना भूला- एक हजार करोड़ ज्यादा के जमीन स्कैम पर मेरठ जिला प्रशासन कतई गंभीर नहीं है। एक विदेशी कंपनी के नाम तमाम कायदे कानून ताक पर रखकर हजार करोड़ से ज्यादा की जमीन लिख दी गयी। वाक्या 2010 का है। अधिकार न होते हुए तत्कालीन एसडीएम सरधना अमित भारती से 117 एकड़ सरकार की जमीन जर्मनी की कांन्टीनेंटल कंपनी के नाम चढ़ा दी। उसी दौरान कोरोना संक्रमण की महामारी आ गयी। मामला दब गया, लेकिन इस मामले को लेकर आटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने एक याचिका हाइकोर्ट में दायर कर दी। आज शुक्रवार 18 नवंबर को इसकी सुनवाई हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच कर रही है। लखनऊ बैंच ने हजार करोड़ से ज्यादा की इस जमीन को खुर्दबुर्द किए जाने के मामले को गंभीरता से लेते हुए राजस्व परिषद के अध्यक्ष, जिलाधिकारी मेरठ और मोदी रबड यानि कान्टीनेंटल कंपनी से जवाब मांगा था, लेकिन अपनी ही इस बेशकीमती जमीन जो दिल्ली देहरादून हाइवे छह लेन पर स्थित है न तो शासन और न ही जिला प्रशासन के अधिकारी गंभीर नजर आते हैं। जहां तक मोदी रबड का सवाल है तो जगह उनके नाम कागजों में चढ़ा दी गयी है, जिसके चलते वो नहीं चाहेंगे कि यह मामला हाइकोर्ट में आगे बढ़े। बल्कि प्रयास ही होगा कि इस बेशकीमती जमीन को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच जो सुनवाई कर रही है, उसमें लगातार तारीख पर तारीख लगती रहें। आरटीआई एक्टिवस्ट ने बताया कि उन्हें शासन व मेरठ के डीएम की ओर से हाईकोर्ट में दायर किये जाने वाले उत्तर का इंतजार है, उनके जवाब के बाद ही एक रिज्वाइंडर दायर किया जाएगा। लोकेश खुराना का कहना है कि यह पूरा हजार करोड़ का स्कैम है। एमडीए भी कसूरवार: तत्कालीन कमिश्नर सुरेन्द्र सिंह की जानकारी यह पूरा मामला था। उन्होंन तब के एमडीए उपाध्यक्ष मृदुल चौधरी को इसको लेकर फटकार भी लगायी थी। साथ ही मोदी रबर की बेदखली के आदेश करने के बाद एमडीए अफसरों को जमीन पर कब्जा लेने के आदेश दिए थे। लेकिन कमिश्नर के आदेशों के बावजूद एमडीए कब्जा लेना भूले बैठा है। एमडीए सचिव चंद्रकांत तिवारी:- ने बताया कि इस मामले में एमडीए को जवाब नहीं दाखिल करना था।